महाभारत के शांति पर्व के अध्याय 56 के श्लोक संख्या 35 में छः प्रकार के दुर्ग बताये गए हैं। मनु स्मृति में भी छः प्रकार के दुर्ग बताये गए हैं। मनु ने गिरि दुर्ग को सर्वश्रेष्ठ बताया है जहाँ देवता निवास करते हैं।
अकबर के राज्यारोहण के समय राजस्थान में ग्यारह रियासतें थीं जिनमें से मेवाड़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर तथा प्रतापगढ़ पर गुहिल, जोधपुर एवं बीकानेर पर राठौड़,...
ई. 1952 में सरदार वल्लभभाई पटेल के नाम पर ऊंटाला का नाम बदलकर वल्लभनगर कर दिया गया। अब लोग इसे वल्लभनगर के नाम से ही जानते हैं और ऊंटाला दुर्ग का इतिहास नेपथ्य में चला गया है।
ई.1730 से 1735 की अवधि में जोधपुर नरेश की सलाह पर बनेड़ा के जागीरदार सरदारसिंह ने कस्बे के निकट स्थित पहाड़ी पर नया बनेड़ा दुर्ग बनवाया जो आज भी मौजूद है।
गोविन्ददास का पुत्र मेघसिंह, उदयपुर के महाराणा से नाराज होकर मुगल बादशाह जहांगीर की सेवा में रहता था। बादशाह की सेवा में रहते समय वह केवल काले कपड़े पहना करता था। इसलिये जहांगीर उसे कालीमेघ कहा करता था।
जब अकबर स्वयं सेना लेकर गोगून्दा के लिये रवाना हुआ तो महाराणा प्रताप गोगून्दा का दुर्ग छोड़कर घने पहाड़ों में चले गये। अकबर ने गोगूंदा पहुँचकर कुतुबुद्दीन खाँ, राजा भगवंतदास और कुंवर मानसिंह को राणा के पीछे पहाड़ों में भेजा।
देवरावर दुर्ग का निर्माण राय जज्जा भाटी द्वारा 9वीं शताब्दी ईस्वी में लोद्रवा के राजा देवराज अथवा देव रावल की स्मृति में करवाया गया था। यह विशाल दुर्ग अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के बहावलपुर जिले में स्थित है।