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राजस्थान पर सातवाहन अधिकार

राजस्थान पर सातवाहन अधिकार कहाँ से कहाँ तक और कब से कब तक रहा, इसके बारे में कोई निश्चित जानकारी अब तक नहीं मिल...

झिलाय दुर्ग

रियासती काल में झिलाय आमेर के कच्छवाहा राजवंश की प्रमुख जागीर थी। इसे छोटी आमेर भी कहा जाता था।

टहला दुर्ग

निष्कलंक सम्प्रदाय के संस्थापक मावजी

राजस्थान के वागड़ क्षेत्र में मावजी ने वैष्णव धर्म के अंतर्गत जो सम्पदाय स्थापित किया उसे निष्कलंक सम्प्रदाय कहते हैं किंतु स्थानीय लोग इसे...

बड़ी सादड़ी के राजराणा

बड़ी सादड़ी के राजराणा मेवाड़ के 16 प्रमुख रजवाड़ों में स्थान रखते थे। बड़ी सादड़ी दुर्ग मेवाड़ राज्य के प्रमुख दुर्गों में से था।...

महाराणा प्रताप के साथी

आज संसार में जिस श्रद्धा एवं विश्वास के साथ महाराणा प्रताप (ई.1540-ई.1597) का स्मरण किया जाता है, उसे देखकर ऐसा लगता है कि जिस...

सांगानेर दुर्ग

जिला मुख्यालय भीलवाड़ा से चार किलोमीटर दूर स्थित सांगानेर दुर्ग का निर्माण अठारहवीं शताब्दी ईस्वी में मेवाड़ के महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय (ई.1711-34) ने करवाया...

सलूम्बर दुर्ग

सलूम्बर से कुछ दूर स्थित एक पहाड़ी पर बीसवीं सदी में निर्मित एक छोटा दुर्ग दर्शनीय है। इसे सलूम्बर दुर्ग कहते हैं। इस दुर्ग...

माण्डलगढ़ दुर्ग

मेवाड़ के महाराणा अड़सी (अरिसिंह द्वितीय) (ई.1761-73) ने मेहता अगरचंद को माण्डलगढ़ दुर्ग का दुर्गपति नियुक्त किया।

नौकोटि मारवाड़

पश्चिमी राजस्थान में यह आम धारणा है कि मारवाड़ राज्य नौ परमार भाइयों में बंटा हुआ था जिसे नौकोटि मारवाड़ कहते थे। ऐतिहासिक स्तर...

राठौड़ों के दुर्ग

राठौड़ों का शासन थार मरुस्थल में रहा इस कारण राठौड़ों के दुर्ग पश्चिमी राजस्थान में अधिक संख्या में मिलते हैं। मेवाड़ एवं आम्बेर आदि...
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