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खींची चौहानों के ठिकाणे

लाखनराव के पुत्र खींवराज के वंशज खींची चौहान कहलाए।  राजस्थान और मध्यप्रदेश के बीच का क्षेत्र जिसकी सीमाएं हाड़ौती से लगती हैं, खींचीवाड़ा कहलाता था क्योंकि खींचियों का बड़ा राज्य उसी क्षेत्र में स्थापित हुआ। खींची चौहानों की राजधानी गढ़ गागरौन थी जिसे गुग्गर तथा गुगोर भी कहते थे।

टहला दुर्ग

सम्पूर्ण दुर्ग प्राचीर से घिरा हुआ है जिसमें आठ बुर्जियां बनी हुई हैं। टहला दुर्ग तक पहुंचने के लिये काले पत्थरों का खुर्रा बना हुआ है।

शेखावतों के लघु दुर्ग

शेखावत आम्बेर के कच्छवाहा शासक वंश की ही एक शाखा है। इनका कोई बड़ा स्वतंत्र राज्य नहीं था। ये स्थानीय शासकों की तरह शासन...

माण्डलगढ़ दुर्ग

मेवाड़ के महाराणा अड़सी (अरिसिंह द्वितीय) (ई.1761-73) ने मेहता अगरचंद को माण्डलगढ़ दुर्ग का दुर्गपति नियुक्त किया।

मध्यकालीन मेवाड़ में ओसवाल

मध्यकालीन रियासतों एवं ब्रिटिश कालीन रियासतों में भी ओसवालों को दीवान, प्रधानमंत्री एवं सेनापति जैसे महत्वपूर्ण पद दिए जाते थे।

प्रतापगढ़ दुर्ग

प्रतापगढ़ दुर्ग के निर्माता मेवाड़ के गुहिलों की ही एक शाखा से थे जो चित्तौड़ के गुहिलों से पंद्रहवीं शताब्दी ईस्वी में अलग हुई...

सज्जनगढ़

महाराणा सज्जनसिंह (ई.1874-84) ने उदयपुर में सज्जनगढ़ नामक लघु-दुर्ग एवं राजप्रासाद का निर्माण करवाया। 18 अगस्त 1883 को सज्जनगढ़ में प्रवेश का उत्सव किया गया।...

ऊंटाला दुर्ग (वल्लभ नगर)

ई. 1952 में सरदार वल्लभभाई पटेल के नाम पर ऊंटाला का नाम बदलकर वल्लभनगर कर दिया गया। अब लोग इसे वल्लभनगर के नाम से ही जानते हैं और ऊंटाला दुर्ग का इतिहास नेपथ्य में चला गया है।

किलोण दुर्ग

किलोण दुर्ग की दीवारें साधारण बनाई गई क्योंकि चारों तरफ की पहाड़ियां एक प्राकृति दीवार के रूप में कार्य करती थीं तथा दुर्ग तक अचानक ही शत्रु का आ धमकना आसान नहीं था।

फलौदी दुर्ग

संस्कृत शिलालेखों में फलौदी नगर का प्राचीन नाम फलवर्द्धिका तथा विजयपुर मिलता है। फलौदी नगर जोधपुर के शासक राव सूजा के पुत्र नरा ने बसाया।
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