Friday, July 26, 2024
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7. गुटखा खाने वाले बाबोसा

अपने गांव खाचरियावास में भैरोंसिंह शेखावत को बाबोसा के नाम से जाना जाता था। वे गुटखा (पान मसाला) खाने के शौकीन थे, राजस्थान का शायद ही ऐसा कोई गांव या नगर हो जिसमें उन्होंने अपने ऐसे मित्र न बना रखे हों जिनसे वे गुटखा मांगकर न खाते हों। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नवल किशोर शर्मा भी पान मसाला खाते थे। वे दोनों प्रायः परस्पर परिहास किया करते थे कि पान मसाला बनाने वाले हमें ही अपना ब्राण्ड एम्बेसेडर क्यों नहीं रख लेते।

दाम्पत्य जीवन से एक पुत्री

भैरोंसिंह शेखावत और सूरजकंवर को अपने दाम्पत्य जीवन से एक पुत्री प्राप्त हुई जिसका नाम रतनकंवर रखा गया। रतनकंवर का विवाह नरपतसिंह राजवी से हुआ जो वसुंधरा राजे मंत्रिमण्डल में मंत्री रहे। रतनकंवर के दो पुत्र विक्रमादित्यसिंह तथा अभिमन्युसिंह हुए।

भयभीत सांसद ने पांव पकड़े

भैरोंसिंह शेखावत जब राज्यसभा के सभापति थे, उन दिनों एक सांसद लगातार तीन बार प्रश्नकाल के दौरान अनुपस्थित रहा। शेखावत राजस्थान विधानसभा के अनुभवों से समृद्ध थे। उन्होंने सांसद की पृष्ठभूमि की जांच करवाई। सांसद को भी जानकारी हो गई कि भैरोंसिंह शेखावत ने उनकी पृष्ठभूमि की जांच करवाई है। जब भैरोंसिंह शेखावत ने उस सांसद को अपने चैम्बर में बुलाया तो उस सांसद ने उनके पांव पकड़कर माफी मांग ली। भैरोंसिंह शेखावत ने उन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया। इसके बाद ऐसे सदस्य या तो प्रश्न पूछते ही नहीं थे, और यदि पूछते थे तो सदन से अनुपस्थित नहीं रहते थे।

मैं यहाँ क्या लेने आया हूँ

भैरोंसिंह शेखावत को जातिवाद से बहुत चिढ़ थी। वे व्यक्तिवाद और जातिवाद के स्थान पर समष्टिवाद में विश्वास रखते थे। वर्ष 2007 में वे चक्रेश्वरी देवी के नागाणा मंदिर में दर्शनों के लिये आये। इस अवसर पर आयोजित सार्वजनिक सभा के मंच से चक्रेश्वरी देवी को बार-बार राठौड़ों की देवी कहकर सम्बोधित किया गया। इससे वे खीझ पड़े और अपने भाषण में अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए बोले- देवी देवता किसी व्यक्ति या जाति के नहीं होते, वे तो पूरे समाज के होते हैं। यदि यह राठौड़ों की देवी है और मैं शेखावत हूँ, तो मैं यहाँ क्या लेने आया हूँ!

अस्पताल पहुंचे अशोक गहलोत

भैरोंसिंह शेखावत एक वर्ष से बीमार चल रहे थे। 13 मई 2010 को उन्हें 15 मई 2010 की प्रातः मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत को ज्ञात हुआ कि भैरोंसिंह शेखावत की हालत चिंता जनक है, उसी समय प्रातः 9 बजे उन्होंने सवाई मानसिंह अस्पताल के आईसीयू में पहुंचकर डॉक्टरों से उनके स्वास्थ्य एवं चिकित्सा के बारे में जानकारी ली।

वैशाख की दूज को ज्योति विलीन हुई

वैशाख की तृतीया को राजस्थान में आखातीज कहा जाता है जो समस्त शुभकार्यों के लिये अबूझ सावे के रूप में विख्यात है। इसी आखातीज से एक दिन पहले, वैशाख माह की द्वितीया अर्थात् 15 मई 2010 को प्रातः 11 बजकर 10 मिनट पर हृदयाघात से उनका निधन हो गया। कार्तिक माह की त्रयोदशी को जो ज्योति प्रकट हुई वह वैशाख माह की द्वितीया को विलीन हो गई।

सारे काम छोड़कर दौड़े अशोक गहलोत

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, भैरोंसिंह के हालचाल पूछकर अभी लौटे ही थे कि उन्हें शेखावत के निधन का सामचार मिला। वे हाथ के सारे काम छोड़कर उसी समय फिर सवाई मानसिंह अस्पताल पहुंचे। उन्होंने शेखावत के परिजनों को ढाढ़स बंधवाया तथा उनके निधन पर राजस्थान में तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया।

शवयात्रा में सम्मिलित हुआ पूरा देश

उनके निवास पर पहुंचकर श्रद्धांजलि देने वालों में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे अब्दुल कलाम, पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे, गुजरात की राज्यपाल डॉ. कमला भी शामिल थीं। उनकी शवयात्रा में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, राजस्थान के राज्यपाल शिवराज पाटिल, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बी- एल- जोशी,  हरियाणा के राज्यपाल जगन्नाथ पहाड़िया, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाशसिंह बादल, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह, उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल, पूर्व उपप्रधान मंत्री लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे, केन्द्रीय मंत्री डॉ. सी. पी. जोशी एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवंतसिंह, भाजपा के अध्यक्ष नितिन गडकरी सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति सम्मिलित हुए।

शेखावत स्मृति संस्थान की घोषणा

मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने भैरोंसिंह शेखावत की स्मृतियों को बनाये रखने के लिये जयपुर में शेखावत स्मृति संस्थान को राज्य सरकार की ओर से भूमि देने की घोषणा की। सीकर रोड पर विद्याधर नगर स्टेडियम के पास इस संस्थान को भूमि आवंटित की गई।

उनके जैसा व्यक्ति मुश्किल से दिखाई पड़ता है

शेखावत के निधन पर यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने भैरोंसिंह की पत्नी को लिखे एक पत्र में इन शब्दों में शोक प्रकट किया- मुझे भैरोंसिंह शेखावत के देहावसान का बहुत अफसोस हुआ।

सार्वजनिक जीवन में उनके जैसा व्यक्ति मुश्किल से दिखाई पड़ता है। शेखावत साहब के सार्वजनिक व्यवहार, उनकी सूझबूझ,  और राजनीतिक प्रतिभा का महत्व सभी लोग स्वीकार करते हैं। सभी पक्षों में संवाद का जैसा गुण उनमें था, वह प्रायः विरल होता है। आपका उनसे जीवन भर का साथ रहा है। उनके गुणों के बारे में आपसे ज्यादा कौन जान सकता है। आपके अभाव और पीड़ा की कल्पना मैं कर सकती हूँ। इसलिये ईश्वर से मेरी प्रार्थना है कि वह आपको यह दुःख सहने की शक्ति दे और उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।

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