भारत की राजनीति में लोकतांत्रिक मर्यादाओं के प्रतिमान लोकतांत्रिक मर्यादाओं के प्रतिमान स्थापित करने वाले नेता कम नहीं हुए हैं किंतु सहज, सरल एवं व्यावहारिक बुद्धि वाले नेता ही अपने समय से आगे जाने वाले सिद्ध हुए हैं। भैंरोसिंह शेखावत ऐसे ही नेता थे। उन्होंने अपना जीवन बहुत छोटे स्तर के सरकारी अधिकारी के रूप में आरम्भ किया था। इसलिए वे जीवन संघर्ष की आवश्यकता को न केवल समझते थे अपितु जीवन संघर्ष करने वालों को आदर भी देते थे।
जनसंघ तथा भारतीय जनता पार्टी से जुड़े रहे किंतु दूसरे राजनीतिक दलों के लिए भी उनके मन में विद्वेष की भावना नहीं रही। इसलिए राजस्थान के सैंकड़ों कांग्रेसी नेताओं से उनके मधुर सम्बन्ध जीवन भर बने रहे। जब वे भारत के उपराष्ट्रपति बने तब भी उन्होंने दलगत राजनीति से उठकर राष्ट्रहित को सर्वोच्च प्राथमिकता दी।
जनसंघ तथा भारतीय जनता पार्टी से जुड़े रहे किंतु दूसरे राजनीतिक दलों के लिए भी उनके मन में विद्वेष की भावना नहीं रही। इसलिए राजस्थान के सैंकड़ों कांग्रेसी नेताओं से उनके मधुर सम्बन्ध जीवन भर बने रहे। जब वे भारत के उपराष्ट्रपति बने तब भी उन्होंने दलगत राजनीति से उठकर राष्ट्रहित को सर्वोच्च प्राथमिकता दी।
भैंरोसिंह शेखावत को विश्वास था कि सभी राजनीतिक दलों के नेता दलगत राजनीति से ऊपर उठकर उन्हें राष्ट्रपति चुनेंगे किंतु दूसरे नेताओं में इतना नैतिक साहस नहीं था। इसलिए भैंरोसिंह शेखावत राष्ट्रपति का चुनाव हार गए। इसे उन्होंने निजी पराजय के रूप में नहीं देखा अपितु जीवन मूल्यों की पराजय के रूप में देखा। अपने जीवन के अंतिम चरण में उन्होंने उन जीवन मूल्यों को पराजित होते हुए देखा जिसे वे कभी भी नहीं देखना चाहते थे।
जिंदादिली ही जिंदगी है
शेखावत के निधन पर मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने कहा- शेखावत उन बिरले नेताओं में से थे जिन्होंने राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई। मुख्यमंत्री, प्रतिपक्ष के नेता और उपराष्ट्रपति पद पर रहते हुए उन्होंने अपनी विद्वता, वाक्पटुता और मिलनसार व्यवहार की अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने राजनीति में रहकर लोकतांत्रिक मर्यादाओं के उच्च प्रतिमान स्थापित किये। उन्होंने राजनीतिक विचारधारा से ऊपर उठकर व्यक्तिगत सम्पर्कों को सदा महत्व दिया।
पूरा देश उन्हें सदियों तक याद करता रहेगा
पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने उनके निधन पर कहा- शेखावत का निधन पूरे देश के लिये अपूर्ण क्षति है। वे विराट व्यक्तित्व के धनी और जन-जन के नेता थे। उनसे राजनीति में बहुत कुछ सीखा है। राजनीति के एक युग का अंत हो गया। पूरा देश उन्हें सदियों तक याद करता रहेगा।
हम सौभाग्यशाली हैं कि हमने हाड़-मांस का ऐसा मानव देखा
उनके निधन के बाद सुप्रसिद्ध पत्रकार चंदन मित्रा ने 17 मई 2010 को राजस्थान पत्रिका में एक लेख लिखा जिसकी अंतिम पंक्तियों में लिखा था- उन्होंने पूरी शान से जीवन बिताया। भावी पीढ़ियां उन्हें छपे हुए शब्दों व टीवी फुटेज से जानेंगी। हम सौभाग्यशाली हैं कि हमने हाड़-मांस का ऐसा मानव देखा।