Saturday, July 27, 2024
spot_img

6. केन्द्र सरकार हमें रेल दे दे

राजस्थान के विपुल खनिज भण्डार की शक्ति से भैरोंसिंह भलीभांति परिचित थे। इसलिये वे प्रायः कहते थे कि केन्द्र सरकार हमें रेल दे दे, हमारा राज्य देश भर की सीमेण्ट तथा मार्बल की मांग पूरी करने में सक्षम है।

चुंगी की समाप्ति

अपनी तीसरी सरकार के कार्यकाल में भैरोंसिंह शेखावत ने नगर पालिका नाकों पर चुंगी वसूलने में हो रहे भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिये चुंगी समाप्त कर दी।

नौवीं पंचवर्षीय योजना के आकार में ऐतिहासिक वृद्धि

राजस्थान को स्वीकृत नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997 से 2000) के आकार में, आठवीं पंचवर्षीय योजना की तुलना में लगभग ढाई गुना की वृद्धि हुई। यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी। जहां आठवीं पंचवर्षीय योजना का आकर 11,500 करोड़ रुपये था, वहीं नौंवी पंचवर्षीय योजना का आकार 27,400 करोड़ रुपये हो गया।

दो जिलों का निर्माण

इस कार्यकाल में भैरोंसिंह शेखावत सरकार ने राजस्थान में दो नये जिलों का गठन किया। श्रीगंगानगर जिले को विभाजित करके श्रीगंगानगर एवं हनुमानगढ़ जिले बनाये गये तथा सवाईमाधोपुर जिले को विभाजित करके सवाईमाधोपुर एवं करौली जिले बनाये गये। इस प्रकार राज्य में जिलों की संख्या 32 हो गई।

साक्षरता अभियान को अभूतपूर्व सफलता

भैरोंसिंह शेखावत की इस तीसरी सरकार ने राज्य में सघन साक्षरता अभियान चलाया जिसे अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई। वर्ष 1991 की जनगणना में राज्य की साक्षरता 38 प्रतिशत पाई गई थी जो इस अभियान के कारण वर्ष 2001 में बढ़कर 61 प्रतिशत हो गई। इस प्रकार निरक्षर राजस्थान साक्षर राजस्थान में बदल गया।

तीसरी बार नेता प्रतिपक्ष

भैरोंसिंह शेखावत की तीसरी सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया किंतु इसके बाद 1998 में ग्यारहवीं विधानसभा के लिये हुए चुनावों में भाजपा परास्त हो गई। उसे केवल 33 सीटें मिलीं जबकि कांग्रेस 150 सीटें जीत कर प्रबल बहुमत के साथ सत्ता में पहुंची। इस विधान सभा के लिये भैरोंसिंह शेखावत ने बाली सीट से चुनाव लड़ा था जिसमें वे विजयी रहे तथा तीसरी बार नेता प्रतिपक्ष बने।

उपराष्ट्रपति पद पर विजयी

वर्ष 2002 में भैरोंसिंह शेखावत ने भारत के उपराष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी श्री सुशील कुमार शिंदे को सीधी टक्कर में परास्त किया। 19 अगस्त 2002 को भैरोंसिंह शेखावत ने भारत के 11वें उपराष्ट्रपति बने।

जीवन भर पढ़ते रहे

भैरोंसिंह शेखावत हाई स्कूल तक पढ़े हुए थे किंतु सीखने, जानने और पढ़ने की ललक उनमें जीवन भर बनी रही। वे अपने सहायकों से विविधि विषयों पर नोट्स तैयार करवाते और उनका अध्ययन करके ही किसी विषय पर अपनी धारणा बनाते थे।

तीन बार डॉक्टर ऑफ लिट्रेचर

आन्ध्र विश्वविद्यालय, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय तथा महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी ने भैरोंसिंह शेखावत को डॉक्टर ऑफ लिट्रेचर की उपाधियाँ दीं। एशियाटिक सोसाइटी मुम्बई ने उन्हें ऑनरेरी फैलोशिप दी। येरेवान स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी आर्मेनिया ने उन्हें डॉक्टर ऑफ मेडिसिन की उपाधि एवं स्वर्ण पदक प्रदान किया।

राष्ट्रपति का चुनाव हारे

जुलाई 2007 में राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का कार्यकाल पूरा हुआ। भैरोंसिंह शेखावत ने राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। वे स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में खड़े हुए। एनडीए के समस्त घटक दलों ने उनका समर्थन किया। उनके सामने राजस्थान की राज्यपाल प्रतिभा देवीसिंह पाटील खड़ी हुईं। उन्हें यूपीए के घटक दलों एवं वामपंथी दलों ने समर्थन दिया। इस चुनाव में प्रतिभा देवीसिंह पाटील विजयी रहीं। 21 जुलाई 2007 को भैरोंसिंह शेखावत ने उपराष्ट्रपति पद से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद वे सदैव के लिये सक्रिय राजनीति से हट गये। इस समय तक उनकी आयु 84 वर्ष हो गई थी।

कैंसर ने झकझोरा

84 वर्ष की आयु में भैरोंसिंह शेखावत को कैंसर का दंश झेलना पड़ा। भारत के विभिन्न चिकित्सालयों में उनका उपचार करवाया गया किंतु वे पूर्णतः स्वस्थ नहीं हो सके।

जाति एवं समाज से निर्भय रहे

4 सितम्बर 1987 को रूपकंवर सती हुई। उन दिनों राज्य के मुख्यमंत्री श्री हरिदेव जोशी थे। भैरोंसिंह उन दिनों इंगलैण्ड की यात्रा पर थे। उन्होंने लंदन से वक्तव्य जारी करके सती काण्ड के दाषियों को दण्डित करने की मांग की। राजपूत समाज का बड़ा हिस्सा ऐसे किसी कदम के विरुद्ध पहले ही प्रतिबद्धता जता चुका था।

भैरोंसिंह निर्भय होकर, अपने सिद्धांतों पर चले। वे जाति एवं समाज की नाराजगी से कभी डरे नहीं। जब कांग्रेस सरकार सती प्रथा के विरोध में कानून लाई तो भैरोंसिंह उसके समर्थन में खड़े हुए। शेखावत जब लंदन से लौटे तो उन्हें गद्दार कहा गया किंतु वे निर्भीक होक जनसभाओं में गये और अपने तर्को से सबको निरुत्तर कर दिया।

रामनिवास मिर्धा से मिलता था चेहरा

भैरोंसिंह शेखावत का चेहरा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामनिवास मिर्धा से मिलता था। कोई भी आदमी रामनिवास मिर्धा को देखकर उन्हें शेखावत समझने की भूल कर सकता था और कोई भी आदमी शेखावत को देखकर रामनिवास समझने की भूल कर सकता था। रामनिवास मिर्धा की पुत्री के विवाह में भैरोंसिंह साफा पहनकर पहुंचे। दोनों के साफे भी लगभग एक जैसे थे। इस पर रामनिवास मिर्धा ने भैरोंसिंह शेखावत से कहा कि आप तो मेहमानों का स्वागत करो, मैं मण्डप में जा रहा हूँ। इस पर शेखावत, मिर्धा के परिजनों के साथ उनके आगे खड़े हो गये। बहुत से लोग उन्हें मिर्धा समझकर लिफाफे पकड़ा गये। जब मिर्धा मण्डप से बाहर आये तो वे यह देखकर हैरान हो गये कि अतिथि किस तरह शेखावत को मिर्धा समझकर भ्रमित हो रहे हैं। शेखावत ने हँसकर लोगों को अपना परिचय देते हुए कहा कि मैं रामनिवास मिर्धा हूँ और ये भैरोंसिंह शेखावत हैं।

जूते खाओ, पर पुष्पचक्र चढ़ाओ

1996 में मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए भैरोंसिंह ने अपने दो मंत्रियों राजेन्द्रसिंह राठौड़ तथा रोहिताश्व शर्मा को प्रबंधन की जानकारी प्राप्त करने के लिये हैदराबाद भेजा। उन्हीं दिनों आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एन. टी. रामाराव का निधन हो गया। इस पर भैरोंसिंह ने दोनों मंत्रियों को निर्देश दिये कि वे सरकार की ओर से रामाराव की पार्थिव देह पर पुष्पचक्र अर्पित करके आयें। जब राजस्थान सरकार के दोनों मंत्री पुष्पचक्र अर्पित करने गये तो लोगों ने उन पर चप्पलें फैंकनी आरंभ कर दीं तथा वापस जाओ-वापस जाओ के नारे लगाने लगे। इससे राजस्थान सरकार के मंत्री रामाराव की पार्थिव देह तक नहीं पहुंच सके। उन्होंने भैरोंसिंह को यह बात बताई तो भैरोंसिंह ने उन्हें निर्देश दिये कि चाहे कितने ही जूते चप्पल खाने पड़ें, पुष्पचक्र अर्पित करके ही आना। दोनों मंत्री पुनः उस स्थान पर गये जहां रामराव की पार्थिव देह दर्शनार्थियों के लिये रखी गई थी। इस बार वे अपने काम में सफल रहे। बाद में उन्हें ज्ञात हुआ कि लोग राजेन्द्रसिंह राठौड़ को एन. टी. रामाराव को चंद्रबाबू नायडू समझ रहे थे जिन्होंने कुछ दिन पहले ही अपने श्वसुर की सरकार का तख्ता पलट किया था।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source