वर्ष 1990 में राजस्थान में नवम् विधानसभा के लिये चुनाव हुए जिनमें भारतीय जनता पार्टी को 85, जनता दल अविभाजित को 54 तथा कांग्रेस (इ) को 50 सीटों पर विजय प्राप्त हुई। भाकपा का एक प्रत्याशी जीता। निर्दलियों को 9 स्थानों पर विजय मिली। भाजपा के प्रत्याशी के रूप में भैरोंसिंह शेखावत ने दो सीटों- छबड़ा और धौलपुर से चुनाव लड़ा और दोनों ही स्थानों से विजयी रहे। इस कारण भाजपा की झोली में केवल 84 विधायक रह गये तथा किसी भी दल को बहुमत प्राप्त नहीं हुआ। भाजपा ने जनता दल (अविभाजित) से सरकार में शामिल होने का अनुरोध किया जो कि स्वीकार कर लिया गया। इस प्रकार 4 मार्च 1990 को भैरोंसिंह शेखावत ने प्रदेश में दूसरी बार सरकार बनायी।
शेखावत के साथ भाजपा के भंवरलाल शर्मा व ललित किशोर चतुर्वेदी ने और जनता दल के नत्थीसिंह ने कैबीनेट मंत्री पद की शपथ ली। 14 मार्च 1990 को भाजपा के कृष्ण कुमार गोयल, चतुर्भुज वर्मा, विजयसिंह झाला, रामकिशोर मीणा तथा पुष्पा जैन ने और जनता दल के दिग्विजय सिंह, चन्द्रभान एवं सुमित्रासिंह ने कैबीनेट मंत्री पद की शपथ ली। भाजपा के हरलाल सिंह खर्रा, रमजान खां, कालूलाल गुर्जर, मोहन मेघवाल, जीवराज कटारा, कुंदनलाल मिगलानी, चुन्नीलाल गरासिया तथा जनता दल के फतहसिंह ने राज्यमंत्री पद की शपथ ली। 16 मार्च 1990 को हरिशंकर भाभड़ा को विधान सभा का अध्यक्ष चुना गया। 5 जुलाई 1990 को जनता दल के यदुनाथसिंह सर्वसम्मति से उपाध्यक्ष चुने गये। बाद में 19 मार्च 1991 को यदुनाथसिंह ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया एवं भाजपा के हीरासिंह चौहान उपाध्यक्ष बने।
30 मई 1990 को भाजपा के हरि कुमार औदिच्य तथा विद्या पाठक को एवं जनता दल के प्रो. केदार नाथ, सम्पतराम व मदन कौर को कैबीनेट मंत्री बनाया गया। उसी दिन भाजपा के जोगेश्वर गर्ग तथा शांतिलाल चपलोत को एवं जनता दल के रामेश्वर दयाल यादव, देवीसिंह भाटी, नफीस अहमदखां व गोपालसिंह खण्डेला को राज्यमंत्री बनाया गया। 23 अक्टूबर 1990 को भाजपा की अयोध्या रथ यात्रा के कारण जनता दल ने भाजपा सरकार से अलग होने का निर्णय लिया। 7 कैबीनेट मंत्रियों- नत्थीसिंह, सम्पतराम, प्रो. केदार, दिग्विजय सिंह, चन्द्रभान, सुमित्रा सिंह और मदनकौर तथा चार राज्य मंत्रियों- फतहसिंह, गोपालसिंह खण्डेला, रामेश्वर दयाल यादव तथा नफीस अहमद ने सरकार से त्यागपत्र दे दिये जिससे सरकार अल्पमत में आ गयी। 5 नवम्बर 1990 को जनता दल के 22 विधायकों ने नत्थीसिंह के नेतृत्व को अस्वीकार करते हुए भाजपा को समर्थन जारी रखने की घोषणा की।
8 नवम्बर 1990 को शेखावत सरकार ने विधान सभा में विश्वास का मत अर्जित कर लिया। सरकार के पक्ष में 116 तथा विरोध में 80 मत आये। विधान सभा अध्यक्ष ने मतदान नहीं किया। 24 नवम्बर 1990 को मंत्रिमण्डल का विस्तार किया गया। जनता दल (दिग्विजय) के दिग्विजय सिंह, गंगाराम चौधरी, लालचंद डूडी, भंवरलाल शर्मा, सम्पतसिंह, जगमालसिंह यादव, रामनारायण विश्नोई को कैबीनेट मंत्री, नफीस अहमद खां, उम्मेदसिंह, जगतसिंह दायमा, मान्धातासिंह, बाबूलाला खाण्डा और रतनलाल जाट को राज्य मंत्री तथा मिश्रीलाल चौधरी एवं डूंगरराम पंवार को उपमंत्री बनाया गया। निर्दलीय मदन मोहन सिंहल को राज्य मंत्री एवं रामप्रताप कासनिया को उपमंत्री बनाया गया। 9 जनवरी 1992 को जनता दल (दिग्विजय) के सम्पतसिंह और जगमाल सिंह ने सरकार से त्यागपत्र दे दिया। 24 जनवरी 1992 को भाजपा के जोगेश्वर गर्ग और चुन्नीलाल गरासिया ने मुरली मनोहर जोशी की यात्रा में सम्मिलित होने के लिये मंत्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया। 17 फरवरी 1992 को भाजपा के कैलाश मेघवाल ने कैबीनेट मंत्री पद की शपथ ली। 1 दिसम्बर 1992 को भाजपा के कैबीनेट मंत्री ललित किशोर चतुर्वेदी ने अयोध्या में कारसेवा में भाग लेने के लिये मंत्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया।
तीन जिलों का जन्म
अपनी दूसरी सरकार के कार्यकाल में भैरोंसिंह शेखावत ने दौसा, राजसमंद तथा बारां जिलों का गठन किया। इससे राज्य में जिलों की संख्या 27 से बढ़कर 30 हो गई। अपने इस कार्यकाल में भैरोंसिंह शेखावत केन्द्र सरकार की आठवीं पंचवर्षीय योजना में राजस्थान को 11500 करोड़ रुपये स्वीकृत करवाने में सफल रहे।
दूसरी सरकार भी राष्ट्रपति शासन की भेंट चढ़ी
6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में हुई गतिविधियों को लेकर केन्द्र सरकार ने शेखावत सरकार को अपदस्थ कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया तथा विधानसभा भंग कर दी गयी।
भैरोंसिंह शेखावत की तीसरी सरकार
राज्य में दसवीं विधान सभा के लिये 11 नवम्बर 1993 को मतदान हुआ। 27 नवम्बर को मतों की गिनती की गयी एवं चुनाव परिणाम घोषित किये गये। भाजपा को 95 स्थान, कांग्रेस (इ) को 76 स्थान, माकपा को 1 स्थान, जनता दल को 6 स्थान एवं निर्दलीय एवं अन्य को 21 स्थान प्राप्त हुए। भाजपा ने बाड़मेर में गंगाराम चौधरी को, चौहटन में भगवान दास डोसी को एवं डीग क्षेत्र में कुंवर अरुणसिंह को समर्थन प्रदान किया। इन तीनों को ही चुनावों में विजय प्राप्त हुई।
भैरोंसिंह शेखावत ने दसवीं विधानसभा का चुनाव पाली जिले की बाली सीट से लड़ा थाजिसमें वे विजयी रहे। इस प्रकार 11 दिसम्बर 1993 को भैरोंसिंह शेखावत ने निर्दलियों के सहयोग से राज्य में तीसरी बार अपनी सरकार का गठन किया। जब उन्होंने अपनी तीसरी सरकार का गठन किया तो राष्ट्रपति शासन पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने इसे ‘सरकारी अवकाश’ बताया।
उनके साथ भाजपा के भंवरलाल शर्मा, ललित किशोर चतुर्वेदी, देवीसिंह भाटी, गुलाबचंद कटारिया, एवं निर्दलीय सुजानसिंह यादव एवं गंगाराम चौधरी को कैबीनेट मंत्री बनाया गया। भाजपा के नाथूसिंह गुर्जर, राजेन्द्रसिंह राठौड़, जसवंतसिंह विश्नोई, श्रीकिशन सोनगरा, नन्दलाल मीणा, रामप्रताप कासनिया, अनंग कुमार जैन, मदन दिलावर, अचलाराम मेघवाल, सांवरलाल जाट, निर्दलीय रोहिताश्व कुमार, ज्ञानसिंह चौधरी, नरेन्द्र कंवर तथा शशि दत्ता को राज्य मंत्री बनाया गया। निर्दलीय गुरजंट सिंह तथा मंगलाराम कोली को उपमंत्री बनाया गया।
22 दिसम्बर 1993 को भाजपा के अर्जुन सिंह देवड़ा को राज्यमंत्री पद की शपथ दिलवायी गयी। 20 फरवरी 1994 को भाजपा के कैलाश मेघवाल एवं रघुवीरसिंह कौशल को कैबीनेट मंत्री के पद की शपथ दिलवायी गयी। जनता दल के 6 सदस्यों में से तीन सदस्यों ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। 6 अक्टूबर 1994 को विधानसभा अध्यक्ष हरिशंकर भाभड़ा को कैबीनेट मंत्री, नसरूखां, बृजराजसिंह एवं पूंजालाल गरासिया को राज्यमंत्री बनाया गया। 27 फरवरी 1995 को बृजराजसिंह का निधन हो गया। मुख्यमंत्री से मतभेदों के कारण 17 जनवरी 1997 को शशि दत्ता ने तथा 20 जनवरी 1997 को पूंजालाल गरासिया ने मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। 7 दिसम्बर 1997 को एक वरिष्ठ अधिकारी से अशोभनीय व्यवहार करने पर देवीसिंह भाटी को भी मुख्यमंत्री के निर्देश पर त्यागपत्र देना पड़ा। 21 मार्च 1998 को प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष चुन लिये जाने के बाद रघुवीरसिंह कौशल ने भी त्यागपत्र दे दिया। 1 जून 1998 को ज्ञानसिंह चौधरी ने निजी कारणों से त्यागपत्र दे दिया।
2 जुलाई 1998 को भाजपा के घनश्याम तिवाड़ी को कैबीनेट मंत्री के रूप में तथा राजपाल सिंह शेखावत, कालीचरण सर्राफ, राजेन्द्र गहलोत, कन्हैयालाल मीणा, भंवरसिंह डांगावास, बाबूलाल वर्मा, सुन्दरलाल, अमराराम चौधरी, दलीचंद, शिवदानसिंह, महावीर भगोरा तथा उजला अरोड़ा को राज्यमंत्री नियुक्त किया गया। 8 जुलाई 1998 को विजयेन्द्रपाल सिंह को कैबीनेट मंत्री तथा चुन्नीलाल धाकड़ को राज्यमंत्री बनाया गया। दो उपमंत्रियों गुरजंट सिंह और मंगलाराम कोली को पदोन्नति देकर राज्यमंत्री बनाया गया।
नये उद्योगों की स्थापना पर जोर
भैरोंसिंह शेखावत ने राजस्थान में नये उद्योगों की स्थापना पर जोर दिया और एक लाख तक की जनसंख्या वाले नगरों में नया उद्योग लगाने वालों को राजकीय सहायता देने का निर्णय किया। साक्षरता, वृक्षारोपण, परिवार नियोजन, स्त्री शिक्षा, आदि उनकी प्राथमिकता के मुख्य कार्यक्रम थे। जब 1993 में वे तीसरी बार मुख्यमंत्री बने तो परिवार नियोजन उके लिये पंचायती राज कानून में संशोधन करके एक प्रावधान किया गया कि दो से अधिक संतान वाला व्यक्ति पंच-सरपंच का चुना नहीं लड़ सकता। इसी कार्यकाल में शेखावत ने पंचायती राज तथा स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं में अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ी जातियों तथा महिलाओं के लिये आरक्षण का प्रावधान करके भारत के लोकतंत्रीय इतिहास में नई मिसाल स्थापित की। यह आरक्षण रोटेशन प्रणाली के आधार पर लागू किया गया।