आपात्काल में बहुत से कर्मचारियों को राजकीय सेवा से निकला दिया गया था। भैरोंसिंह शेखावत अभावों की मार को अच्छी तरह समझते थे। उन्होंने आपात काल में निकाल गये समस्त कर्मचारियों को फिर से सेवा में रख लिया और जितने समय वे बंदी रहे, उस काल के समस्त वित्तीय लाभ भी उन्हें दे दिये। आपात् काल के बाद प्रमुख लोग तो जेलों से बाहर आ गये किंतु बहुत से सामान्य जन अब भी जेलों में बंद थे। भैरोंसिंह शेखावत की सरकार ने उन सबको भी जेल से बाहर निकाला।
जस्टिस कानसिंह परिहार आयोग का गठन
आपात् काल में कुछ सरकारी कर्मचारियों ने जनता के साथ ज्यादतियां कीं। उनका प्रतिकार करने के लिये भैरोंसिंह शेखावत सरकार ने राजस्थान उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त जस्टिस कानसिंह की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग का गठन किया। इस आयोग के पास शिकायतों के ढेर लग गये। ये आवेदन आपातकाल में जबरन नसबंदी करने, जबरन सेवानिवृत्ति करने, अकारण बंदी बनाने तथा अतिक्रमण नाम देकर वैध निर्माणों को तोड़ने से सम्बन्धित थे। जस्टिस परिहार ने कड़ी मेहनत करके इन शिकायतों का वर्गीकरण किया तथा उनके सम्बन्ध में पांच सौ प्रतिवेदन तैयार किये। इनमें से कुछ प्रतिवेदनों पर ही सरकार कार्यवाही कर सकी। शेष पर कार्यवाही होने से पहले ही राज्य में पुनः राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
बाण्या की नौकरी कर ले
मुख्यमंत्री बनने के बाद भैरोंसिंह शेखावत को प्रायः सचिवालय में बैठकर देर रात तक काम करना पड़ता था। उनकी माँ को यह समझ में नहीं आया कि बेटे ने कौनसी नौकरी कर ली है। न तो समय पर घर आता है और न समय पर खाना खाता है। एक दिन मां से रहा नहीं गया और अपने मुख्यमंत्री पुत्र से बोली- बेटा इसी कुण सी नौकरी कर ली, जो खाबा को पतो न सोबा को। तू तो आ नौकरी छोड, कोई बाण्या की नौकरी कर ले।
अपने विरोध के लिये दी गई पार्टी में पहुंचे
एक बार जनार्दनसिंह गहलोत ने भैरोंसिंह शेखावत की सरकार के विरोध में कार्यवाही करने के लिये अपने घर पर कुछ नेताओं की पार्टी रखी। इसमें भैरोंसिंह शेखावत मंत्रिमण्डल के कुछ कैबीनेट मंत्री और विधायक भी सम्मिलित हुए। यह बात भैरोंसिंह शेखावत को ज्ञात हो गई। इस पर शेखावत ने उन्हें फोन करके उलाहना दिया कि मुझे भोज में क्यों नहीं बुलाया। मैं आ रहा हूँ। आधे घण्टे में ही शेखावत, जनार्दनसिंह के घर पहुंच गये। जनार्दनसिंह की सारी योजना पर पानी फिर गया।
उन्होंने निर्धनता का दंश स्वयं झेला था
भैरोंसिंह शेखावत ने स्वयं निर्धनता का दंश झेला था। निर्धन के उत्थान के प्रति उनके मन में सदैव ललक रहती थी। वे राजस्थान में आदर्श गांवों की स्थापना करना चाहते थे। जब वे उपराष्ट्रपति बने तो प्रायः अपने भाषणों में एक बात कहा करते थे कि गरीबों को लोकतंत्र के पांचवे स्तम्भ के रूप में स्थापित कर, देश के संसाधनों पर उनका सर्वोपरि अधिकार स्थापित किया जाना चाहिये।
अंत्योदय योजना के जनक
भैरोंसिंह शेखावत गरीबों के सम्मानपूर्ण जीवन के पक्षधर थे। इसके लिये उन्होंने अंत्योदय योजना बनाई और उसे सर्वप्रथम राजस्थान में ही लागू किया। इस योजना के आरंभिक प्रावधानों में प्रत्येक गांव से सबसे गरीब पांच परिवारों को चयन करना, उन्हें विभिन्न आर्थिक गतिविधियों यथा पशुपालन, कुटीर उद्योग, ऊँटगाड़ा आदि के लिये बैंकों से कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध करवाना आदि सम्मिलित थे। बाद में यह योजना पूरे देश में लागू हुई और आगे चलकर एकीकृत ग्रामीण विकास योजना का मुख्य आधार बनी। इस योजना के सम्बन्ध में उनका कहना था- जैसे शरीर के एक अंग में विकृति आने से पूरे शरीर पर असर पड़ता है, इसी तरह समाज में कहीं भी विकृति आने से लोगों पर उसका प्रभाव पड़ता है। इस योजना का अंत्योदय योजना ही सफल प्रयोग है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस योजना की प्रशंसा की। आज भी यह योजना भारत सरकार द्वारा केन्द्र प्रवर्तित योजना के रूप में चला रही है।
भारत के रॉक्फेलर
अंत्योदय योजना इतनी प्रसिद्ध हुई कि विश्व बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष रॉबर्ट मैक्नमारा ने इस योजना की सराहना करते हुए भैरोंसिंह को भारत का रॉक्फेलर कहा।
विश्व बैंक भी सहायता के लिये आगे आया
राजस्थान के मुख्यमंत्री रहते भैरोंसिंह शेखावत ने अपना गांव – अपना काम योजना एवं काम के बदले अनाज योजना आरंभ कीं। इन योजनाओं को गरीबी उन्मूलन के लिये अत्यंत उपयोगी माना गया। कुछ समय बाद केन्द्र सरकार के निर्देश पर अन्त्योदय योजना को काम के बदले अनाज योजना में बदल दिया गया। इस योजना में राजस्थान ने अन्य समस्त राज्यों की अपेक्षा सर्वाधिक कार्य किया तथा 1,80,000 टन अनाज उठाया। इस कारण विश्व बैंक भी इन योजनाओं के संचालन के लिये राज्य सरकार की सहायता करने के लिये आगे आया।
पंचायतों को काम करने के अधिकार दिये
उस समय तक पंचायतें कवल पांच सौ रुपये तक की योजनाएं ही हाथ में ले सकती थीं किंतु भैरोंसिंह शेखावत की पहली सरकार ने इस सीमा को पाचास हजार रुपये कर दिया तथा प्रत्येक पंचायत समिति के लिये निर्माण कार्यों की सीमा दस लाख रुपये कर दी।
भारतीय जनता पार्टी में
वर्ष 1980 में जनता पार्टी का विघटन हुआ। अटलबिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी तथा भैरोंसिंह शेखावत ने मिलकर भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। इस प्रकार वे भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से थे।
राज्य में राष्ट्रपति शासन
जनवरी 1980 में केन्द्र में कांग्रेस (इ) सरकार का निर्माण हुआ जिसने 17 फरवरी 1980 को राज्य की शेखावत सरकार की प्रथम सरकार को बर्खास्त करके विधान सभा को भंग कर दिया। राज्य में तीसरी बार राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। भैरोंसिंह शेखावत की सरकार ने अपनी पहली पारी में 2 वर्ष 8 महीने कार्य किया।
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष
1980 के विधानसभा चुनावों में श्री भैरोंसिंह शेखावत ने छबड़ा से दुबारा चुनाव लड़ा और वे विजयी रहे किंतु उनकी पार्टी चुनाव हार गई तथा कांग्रेस की सरकार बनी। भैरोंसिंह शेखावत भापजा विधायक दल के नेता चुने गये तथा नेता प्रतिपक्ष बने। पूरे पांच साल तक वे इस पद पर बने रहे।
दुबारा नेता प्रतिपक्ष
1985 में आठवीं राजस्थान विधान सभा में भी कांग्रेस की सरकार बनी। इस विधानसभा के लिये भैरोंसिंह शेखावत ने निंबाहेड़ा तथा अजमेर विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ा और वे दोनों ही सीटों पर विजयी रहे। इस विधानसभा में भी भैरोंसिंह शेखावत नेता प्रतिपक्ष के पद पर कार्य करते रहे।
सती प्रथा का प्रबल विरोध
4 सितम्बर 1987 को सीकर जिले के दिवराला गांव में रूपकंवर सती काण्ड हुआ। देश भर में इसकी तीव्र निंदा हुई। उस समय श्री हरिदेव जोशी राजस्थान के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने सती प्रथा को समाप्त करने के लिये कानून बनाया। 2 नवम्बर 1987 को राजस्थान विधान सभा में भैरोंसिंह शेखावत ने इस प्रथा का प्रबल विरोध किया भैरोंसिंह शेखावत ने विगत 150 वर्षों में राज्य में सती हुई स्त्रियों के आंकड़े एकत्रित किये तथा यह सिद्ध कर दिया कि यह एक भ्रम है कि सती प्रथा राजपूतों में प्रचलित है। विगत 150 वर्षों में अन्य जातियों में राजपूतों की स्त्रियों से भी अधिक स्त्रियां सती हुई हैं। उनका तर्क था कि इस कुरीति को जड़ से नष्ट करने के लिये प्रभावी उपाय होने चाहिये।