Saturday, July 27, 2024
spot_img

3. लगातार चार बार विधायक बने

वर्ष 1952 में दांता रामगढ़ विधान सभा सीट जीतने के बाद भैरोंसिंह शेखावत वर्ष 1957 में श्रीमाधोपुर सीट से विधायक निर्वाचित हुए। 1962 और 1967 में वे जयुपर की किशनपोल सीट से विधायक चुने गये। इस प्रकार वे अपने राजनीतिक जीवन के आरंभ में ही चार बार लगातार विधायक बने।

गांधीनगर सीट से हारे

1972 के विधानसभा आम चुनावों में भैरोंसिंह शेखावत ने गांधीनगर सीट से चुनाव लड़ा। उनके सामने कांग्रेस के जनार्दन सिंह गहलोत खड़े हुए। चुनाव प्रचार के दौरा भैरोंसिंह शेखावत वोट मांगने के लिये जनार्दनसिंह के माता-पिता के घर भी गये और उनसे अपने लिये वोट मांगा। एक बार प्रचार के दौरान दोनों प्रत्याशी आमने-सामने हो गये। इस पर भैरोंसिंह शेखावत ने जनार्दनसिंह से सबके सामने कह दिया कि तुम जीत रहे हो। ऐसा ही हुआ। भैरोंसिंह यह चुनाव हार गये।

बाड़मेर सीट से हारे

गांधीनगर सीट से चुनाव हारने के बाद भैरोंसिंह शेखावत ने बाड़मेर संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव लड़ा किंतु इस चुनाव में भी उन्हें कांग्रेस के अमृत नाहटा से पराजय का सामना करना पड़ा।

राज्यसभा में

दो बार लगातार विधान सभा चुनावों में मिली पराजय किसी के लिये भी बड़ा झटका हो सकती थी किंतु वर्ष 1974 में मध्यप्रदेश जनसंघ ने भैरोंसिंह शेखावत को राज्यसभा में मनोनीत कर दिया और वे 1974 से 1977 तक राज्यसभा के सदस्य रहे।

पौने दो साल जेल में

ई.1975 में जब देश में आपात् काल लगा तो जून 1975 से मार्च 1977 तक भैरोंसिंह शेखावत मीसा के अंतर्गत जेल में बंद रहे।

पहली बार मुख्यमंत्री

आपात्काल समाप्त होने के बाद वर्ष 1977 में देश में जनता पार्टी का गठन हुआ। इस नई पार्टी में जनसंघ का भी विलय हो गया। भैरोंसिंह भी जनता पार्टी में सम्मिलित हो गये। उसी वर्ष राजस्थान में विधानसभा के लिये मध्यावधि चुनाव हुए जिनमें जनता पार्टी को 200 में से 150 स्थान प्राप्त हुए। उस समय बहुत से सदस्य डूंगरपुर के पूर्व महारावल लक्ष्मणसिंह को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे जो कि उच्च कोटि के वक्ता और प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे किंतु जनता पार्टी का केन्द्रीय नेतृत्व भैरोंसिंह शेखावत को मुख्यमंत्री बनाना चाहता था। विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री पद के लिये जनता पार्टी के मास्टर आदित्येन्द्र तथा भैरोंसिंह शेखावत के बीच मुकाबला हुआ जिसमें शेखावत की जीत हुई और उन्होंने राज्य की पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनायी। शेखावत उस समय मध्यप्रदेश से राज्यसभा के सदस्य थे। 22 जून 19977 को चौपन वर्ष की आयु में उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली इस कारण उन्हें राज्यसभा की सदस्यता छोड़ देनी पड़ी।

पहला मंत्रिमण्डल

27 जून 1977 को शेखावत सरकार में मास्टर आदित्येन्द्र, प्रो. केदार नाथ, ललित किशोर चतुर्वेदी, सम्पत राम तथा त्रिलोकचंद जैन को कैबीनेट मंत्री, कैलाश मेघवाल, विज्ञान मोदी, महबूब अली और विद्या पाठक को राज्य मंत्री बनाया गया।

छबड़ा से चुने गये

शेखावत ने राज्य सभा से त्यागपत्र देकर 18 अक्टूबर 1977 को कोटा जिले के छबड़ा विधानसभा क्षेत्र से उप चुनाव लड़ा तथा विधानसभा की सदस्यता प्राप्त की।

पहली सरकार का विस्तार

7 फरवरी 1978 को शेखावत सरकार का विस्तार किया गया।  सूर्यनारायण चौधरी, भंवरलाल शर्मा, जयनारायण पूनिया, दिग्विजय सिंह व पुरुषोत्तम मंत्री को कैबीनेट मंत्री के रूप में सम्मिलित किया गया। कैलाश मेघवाल को भी कैबीनेट मंत्री का दर्जा दिया गया। लाल चंद डूडी तथा नन्दलाल मीणा को राज्यमंत्री बनाया गया। जुलाई 1978 में केन्द्र में मोरारजी सरकार गिर गयी और चरणसिंह सरकार का जन्म हुआ। इस कारण राजस्थान में लालचंद डूडी तथा विज्ञान मोदी ने 8 जुलाई 1978 को भैरोंसिंह सरकार से त्यागपत्र दे दिया। 5 नवम्बर 1978 को शेखावत मंत्रिमण्डल का तीसरा विस्तार किया गया। माणकचंद सुराणा, कल्याणसिंह कालवी, डॉ. हरिसिंह और बिरदमल सिंघवी को कैबीनेट मंत्री के रूप में तथा हरिसिंह यादव और भैरवलाल काला बादल को राज्य मंत्री के रूप में सम्मिलित किया गया। 18 मई 1979 को मास्टर आदित्येन्द्र, 21 जुलाई को प्रो. केदार नाथ और 2 अगस्त को डॉ. हरिसिंह ने शेखावत सरकार से त्यागपत्र दे दिया। 20 दिसम्बर 1979 को शिवचरण सिंह गुर्जर को सरकार में कैबीनेट मंत्री के रूप में सम्मिलित किया गया।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source