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दुर्ग निर्माण का इतिहास

राजस्थान में दुर्ग निर्माण के समय दुर्गा का मंदिर अथवा थान अवश्य बनाया जाता था। दुर्ग की अधिष्ठात्री देवी दुर्गा है, जो दुर्ग तथा दुर्ग-वासियों की रक्षा करती है।

टहला दुर्ग

सम्पूर्ण दुर्ग प्राचीर से घिरा हुआ है जिसमें आठ बुर्जियां बनी हुई हैं। टहला दुर्ग तक पहुंचने के लिये काले पत्थरों का खुर्रा बना हुआ है।

प्रस्तावना

अकबर के राज्यारोहण के समय राजस्थान में ग्यारह रियासतें थीं जिनमें से मेवाड़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर तथा प्रतापगढ़ पर गुहिल, जोधपुर एवं बीकानेर पर राठौड़,...

2. दोस्ती

मध्यकालीन मेवाड़ में ओसवाल

मध्यकालीन रियासतों एवं ब्रिटिश कालीन रियासतों में भी ओसवालों को दीवान, प्रधानमंत्री एवं सेनापति जैसे महत्वपूर्ण पद दिए जाते थे।

प्रतापगढ़ दुर्ग

प्रतापगढ़ दुर्ग के निर्माता मेवाड़ के गुहिलों की ही एक शाखा से थे जो चित्तौड़ के गुहिलों से पंद्रहवीं शताब्दी ईस्वी में अलग हुई...

सज्जनगढ़

महाराणा सज्जनसिंह (ई.1874-84) ने उदयपुर में सज्जनगढ़ नामक लघु-दुर्ग एवं राजप्रासाद का निर्माण करवाया। 18 अगस्त 1883 को सज्जनगढ़ में प्रवेश का उत्सव किया गया।...

ऊंटाला दुर्ग (वल्लभ नगर)

ई. 1952 में सरदार वल्लभभाई पटेल के नाम पर ऊंटाला का नाम बदलकर वल्लभनगर कर दिया गया। अब लोग इसे वल्लभनगर के नाम से ही जानते हैं और ऊंटाला दुर्ग का इतिहास नेपथ्य में चला गया है।

एकलिंग गढ़

जब मराठा सरदार माधोजी सिंधिया ने उदयपुर पर आक्रमण किया तब महारणा अरिसिंह (द्वितीय) (ई.1761-73) ने एकलिंग गढ़ पर दुश्मनभंजन नामक तोप चढ़वाई।

कुचामन दुर्ग

कुचामन और उसके निकटवर्ती क्षेत्र यथा हिराणी, मीठड़ी, लिचाणा आदि से गौड़ शासकों के शिलालेख प्राप्त होते हैं।

जूना बाहड़मेर

जूना बाहड़मेर, बाड़मेर-मुनाबाव रेलमार्ग पर स्थित जसाई रेल्वे स्टेशन से लगभग छः किलोमीटर दूर स्थित है। इसे प्राचीन समय में बाहड़मेरु, बाहड़गिरि, बाप्पड़ाऊ तथा जूना बाहड़मेर के नाम से जाना जाता था।
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