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जाटों की गढ़ैयाएँ

जाटों की गढ़ैयाएँ प्राचीरों पर लगी तोपों से भी सुरक्षित थीं। ये तोपें मुगल सेनाओं से लूटी गई थीं। ताकि शत्रु को दूर से ही मार गिराया जा सके।

झिलाय दुर्ग

रियासती काल में झिलाय आमेर के कच्छवाहा राजवंश की प्रमुख जागीर थी। इसे छोटी आमेर भी कहा जाता था।

टहला दुर्ग

रघुनाथगढ़ तथा मानपुर दुर्ग

रघुनाथगढ़ के पुराने दुर्ग से ईस्वी 1093 का एक शिलालेख मिला है। रेवासा से भी चंदेलों के ई.1186 के तीन अभिलेख मिले हैं।

बड़ी सादड़ी के राजराणा

बड़ी सादड़ी के राजराणा मेवाड़ के 16 प्रमुख रजवाड़ों में स्थान रखते थे। बड़ी सादड़ी दुर्ग मेवाड़ राज्य के प्रमुख दुर्गों में से था।...

महाराणा प्रताप के साथी

आज संसार में जिस श्रद्धा एवं विश्वास के साथ महाराणा प्रताप (ई.1540-ई.1597) का स्मरण किया जाता है, उसे देखकर ऐसा लगता है कि जिस...

सांगानेर दुर्ग

जिला मुख्यालय भीलवाड़ा से चार किलोमीटर दूर स्थित सांगानेर दुर्ग का निर्माण अठारहवीं शताब्दी ईस्वी में मेवाड़ के महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय (ई.1711-34) ने करवाया...

सलूम्बर दुर्ग

सलूम्बर से कुछ दूर स्थित एक पहाड़ी पर बीसवीं सदी में निर्मित एक छोटा दुर्ग दर्शनीय है। इसे सलूम्बर दुर्ग कहते हैं। इस दुर्ग...

माण्डलगढ़ दुर्ग

मेवाड़ के महाराणा अड़सी (अरिसिंह द्वितीय) (ई.1761-73) ने मेहता अगरचंद को माण्डलगढ़ दुर्ग का दुर्गपति नियुक्त किया।

राठौड़ों के दुर्ग

राठौड़ों का शासन थार मरुस्थल में रहा इस कारण राठौड़ों के दुर्ग पश्चिमी राजस्थान में अधिक संख्या में मिलते हैं। मेवाड़ एवं आम्बेर आदि...

रोहट दुर्ग देसूरी दुर्ग सेवाड़ी दुर्ग

रोहट दुर्ग जोधपुर-पाली मार्ग पर जोधपुर से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित रोहट में रियासती काल में रोहतास दुर्ग बना हुआ था जो लूनी नदी...
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