Saturday, July 27, 2024
spot_img

24. पंजाब के रास्ते भारत में घुस गया मुहम्मद गौरी!

ईस्वी 1178 में गुजरात के चौलुक्यों से मिली कड़ी पराजय के बाद मुहम्मद गौरी ने समझ लिया कि उसे भारत के हिन्दू राजाओं पर हाथ डालने से पहले भारत के मुस्लिम अमीरों को जीतना चाहिए ताकि वह भारत में पैर जमाता हुआ धीरे-धीरे आगे बढ़ सके। उन दिनों पंजाब में कई छोटे-छोटे मुस्लिम-अमीर शासन कर रहे थे जिन्हें महमूद गजनवी ने भारत में स्थापित किया था।

इसलिए मुहम्मद गौरी ने गुजरात को छोड़कर पंजाब के रास्ते भारत में घुसने की योजना बनाई। उस समय पेशावर पर गजनवी वंश का खुसरव मलिक शासन कर रहा था। गौरी ने ई.1179 में पेशावर पर आक्रमण करके पेशावर पर अधिकार कर लिया। ई.1181 में गौरी ने पंजाब पर दूसरा आक्रमण किया तथा स्यालकोट तक का प्रदेश जीत लिया।

ई.1182 में मुहम्मद गौरी ने भारत के निचले सिंध क्षेत्र पर आक्रमण करके देवल नामक राज्य को जीता तथा वहाँ के हिन्दू शासक को अपनी अधीनता स्वीकार करने पर विवश किया। ई.1185 में मुहम्मद गौरी ने तीसरा आक्रमण लाहौर पर किया तथा लाहौर तक का प्रदेश अपने राज्य में शािमल कर लिया।

इस प्रकार मुहम्मद गौरी गजनी से लेकर लाहौर तक के विशाल क्षेत्र का स्वामी बन गया। अब वह भारत के हिन्दू राजाओं की आंखों में आंखें डालकर बात कर सकता था। लाहौर पर अधिकार कर लेने के बाद मुहम्मद गौरी के राज्य की सीमा पंजाब के सरहिंद तक पहुंच गई जिसे मुस्लिम इतिहासकारों ने तबरहिंद कहा है।

सरहिंद का दुर्ग दिल्ली एवं अजमेर के चौहान शासक पृथ्वीराज (तृतीय) के साम्राज्य के अधीन था। मुहम्मद गौरी ने यहीं से चौहान साम्राज्य पर आक्रमण करने का निर्णय लिया।

इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-

ई.1189 में मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान के राज्य पर सीधा पहला आक्रमण किया तथा भटिण्डा के दुर्ग पर अधिकार कर लिया। उस समय भटिण्डा का दुर्ग चौहानों के अधीन था। पृथ्वीराज चौहान उस समय तो चुप बैठा रहा किन्तु ई.1191 में जब मुहम्मद गोरी, तबरहिंद  अर्थात् सरहिंद को जीतने के बाद आगे बढ़ा तो पृथ्वीराज ने करनाल जिले के तराइन के मैदान में उसका रास्ता रोका।

यह लड़ाई भारत के इतिहास में तराइन की प्रथम लड़ाई के नाम से जानी जाती है। अब तराइन को नराइन कहा जाने लगा है। फरिश्ता, निजामुद्दीन अहमद तथा लेनपूल आदि कुछ इतिहासकारों के अनुसार मुहम्मद गौरी एवं पृथ्वीराज चौहान के बीच ई.1191 एवं 1192 के युद्ध नारायण नाम स्थान पर लड़े गये जिसे तारावदी भी कहा जाता है।

समकालीन लेखक मिन्हाज उस सिराज द्वारा लिखित तबकात-इ-नासिरी में तराइन नाम दिया गया है। नारायन के स्थान पर तराइन अथवा तराइन के स्थान पर नारायन पाठ का यह अंतर पर्शियन लिपि की शिकस्ता ढंग की लेखनी के कारण हुआ है जिसमें पहले अक्षर के ऊपर कुछ बिंदुओं के अंतर के कारण तराइन का नाराइन अथवा नाराइन का तराइन हो जाता है। ईश्वरी प्रसाद ने मिडाइवल इण्डिया में लिखा है कि अधिकतर इतिहास में इसे नाराइन लिखा गया है जो कि गलत है। गांव का नाम तराइन है। यह थाणेश्वर एवं करनाल के बीच स्थित है। संभवतः यह त्रुटि पर्शियन लिपि के कारण हुई है।

युद्ध के मैदान में गौरी का सामना दिल्ली के राजा गोविंदराय तोमर से हुआ। मुहम्मद गौरी ने गोविंदराय पर अपना भाला फैंक कर मारा जिससे गोविंदराय के दो दांत बाहर निकल गये। गोविंदराय ने भी प्रत्युत्तर में अपना भाला गौरी पर देकर मारा। इस वार से गौरी बुरी तरह घायल हो गया और उसके प्राणों पर संकट आ खड़ा हुआ।

यह देखकर गौरी के सैनिक गौरी को युद्ध के मैदान से ले भागे। बची हुई फौज में भगदड़ मच गई। इसी भगदड़ का लाभ उठाकर मुहम्मद गौरी भी तराइन से बच निकलने में सफल हो गया। वह भागकर लाहौर पहुँचा तथा अपने घावों का उपचार करके गजनी लौट गया।

राजा पृथ्वीराज ने आगे बढ़कर सरहिंद के दुर्ग पर फिर से अधिकार कर लिया ताकि गौरी के किलेदार काजी जियाउद्दीन को बंदी बनाकर अजमेर ले आया। काजी ने पृथ्वीराज चौहान से प्रार्थना की कि काजी का जीवन बख्श दिया जाए। इसके बदले में काजी, पृथ्वीराज चौहान को विपुल धन प्रदान करेगा। पृथ्वीराज को काजी पर दया आ गई तथा उसने काजी को मुक्त कर दिया। जियाउद्दीन काजी पृथ्वीराज चौहान को विपुल धन समर्पित करके गजनी लौट गया।

गजनी पहुँचने के बाद पूरे एक साल तक मुहम्मद गौरी अपनी सेना में वृद्धि करता रहा। उसने एक से एक खूनी दरिन्दा अपनी सेना में जमा किया। जब उसकी सेना में 1,20,000 सैनिक जमा हो गये तो ई.1192 में वह पुनः पृथ्वीराज से लड़ने के लिये अजमेर की ओर चल दिया।

पृथ्वीराज रासो के अनुसार पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी के बीच 21 लड़ाइयां हुईं जिनमें चौहान विजयी रहे। हम्मीर महाकाव्य ने पृथ्वीराज द्वारा सात बार गौरी को परास्त किया जाना लिखा है। सिंघवी जैन ग्रंथ माला, पृथ्वीराज प्रबन्ध के हवाले से आठ बार हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष का उल्लेख करता है। प्रबन्ध कोष का लेखक बीस बार मुहम्मद गौरी को पृथ्वीराज द्वारा कैद करके मुक्त करना बताता है। सुर्जन चरित्र में 21 बार और प्रबन्ध चिन्तामणि में 23 बार गौरी का हारना अंकित है।

इतने सारे विवरणों के आधार पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि मुहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान की सेनाओं के बीच कई बार संघर्ष हुआ। इन लड़ाइयों में से कुछ बहुत ही छोटी और कुछ बड़ी रही होंगी। उदाहरण के लिए समझा जा सकता है कि भारत एवं चीन के बीच 1962 के बड़े संघर्ष के बाद भी नाथू ला की लड़ाई, चाओ ला की लड़ाई, डोकलाम विवाद, गलवान घाटी की लड़ाई, पैनगोंग झील की झड़प आदि कई संघर्ष हो चुके हैं। इसी प्रकार मुहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान की सेनाओं में कई लड़ाइयां एवं झड़पें हुई होंगी जिनके बारे में अधिक जानकारी नहीं मिलती है।

अगली कड़ी में देखिए- अत्यधिक महान् बनाने के प्रयास में पृथ्वीराज चौहान का व्यक्तित्व विरूपति किया लोकसाहित्य ने!

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source