spot_img

जाटों की गढ़ैयाएँ

जाटों की गढ़ैयाएँ प्राचीरों पर लगी तोपों से भी सुरक्षित थीं। ये तोपें मुगल सेनाओं से लूटी गई थीं। ताकि शत्रु को दूर से ही मार गिराया जा सके।

झिलाय दुर्ग

रियासती काल में झिलाय आमेर के कच्छवाहा राजवंश की प्रमुख जागीर थी। इसे छोटी आमेर भी कहा जाता था।

टहला दुर्ग

महाराणा प्रताप के साथी

आज संसार में जिस श्रद्धा एवं विश्वास के साथ महाराणा प्रताप (ई.1540-ई.1597) का स्मरण किया जाता है, उसे देखकर ऐसा लगता है कि जिस...

महाराणा प्रताप के साथी

आज संसार में जिस श्रद्धा एवं विश्वास के साथ महाराणा प्रताप (ई.1540-ई.1597) का स्मरण किया जाता है, उसे देखकर ऐसा लगता है कि जिस...

सांगानेर दुर्ग

जिला मुख्यालय भीलवाड़ा से चार किलोमीटर दूर स्थित सांगानेर दुर्ग का निर्माण अठारहवीं शताब्दी ईस्वी में मेवाड़ के महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय (ई.1711-34) ने करवाया...

सलूम्बर दुर्ग

सलूम्बर से कुछ दूर स्थित एक पहाड़ी पर बीसवीं सदी में निर्मित एक छोटा दुर्ग दर्शनीय है। इसे सलूम्बर दुर्ग कहते हैं। इस दुर्ग...

माण्डलगढ़ दुर्ग

मेवाड़ के महाराणा अड़सी (अरिसिंह द्वितीय) (ई.1761-73) ने मेहता अगरचंद को माण्डलगढ़ दुर्ग का दुर्गपति नियुक्त किया।

मध्यकालीन मेवाड़ में ओसवाल

मध्यकालीन रियासतों एवं ब्रिटिश कालीन रियासतों में भी ओसवालों को दीवान, प्रधानमंत्री एवं सेनापति जैसे महत्वपूर्ण पद दिए जाते थे।

राठौड़ों के दुर्ग

राठौड़ों का शासन थार मरुस्थल में रहा इस कारण राठौड़ों के दुर्ग पश्चिमी राजस्थान में अधिक संख्या में मिलते हैं। मेवाड़ एवं आम्बेर आदि...

रोहट दुर्ग देसूरी दुर्ग सेवाड़ी दुर्ग

रोहट दुर्ग जोधपुर-पाली मार्ग पर जोधपुर से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित रोहट में रियासती काल में रोहतास दुर्ग बना हुआ था जो लूनी नदी...
// disable viewing page source