Friday, July 26, 2024
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65. वकीलों की पंचायती

कोटा के फौजदार झाला जालिमसिंह को जब अपने वकील के माध्यम से जोधपुर महाराजा का संदेश मिला तो उसने पण्डित को वापस कोटा बुला लिया और उसके स्थान पर मोहम्मद शरीफ को वकील नियुक्त किया। महाराजा विजयसिंह ने नये वकील को भी बुलाकर समझाया कि कोटा रियासत महादजी सिन्धिया से मित्रता न रखे। आपका जो भी हिसाब-किताब मराठों के सूबेदार तुकोजीराव होलकर से है, उसका निबटारा हम करवा देंगे। हम कोटा से प्रेम रखना चाहते हैं लेकिन कोटा ने महादजी से सम्बन्ध बनाकर मराठों को और भी मजबूत बना दिया है। मोहम्मद शरीफ ने महाराजा का यह संदेश जालिमसिंह को भिजवा दिया।

इस पर झाला जालिमसिंह ने अपने वकील से कहलवाया कि जोधपुर का वातावरण धोखे और जालसाजियों का है। आप वहाँ से हर संभव प्रयास करके निकल आयें। इस पर कोटा के वकील मोहम्मद शरीफ ने महाराजा से चिकनी-चुपड़ी बातें कीं तथा महाराजा का यह अनुरोध स्वीकार कर लिया कि वह कोटा नरेश उम्मेदसिंह तथा झाला जालिमसिंह के बीच फिर से स्नेह सम्बन्ध करवा देगा। महाराजा ने अपना वकील मोतीचंद सिंघी, एक सौ रुपये मूल्य के सोने के कड़े, एक घोड़ा तथा खर्च के लिये दो सौ रुपये देकर मोहम्मद शरीफ को विदा किया।

मोहम्मद शरीफ कोटा पहुँचा तो वहीं रह गया। सोने के कड़े और घोड़े उसके काम में आ गये। झाला जालिमसिंह ने मोहम्मद शरीफ के स्थान पर जसकरण बोहरा को नया वकील नियुक्त कर दिया। जसकरण बोहरा की जयपुर के पूर्व दीवान खुशालीराम बोहरा से दोस्ती थी। खुशालीराम बोहरा उन दिनों महादजी सिन्धिया की सेवा में था। मरुधरानाथ ने खुशालीराम और महादजी सिन्धिया का साथ छुड़वाने की योजना बनाई तथा जसकरण बोहरा को अपनी ओर मिला लिया, उससे कोटा राज्य की नौकरी भी छुड़वा दी। मरुधरानाथ ने जसकरण बोहरा से कहा कि वह खुशालीराम बोहरा को भी जोधपुर बुला ले, मैं जयपुर नरेश से बात करके खुशालीराम को फिर से जयपुर रियासत का दीवान बनवा दूंगा।

जसकरण के बुलावे पर खुशालीराम जोधपुर आ गया किंतु महाराजा ने खुशालीराम को फिर से जयपुर का दीवान बनवाने में सहायता नहीं की। वह तो केवल खुशालीराम को महादजी से दूर करना चाहता था। इस पर जसकरण बोहरा मरुधरानाथ से नाराज होकर जोधपुर से तीन कोस दूर जाकर बैठ गया और काशी जाने की अनुमति मांगने लगा। मरुधरानाथ ने उसे काशी जाने की अनुमति नहीं दी क्योंकि वह अच्छी तरह जानता था कि वह यहाँ से सीधा कहाँ जायेगा। इसलिये महाराजा ने उस पर पहरा बैठा दिया। इस पहरे के कारण जसकरण बोहरा का मरुधरानाथ की अनुमति के बिना जोधपुर राज्य से जीवित निकल पाना असंभव हो गया।

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