तुंगा विजय के बाद महाराजा ने अजमेर नगर और बीठली गढ़ पर अधिकार कर लिया था किंतु नाना फड़नवीस ने सेना भेजकर अजमेर नगर से राठौड़ों की चौकियां हटवा दीं थीं। मरुधरानाथ ने फिर से अजमेर नगर और बीठली गढ़ पर अधिकार करना चाहा। जब किशनगढ़ के राजा प्रतापसिंह को यह ज्ञात हुआ कि मरुधरपति अजमेर पर फिर से अधिकार करने की तैयारी कर रहा है तो उसने पत्र लिखकर मरुधरपति से अपना विरोध जताया।
विजयसिंह ने अपने सलाहकार गोवर्धन खीची से इस विवाद के सम्बन्ध में सलाह मांगी। खीची ने सलाह दी कि जब अजमेर को लेकर फिर से विवाद उठेगा तब आपको मराठों से दुश्मनी मोल लेनी पड़ेगी। इससे आपका बहुत नुक्सान होगा। अतः आप अजमेर न लें। महाराजा के कई मुत्सद्दी खीची से जलन रखते थे। उन्हें मरुधरानाथ के कान भरने का अच्छा अवसर मिल गया। उन्होंने महाराजा को उलटी पट्टी पढ़ाई कि इस बात पर ध्यान दंे कि गोवर्धन खीची ने मराठों का पक्ष लिया है। वह अवश्य ही किशनगढ़ से मिल गया है और कुछ ही दिनों में आपसे प्रार्थना करेगा कि मराठों को अजमेर और पैसा देकर समझौता किया जाये तथा किशनगढ़ को उसके परगने सम्हला कर उन्हें संतुष्ट किया जाये। इससे खीची की बेईमानी सामने आ जायेगी।
मुत्सद्दियों की सलाह पर मरुधरपति ने खीची को उसकी जागीर सोयला से बुलवाया और उससे इस विषय में सलाह मांगी। खीची ने महाराजा को वही सलाह दी जिसका पूर्वानुमान मुत्सद्दियों ने महाराजा को बताया था। इससे महाराजा को विश्वास हो गया कि खीची किशनगढ़ वालों से मिला हुआ है। महाराजा ने उसकी कोई सलाह नहीं मानी। इस पर खीची ने स्वयं को अपमानित अनुभव करके अपनी जागीर के लिये प्रस्थान किया। महाराजा को इस बात की सूचना मिली कि खीची गढ़ छोड़कर जा रहा है तो महाराजा ने अपने मुत्सद्दियों को भेजकर खीची को बुलवाया।
खीची ने मुत्सद्दियों को उत्तर दिया- ‘मेरी उम्र सत्तर साल की हो गई है। बुढ़ापा है, अब मैं तीर्थ क्षेत्र में निवास करूंगा। सरकार का कार्य तो चलता ही रहेगा।’
खीची का उत्तर पाकर महाराजा का दिल बैठ गया। वह समझ गया कि चालाक मुत्सद्दियों ने षड़यंत्र करके राजा के हाथों उसके वृद्ध सलाहकार का अपमान करवाया है। मरुधरपति का हृदय बैठ गया। उसने किसी विद्वान आदमी के मुँह से सुना था कि जब सच्चे देशभक्त अपमानित होते हैं तो उस देश को बुरे दिन देखने पड़ते हैं।