Thursday, April 24, 2025
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नौकोटि मारवाड़

पश्चिमी राजस्थान में यह आम धारणा है कि मारवाड़ राज्य नौ परमार भाइयों में बंटा हुआ था जिसे नौकोटि मारवाड़ कहते थे। ऐतिहासिक स्तर पर नौकोटि मारवाड़ जैसी कोई इकाई किसी भी काल में अस्तित्व में होनी सिद्ध नहीं होती।

नौकोटि मारवाड़ की अवधारणा

नौकोटि मारवाड़ की अवधारणा का मूल स्रोत किसी कवित द्वारा रचित एक छप्पय है जिसकी रचना वि.सं.1101 (ई.1044) में हुई थी। इस छप्पय में कहा गया है कि परमार शासक धरणीवराह ने अपना राज्य अपने नौ भाइयों में बांट दिया था। इससे यह देश नौकोटि अथवा नवकोटि मारवाड़ कहलाया। नव का आशय नौ की संख्या से है और कोटि शब्द का आशय कोट अर्थात् किले से है। इस प्रकार नवकोटि अथवा नौकोटि शब्द का अर्थ नौ किलों से होता है।

नौकोटि मारवाड़ की अवधारणा को प्रदर्शित करने वाला छप्पय इस प्रकार है-

मंडोवर सामंत, हुवो अजमेर सिद्ध सुव।

गढ पूंगल गजमल्ल, हुवो लोद्रवे भाणभुव।।

अल्ह पल्ह अरबद्द, भोजराज जालंधर

जोगराज धरधाट, हुवो हांसू पारक्कर।।

नव कोट किराडू संजुगत, थिर पंवार हर थप्पिया।

धरणीवराह धर भाइयां, कोट बांट जूं-जूं दिया।। [1]

इस छप्पय के अनुसार परमार राजा धरणीवराह ने अपने राज्य का मंडोर किला सावंतसिंह को, पूगल का किला गजमलजी को, लोद्रवा का किला भाणमु को, धरधाट का किला जोगराज  को, [2] पारकर का किला हांसु को, अर्बुद का किला अलपाल को, जालोर का किला भोजराज को और किराडू का किला राजसी को दिया था। [3] ऐतिहासिक तथ्य इस छप्पय की सत्यता की पुष्टि नहीं करते। क्योंकि इसमें दिए गए परमार शासकों के नाम तथा उनके द्वारा शासित क्षेत्र परस्पर मेल नहीं खाते। इस छप्पय के अनुसार धरणीवराह ने अपने भाई भोजराज को जालोर का स्वामी बनाया किंतु भोजराज आबू से मालवा चले गए परमारों की वंशावली का राजा है। भोज परमार के काल में जालोर निश्चित रूप से मालवा के परमारों के अधीन था किंतु भोज को जालोर का राज्य या किला धरणीवराह से सीधे ही प्राप्त नहीं हुआ था। यद्यपि इस छप्पय की विश्वसनीयता संदिग्ध है तथापि इससे इतना ज्ञात हो जाता है कि जालंधर (जालोर) नवकोटि मारवाड़ के अन्तर्गत था।

कान्हड़दे प्रबंध में पद्मनाभ ने भी इस क्षेत्र को नौकोटि मारवाड़ कहा है। वे लिखते हैं-

नवकोटी नामि भणूं मारु आडि घण देस

धण कण घरि सविकहि तणह कप्पड़ कणय सुवेस।।

धरणीवराह के नौ भाइयों एवं नौकोटि मारवाड़ की अवधारणा ऐतिहासिक [4]  दृष्टि से संदिग्ध है, किन्तु उक्त अवधारणा को राठौड़ कालीन जोधपुर राज्य से तादात्म्य स्थापित करने की प्रवृत्ति  प्रदर्शित हुई है [5] जो संभवतः मारवाड़ राज्य की राजनीतिक एवं भौगोलिक परिस्थितियों के परिणाम-स्वरूप विकसित हुई प्रतीत होती है।

इस अवधारणा के संदर्भ में जोधपुर राज्य के प्रादेशिक प्रसरण की घटना सर्वाधिक महत्वपूर्ण रही वयोंकि मारवाड़ राज्य के इतिहास के अवलोकन से ज्ञात होता है कि मल्लीनाथ, [6] रिडमल  [7] एवं  जोधा [8] द्वारा राठौड़ राज्य की स्थापना के पश्चात मालदेव, [9]  जसवंतसिंह, [10]  अजीतसिंह, [11]  अभयसिंह, [12]  विजयसिंह, [13]  एवं मानसिंह  [14] के शासनकाल में जोधपुर राज्य का प्रादेशिक विस्तार अधिक हुआ।

जोधपुर के राठौड़ों ने मेवाड़ से गोडवाड़, [15]  मुगलों से अजमेर [16]  तथा नागौर, पठानों से जालोर, [17]  जयपुर से सांभर, [18]  जैसलमेर से फलोदी, [19]  पोखरन  [20] एवं अर्द्ध-स्वतन्त्र बाड़मेर [21]  एवं कोटड़ा के प्रदेश प्राप्त किये। इस प्रादेशिक प्रसरण के साथ साथ राठौड़ राज्यों की स्थापना बीकानेर [22]  किशनगढ़ [23]  ईडर  [24] सीतामाऊ, [25]  रतलाम, [26]  झाबुआ  [27] सेलाना  [28] आदि राज्यों में हुई।

समकालीन मुगल राजनीति में भी जोधपुर राज्य की भूमिका जैसलमेर राज्य की अपेक्षा अधिक सक्रिय एवं प्रभावकारी [29]  रहने से तथा राठौड़ों की ‘रणबंका राठौड़’ ख्याति ने भी नौकोटि मारवाड़ की अवधारणा को विकसित करने में यथासंभव बल प्रदान किया है। [30]

जोधपुर राज्य की मालगुजारी तथा सैन्य-शक्ति ने भी नौकोटि मारवाड़ की अवधारणा के क्रमिक विकास में योगदान किया है।

दशरथ शर्मा   ने लिखा है- ‘कोई राजा युद्ध में 90,000 घोड़े प्रस्तुत कर सके या जिससे इतनी सैन्य शक्ति की आशा की जा सकती हो उसके देश को नवकोटि कहा जा सकता है। तुजुके जहांगीरी में लिखा है कि मुल्क और फौज की प्रचुरता के कारण मारवाड़ का राव मालदेव मेवाड़ के राणा सांगा से बढ़कर था। ऐसी स्थिति में मारवाड़ के लिए नवकोटि नाम असंगत प्रतीत नहीं होता किन्तु मारवाड़ सदा से नवकोटि नहीं रहा। मालदेव के पिता गांगा के पास केवल जोधपुर और सोजत परगने थे। उसके पूर्व भी मारवाड़ राज्य का विस्तार घटता-बढ़ता रहा।’[31]

इस कथन से जोधपुर राज्य के विषय में एक संभावना का आभास ही होता है। इतिहास में मात्र संभावनाओं पर आधारित अवधारणाएँ संदिग्ध ही होती हैं।

नवकोटि – जोधपुर या जैसलमेर ?

मारवाड़ की बजाय जैसलमेर राज्य के संदर्भ में उक्त अवधारणा अधिक स्पष्ट, उपयुक्त एवं यथार्थ प्रतीत होती हैं जिसकी पुष्टि निम्नांकित तथ्यों से होती है-

जैसलमेर के भाटी शासकों ने भिन्न-भिन्न स्थानों पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया तथा अपने द्वारा स्थापित राजधानियों में जैसलमेर को नौवीं  [32] एवं अन्तिम राजधानी बताया जाता है। इस तथ्य की पुष्टि में निम्नलिखित पद्य कहा जाता है-

मथुरा, काशी प्रागबढ़, गजनी अरु भटनेर

दिगम दिराबर लोद्रवा नम्मी जैसलमेर।

उपर्युक्त पद्य से जैसलमेर राज्य की राजधानियों की स्थापना क्रम का बोध होता है तथा जैसलमेर के नवकोटि होने की दिशा में स्पष्ट संकेत भी मिलता है।

समकालीन ख्यातों में जोधपुर राज्य के विषय में नवकोटि मारवाड़ की अवधारणा का कोई संकेत नहीं मिलता जबकि जैसलमेर राज्य के सम्बन्ध में समुचित एवं प्रचुर संकेत उपलब्ध हैं। मुंहता नैणसी  की ख्यात में लिखा है- ‘भाटियों के नवगढ़ कहलाते हैं- जैसलमेर, पूंगल, बीकमपुर, बरसल, मुम्मण, वाहण, मारोठ, देराबर, आसनीकोट और केहरोर।’ [33]

समकालीन डिंगल साहित्य से भी जैसलमेर के नवकोटि होने का औचित्य निम्नांकित उदाहरणों से स्पष्ट होता है-

(अ) देवराज थपे दुरगं जुद्रवा आप घर आये

बाहण हु भय सिध जुनो पार कर जमाये

गढ़ जालोर हुँ भंजे मारे नृप मंडोर

गढ़ अजमेर हूँ गंजे पूंगलगढ़ लीधो प्रकट

कतल भटिंडे कीजिये

देवराज भूप चडते दिवस रतनो आज्ञा धर लिने  [34]

(ब) रतनो मूलो जेतसे छात्राल

करण तेजमल कुल कलाधारी नव कोट

हरा उत खगधारी रणा रतसापाल [35]

(स) खत अखहड़े साभा सुरताणे नित नित ढोबा कटक नवीन

    क्रम राखण ढीना नव कोटा दूदे द्वार नहडीन।

तवारीख जैसलमेर   में प्रतापी रावल देवराज भाटी के नवकोटों का उल्लेख हैदेवराज भी बड़े प्रतापी हुए, नवकोट पंवारों के लिए अब से नवगढ़ नरेश कहे जाते हैं।[36] इसी तवारीख में केहलण   के नवकोटों का विवरण है।[37]

मुंहता नैणसी ने इस सम्बन्ध में एक दोहे का उल्लेख किया है-

पूगल विक्रमपुर नांदणों देरावर केहरोर

माथेणों मुम्मण बाहण, मारोठ अरु भटनेर।[38]

जैसलमेर के सामंत मालदेव भाटी एवं अचलदास छायंण के सम्बन्ध में किसी कवि ने प्रशंसा करते हुए लिखा है-

अचल नव गढ़ आभरण जादम सुरण माल

तउ दिये खेतल हरा महपत दूजो माल।

उपरोक्त उद्धरणों से जोधपुर की बजाय जैसलमेर राज्य के नवकोटि होने की पुष्टि होती है।

मारवाड़ – जोधपुर या जैसलमेर ?

जिस प्रकार जोधपुर की बजाय जैसलमेर राज्य को नौकोटि कहना अधिक उपयुक्त है उसी प्रकार राठौड़ों के जोधपुर राज्य की अपेक्षा भाटियों के जैसलमेर राज्य को मारवाड़ कहना अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है।

मारवाड़ शब्द की व्युत्पत्ति मरुतथा माड़शब्दों से मिलकर हुई है। मरु और माड़ ये दो नाम हैं तथा अलग-अलग प्रदेशों के लिए प्रयुक्त होते थे।  [39]

जैसलमेर का प्रदेश माड़ है और उसके पूर्व का प्रदेश मरु है जिसमें मालानी प्रदेश आता है। मरु और माड़ इन दोनों देशों की सीमाएं परस्पर मिली होने से मरुवाड़ संयुक्त शब्द बन गया। उसी मारुवाड़ का अपभ्रंश मारवाड़ है।

माड़ का अर्थ वितान अर्थात चंदवा होता है। माड निर्जलता में मरु देश का सिरा है इसलिए उसका नाम माड़वाड अथवा मारवाड़ है। इस क्षेत्र के लोग इसे आज भी माड़ कहते हैं।[40] इस क्षेत्र की स्त्रियां लोकगीतों में आज भी माड़ गाती हैं।

भाटी शासक महारावल जैसलदेव ने जैसलमेर बसाया था। तब से माड़ अथवा मारवाड़ को जैसलमेर कहने लगे। मूल में यह राज्य मारवाड़ के नाम से विख्यात था।

संस्कृत शिलालेखों एवं ग्रंथों में जोधपुर राज्य के लिए मालनी प्रदेश के संदर्भ में ‘मरुस्थल’ एवं ‘मरुदेश’ शब्दों का उल्लेख मिलता है।[41] इस प्रकार से मारवाड़ का निकटम तादात्म्य जैसलमेर राज्य से प्रमाणित होता है, न कि जोधपुर से।

नौकोटि मारवाड़ के उपर्युक्त प्रसंग पर सूक्ष्मता से दृष्टिपात करने पर कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य भी जैसलमेर के पक्ष में उद्घाटित होते हैं। उनमें सर्वाधिक स्मरणीय तथ्य तो यह है कि जोधपुर राज्य में नवकोटि कदापि नहीं रहे और न ही जोधपुर के राठौड़ शासकों द्वारा इस प्रकार का कोई दावा किया गया है।

इसके विपरीत जैसलमेर राज्य स्पष्ट रूप से नवकोटि रहा तथा भाटी शासकों का यह दावा भी रहा।

स्मरणीय है कि मध्यकालीन पश्चिमी राजस्थान में परमारों के राजनैतिक प्रभुत्व के पतन हो जाने के पश्चात जैसलमेर के भाटी शासकों का दीर्घकालीन प्राधान्य बना रहा, जबकि जोधपुर राज्य की स्थापना एवं राठौड़ शक्ति का उत्कर्ष निःसंदेह बहुत बाद की घटना है।

भाटी-राठौड़-संघर्ष के उपरांत जैसलमेर राज्य की प्रादेशिक सीमाओं का विघटन होकर जोधपुर राज्य का प्रादेशिक प्रसरण हुआ किन्तु राठौड़ कदापि जैसलमेर के नौ कोटों पर प्रभुत्व स्थापित करने में सफल नहीं रहे।

भाटी शासकों का मध्य-कालीन प्रादेशिक प्रभुत्व एवं गरिमा उनकी छत्राला उपाधि से भी दृष्टिगत होता है [42] जिसकी पुष्टि इस प्रचलित अनुश्रुती से होती है- दिल्ली में छत्र, गजन में छत्र और भारत में जैसलमेर छत्र है। [43]

जैसलमेर क्षेत्र के भाटी शासक स्वयं को पश्चिम के बादशाह भी कहते थे [44] जबकि राठौड़ सामान्यतः रणबंका राठौड़ की ख्याति से विभूषित होते रहे। भट्टिक  संवत का प्रचलन जो भाटी शासक द्वारा किया गया [45]वह उनकी राजनैतिक कीर्ति को प्रदर्शित करता है। राठौड़ नरेश इस दिशा में नगण्य ही रहे। इसलिए नैणसी   की ख्यात के भाषान्तरकार रामनारायण दूगड़ का यह मत उल्लेखनीय है- इसमें कोई संदेह नहीं कि भाटी वंश बहुत प्राचीन है और उत्तरी भारत में पहले उनका प्रबल राज्य रहा।[46]

उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि मध्यकालीन राजस्थान के इतिहास में भौगोलिक एवं राजनैतिक दृष्टि से नौकोटि मारवाड़ अवधारणा का सम्बन्ध सर्वप्रथम किराडू क्षेत्र के परमारों से, तत्पश्चात जैसलमेर राज्य के भाटियों से था न कि जोधपुर राज्य के राठौड़ों से।

डॉ. मोहनलाल गुप्ता


[1] डॉ. मोहनलाल गुप्ता, जालोर का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास, द्वितीय संस्करण, पृ. 127.

[2] प्रतिपाल भाटिया, शोध ग्रन्थ, द परमार्स, पृ 165, मण्डोवर 1 सावन्त हुवो अजमेर 2 सिंध सु गढ़ पूगल 3 गजमल हुवौ, लोद्रवे 4 भाणभ्रु। अलःपल अरबद 5 भोजराज जालन्धर 6, जोगराज धरघाट 7 हुवौ हांसू पारकर 8। नव कोटि किराडु 9 सुजुगत थिर पंवारा हरथापिया धरणीवराह धर भाइयां कोट बांट जू जू किया।

[3] डॉ. दशरथ शर्मा, मरु भारती, जुलाई 1967, पृ. 68.

[4] (अ) विश्वेश्वरनाथ रेउ, मारवाड़ का इतिहास, भाग प्रथम, पृ. 11; (ब) प्रतिपाल भाटिया, द परमार्स, पृ. 165.

[5] रेउ, असोपा एवं भार्गव आदि लेखकों ने अपनी कृतियों में जोधपुर राज्य को मारवाड़ कहा है।

[6]  रेउ, मारवाड़ का इतिहास, पृ. 53-54.

[7] रेउ, पृ. 70-81.

[8]  रेउ, पृ. 83-103.

[9]  रेउ, पृ. 116-145

[10] रेउ, पृ. 210-246

[11] रेउ, पृ. 248-330

[12]  रेउ, पृ. 331-348

[13] रेउ, पृ. 371-395

[14] रेउ, भाग 2, पृ. 429

[15] रेउ, पृ. 382

[16] रेउ, पृ.202.

[17] रेउ, पृ.202.

[18]  रेउ, पृ.202.

[19] रेउ, पृ.202.

[20] वही पृ.202

[21] लक्ष्मीचन्द कृत तवारीख जैसलमेर, पृ.72

[22] लक्ष्मीचन्द कृत तवारीख जैसलमेर, पृ.42

[23] लक्ष्मीचन्द कृत तवारीख जैसलमेर, पृ.42

[24] लक्ष्मीचन्द कृत तवारीख जैसलमेर, पृ.42

[25] लक्ष्मीचन्द कृत तवारीख जैसलमेर, पृ.42.

[26] लक्ष्मीचन्द कृत तवारीख जैसलमेर, पृ.42.

[27] लक्ष्मीचन्द कृत तवारीख जैसलमेर, पृ. 42.

[28] लक्ष्मीचन्द कृत तवारीख जैसलमेर, पृ. 42.

[29] सतीश चन्द्र, पार्टी एण्ड पॉलिटिक्स एट द मुगल कोर्ट।

[30] बाल किशन, नव कोटि मारवाड़, शोध आलेख, राजस्थान हिस्ट्री प्रोसिडिंग्स, वर्ष 1976, पृ. 11-16.

[31] डॉ. दशरथ शर्मा, आलेख मरु भारती, जुलाई 1967, पृ. 68.

[32] जगदीश चंद्र गहलोत, राजपूताने का इतिहास, भाग प्रथम, पृ. 647.

[33] मूथा नैणसी, भाग द्वितीय, काशी संकरण, पृ. 261.

[34] लक्ष्मीचन्द कृत तवारीख जैसलमेर, पृ. 22.

[35] मूथा नैणसी, भाग द्वितीय, पृ. 261.

[36] लक्ष्मीचन्द कृत तवारीख जैसलमेर पृ. 22.

[37] लक्ष्मीचन्द कृत तवारीख जैसलमेर पृ. 44, राजस्थान हिस्ट्री कांग्रेस प्रोसिडिंग्स, ई.1973, पृ. 16 तथा भाटीनामा पृ. 40.

[38]  ओमजी भाट की अप्रकाशित ख्यात।

[39] पं. रामकरण आसोपा, मारवाड़ का मूल इतिहास, पृ. 11.

[40] (अ) रेउ, मारवाड़ का इतिहास, भाग प्रथम, पृ. 1, (ब) जगदीश चंद्र गहलोत, राजपूताने का इतिहास, भाग प्रथम, पृ. 630

[41]  गौरीशंकर ओझा, राजपूताने का इतिहास, चौथी जिल्द बाला भाग, पृ. 1.

[42] जगदीश चंद्र गहलोत, राजपूताने का इतिहास, भाग प्रथम, पृ. 643.

[43] मूथा नैणसी, भाग द्वितीय, पृ. 261.

[44] जगदीश चंद्र गहलोत, राजपूताने का इतिहास, भाग प्रथम, पृ. 646.

[45] डॉ. दशरथ शर्मा, राजस्थान थ्रू दी ऐजेज, प्रथम, पृ. 286.

[46] मूथा नैणसी, भाग 2, पृ. 447.

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