आठवीं शताब्दी ईस्वी से मुस्लिम आक्रांता, भारत भूमि पर आक्रमण कर रहे थे तथा भारत में छोटे-छोटे मुस्लिम राज्यों की स्थापना होती जा रही थी। 12वीं शताब्दी तक पंजाब, सिंध, दिल्ली, अजमेर, कन्नौज, बनारस, हांसी, सिरसा, समाना, भटिण्डा, नागौर, सांभर तथा कोहराम आदि क्षेत्रों पर मुसलमानों का शासन हो गया। थार के मरुस्थल से लेकर गुजरात तथा मालवा में भी मुसलमान अमीर शासन करने लगे।
मुस्लिम आक्रमणों की इस आंधी में हिन्दुओं के छोटे-छोटे राज्य मिट्टी के कमजोर दियों की भांति फड़फफड़ाने लगे जिनमें से कोई दिया अभी बुझ जाता था तो कोई दिया, कुछ समय बाद। ऐसी विकराल आंधी के समक्ष भी मेवाड़ के गुहिल पूरे आत्मविश्वास के साथ टिके रहे। कई बार ऐसे अंधड़ भी आये जिनमें गुहिलों का दीपक बुझता हुआ सा प्रतीत हुआ किंतु इन अंधड़ों के समक्ष, स्वातंत्र्य देवी के आराधक गुहिलों ने हथियार नहीं डाले।
गुहिलों तथा मुसलमानों के बीच एक बड़ी लड़ाई का उल्लेख ‘खुमांण रासो’में मिलता है जिसके अनुसार खलीफा अलमामूं ने खुमांण के समय में चित्तौड़ पर आक्रमण किया। चित्तौड़ की सहायता के लिये काश्मीर से सेतुबंध तक के अनेक हिन्दू राजा आये तथा खुमांण ने शत्रु को परास्त कर चित्तौड़ की रक्षा की।
कर्नल टॉड ने इतिहास की किसी प्राचीन पुस्तक के आधार पर उन राजाओं की सूची दी है जो खुमांण की सहायता के लिये आये। इस सूची में वर्णित राजाओं में से अनेक राजाओं के राज्य उस समय अस्तित्व में नहीं थे किंतु इस वर्णन से इस बात का स्पष्ट संकेत अवश्य मिल जाता है कि मुस्लिम आक्रांताओं तथा खुमांण के बीच बड़ी लड़ाई हुई थी और खुमांण की सहायता के लिये दूर-दूर तक के राजा आये थे।
रायचौधरी ने खुमांण का समय आठवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में मानते हुए लिखा है कि जुन्नीद की फौजों ने जो सिंध का अरब अधिकारी था, मीरामाड (मरुमाड अर्थात् जैसलमेर), मण्डला (मण्डोर), बरवास (ब्रोच), उज्जीन (उज्जैन), अल मलिबह (मालवा) और जुर्ज (गुर्जर) के भागों पर आक्रमण किया।
ओझा ने खुमांणरासो में वर्णित आक्रमण का समय नौंवी शताब्दी ईस्वी माना है तथा उस समय खुमांण (प्रथम) नहीं अपिुत खुमांण (द्वितीय) को मेवाड़ का शासक माना है। अब्बासिया खानदान का अलमामंू, ई.813 से 833 के बीच बगदाद का खलीफा हुआ। उसी काल में चित्तौड़ में ई.812-836 तक खुमांण (द्वितीय) चित्तौड़ का राजा हुआ। अतः चित्तौड़ पर खलीफा की सेना का अभियान ई.813 से 833 के बीच किसी समय हुआ होगा।
इस युद्ध के परिणाम के सम्बन्ध में खुमांणरासो के अतिरिक्त अन्य किसी स्रोत से जानकारी प्राप्त नहीं होती किंतु अवश्य ही इस युद्ध में गुहिलों की विजय हुई होगी क्योंकि खुमांण को गुहिलों के इतिहास में इतनी प्रसिद्धि मिली कि मेवाड़ के गुहिलों को खुमांण भी कहा जाने लगा। यदि राजा खुमांण परास्त हुआ होता तो उसे यह विराट गौरव कतई प्राप्त नहीं हुआ होता।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता