महाराजा सूरजमल कद में लम्बा, शरीर से किंचित् मोटा तथा रंग से सांवला था। उसकी आंखें बहुत चमकदार थीं। वह व्यवहार से शालीन, विनम्र, बुद्धिमान, धैर्यवान, विवेकी, वीर, धर्मप्राण, शरणागत वत्सल एवं दूरदर्शी राजा था। वह अपने पिता बदनसिंह तथा पुत्रों से बहुत प्रेम करता था। उसने अपने पिता के राज्य को कम नहीं होने दिया अपितु निरंतर वृद्धि करता चला गया। राजकुमार जवाहरसिंह के विद्रोह करने पर भी सूरजमल ने आपा नहीं खोया। उसने संकट की घड़ी में रानियों की सलाह को माना और उस पर अमल किया। ई.1754 में एक बार जाट सेना ने मराठों की कुछ स्त्रियां पकड़ लीं। महाराजा ने उन स्त्रियों को सम्मान पूर्वक वापस भिजवा दिया। महाराजा ने नवाब सफदरजंग से एक बार मित्रता की तो अंत तक निभाई। अपने पिता बदनसिंह की तरह सूरजमल भी जयपुर नरेश जयसिंह का सदा सम्मान करता रहा। सूरजमल अपने काल का सबसे समृद्ध राजा था।
उत्तर भारत की सबसे बड़ी शक्ति
अठारहवीं शताब्दी में महाराजा सूरजमल उत्तर भारत की सबसे बड़ी और एकमात्र शक्ति था। उसने विषम परिस्थितियों में भारत की राजधानी के सन्निकट रहकर उत्तर भारत की राजनीति का संचालन किया। मुगलों और मराठों के बीच रहकर उसने अपने राज्य को न केवल बचाये रखा अपितु उसका तेजी से विस्तार किया। होलकर राजकुमार खाण्डेराव की मृत्यु हो जाने पर भी मराठे उससे स्थायी शत्रुता नहीं बांध पाये। सूरजमल के समस्त बड़े शत्रुओं ने समय आने पर सूरजमल की शरण प्राप्त की। जब अहमदशाह अब्दाली ने भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा में प्रवेश करना चाहा, तब उसने अपने पुत्र को दस हजार सैनिकों के साथ उसका मार्ग रोकने के लिये भेजा। भगवान की जन्मस्थली की रक्षा के लिये उसके वीर सैनिकों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिये। ऐसा उस युग में सूरजमल के अतिरिक्त और कोई नहीं कर सकता था। पानीपत की तीसरी लड़ाई में परास्त होकर भागते मराठा सैनिकों को शरण देने वाला सम्पूर्ण उत्तर भारत में अकेला भरतपुर राज्य था। युद्ध क्षेत्र में जाने से वह कभी नहीं घबराता था किंतु दूसरों की बातों में आकर अपनी सुरक्षा को भी खतरे में नहीं डालता था। सम्मुख युद्ध में उसे कोई परास्त नहीं कर सका। उसे धोखे से मारा गया।
महाराजा सूरजमल का राज्य
महाराजा की मृत्यु के समय उसका राज्य भरतपुर, आगरा, धौलपुर, मैनपुरी, एटा, हाथरस, मेरठ, रोहतक, भिवाड़ी, फर्रूखाबाद, मेवात, रेवाड़ी, गुड़गांव तथा मथुरा आदि नगरों एवं दूर-दूर तक के क्षेत्रों तक विस्तृत था।
महाराजा सूरजमल की रानियाँ
महाराजा सूरजमल की रानियों के बारे में निश्चित संख्या तो नहीं बताई जा सकती किंतु कुछ इतिहासकारों का मानना है कि सूरजमल की चौदह रानियां थीं। फ्रांसू ने सूरजमल की छः रानियों के नाम दिये हैं जिनमें से महारानी किशोरी तथा महारानी हँसिया अधिक प्रसिद्ध हुई हैं। महारानी किशोरी, होडल के चौधरी काशीराम की पुत्री थी। रानी हँसिया, सलीमपुर कलाँ के चौधरी रतीराम जाट की पुत्री थी। उसकी अन्य रानियों के नाम गंगा, कल्याणी गौरी तथा खट्टू थे। रानी खट्टू, सूरजमल की खास रानी थी। महारानी हँसिया तथा महारानी किशोरी में राजनीतिक सूझबूझ भी थी जिसके कारण संकट के समय में उन्होंने महाराजा सूरजमल का साथ निभाया। जब महाराजा सूरजमल का निधन हो गया और मराठे जाटों के राज्य को समाप्त करने पर उतारू हो गये तब महारानी किशोरी ने मराठों से मार्मिक अपील की कि वे जाटों के एकमात्र राज्य को नष्ट न करें। मराठों ने उसकी बात मान ली तथा जाटों के राज्य को बने रहने दिया।
महाराजा सूरजमल की संतति
महाराजा सूरजमल को चार रानियों से पांच पुत्र- जवाहरसिंह, रतनसिंह, नवलसिंह, राणजीतसिंह तथा नाहरसिंह हुए। माना जाता है कि इनमें से जवाहरसिंह तथा रतनसिंह राजपूत रानी के पेट से जन्मे थे। रणजीतसिंह तथा नाहरसिंह जाट रानियों से उत्पन्न हुए थे जबकि नवलसिंह की माता माली जाति की थी। महारानी किशोरी ने राजकुमार जवाहरसिंह को गोद ले लिया था। जब जवाहरसिंह ने अपने पिता से विद्रोह किया तब महारानी किशारी ने ही जवाहरसिंह की रक्षा की और उसे क्षमा दिलवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कला एवं साहित्य को संरक्षण
महाराजा सूरजमल को कला एवं साहित्य से बड़ा अनुराग था। उसके दरबार में सूदन, सोमनाथ, अखयराज, शिवराम, वृंदावनदास, कलानिधि, सुधाकर एवं हरवंश आदि बहुत से कवियों को संरक्षण प्राप्त था। सूदन उसका मुख्य दरबारी कवि था। वह महाराजा के साथ समस्त प्रमुख युद्धों में उसके साथ रहा तथा महाराजा द्वारा किये गये युद्धों का वर्णन अपने ग्रंथ सुजान चरित्र में किया। उसके दरबारी कवि सोमनाथ ने सुजान विलास, ब्रजेन्द्र विनोद, माधव विनोद, धु्रव विनोद, शशिनाथ विनोद, प्रेम पचीसी, संग्राम दर्पन, रास पियूष निधि, शृंगार विलास, रामचरित रत्नाकर तथा कृष्ण लीलावती आदि कई ग्रंथ लिखे।
महाराजा सूरजमल ने सोमनाथ को राज्य का दान-अध्यक्ष नियुक्त किया। सोमनाथ तथा कलानिधि ने सम्पूर्ण रामायण का हिन्दी में अनुवाद किया। कवि शिवराम सूरजमल की युवा अवस्था से ही कुम्हेर में उसके साथ रहा। सूरजमल ने उसकी कविता नवधा भक्ति रागरस सार के लिये ई.1735 में उसे 36 हजार रुपये दिये। कवि अखयराम ने सिंहासन बत्तीसी, विक्रम विलास तथा सुजान विलास की रचना की। उदयराम ने गिरिवर विलास एवं सुजान संवत् की रचना की। कवि दत्त की पुस्तक महाराजा सूरजमल की कृपान वीररस की श्रेष्ठ रचना है। महाकवि देव को भी भरतपुर राज्य में संरक्षण मिला। उसने सुजान विनोद नामक ग्रंथ की रचना की।