मऊ-मेडाना के दुर्ग मालवा के पठारी एवं उपजाऊ क्षेत्र में स्थित है। मध्यकाल में यह क्षेत्र हाड़ौती के चौहान शासकों के अधीन हुआ करता था। उन्होंने इस क्षेत्र में और भी कई दुर्ग बनवाए।
मऊ दुर्ग
झालावाड़ जिले में ऊजर नदी के तट पर स्थित मऊ दुर्ग अत्यंत पुराना एवं उपेक्षित सा दुर्ग है। जब सोलहवीं शताब्दी ईस्वी में गागरोन दुर्ग पर पूरी तरह मुगलों का अधिकार हो गया तब गागरोन के पुराने खीची वंश के उत्तराधिकारी मऊ-मेडाना क्षेत्र पर अपना अधिकार जमाये रहे।
इसे महू-मैदाना भी कहा जाता है। यह एक पथरीला सा क्षेत्र है जिसमें बीच-बीच में उपजाऊ खेत स्थित हैं। यहाँ की मिट्टी काली एवं कठोर है फिर भी यह क्षेत्र बहुत हरा-भरा है।
मऊ दुर्ग का स्वामी रायसल खींची, अकबर का समकालीन था। रायसल ने गागरोन पर अधिकार करने की चेष्टा की किंतु वह सफल नहीं हो सका। रायसल के बाद गोपालदास, ईश्वरसिंह, माधोसिंह तथा इन्द्रभाण नामक चौहान शासक हुए। ये बहुत ही छोटे क्षेत्र पर शासन करते थे किंतु स्वयं को गागरोन का राजा कहते और लिखते थे। महू-मैदान (मऊ-मेडाना) तथा रातादेवी मंदिर क्षेत्र में बहुत से शिलालेख तथा छतरियां हैं जिनमें इन्हें गागरोन का राजा लिखा गया है।
आज भी मऊ दुर्ग के कुछ कक्षों में ठाकुरों के देवालय बने हुए हैं जहाँ ठाकुरों के नाम की मनौती एवं पूजा होती है। मऊ दुर्ग परिसर में कई प्राचीन मंदिरों के खण्डहर स्थित हैं जो प्रमुखतः शक्ति की अधिष्ठात्री ‘दुर्गा’ को समर्पित हैं।
भीम सागर बांध के पास एक गुफा है जिसके बारे में कहा जाता है कि इस गुफा से एक सुरंग गागरोन के किले तक जाती है जो यहाँ से 11 मील की दूरी पर है। इस दुर्ग में ई.1711 का लेख लगा हुआ हैै। बाद में मुसलमानों ने इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया। इस दुर्ग के आसपास के जंगलों में शरीफा बड़ी मात्रा में उगता है।
मेडाना दुर्ग
झालावाड़ जिले में ऊजर नदी के किनारे स्थित मानसरोवर झील से तीन किलोमीटर पश्चिम में मेडाना का प्राचीन दुर्ग बना हुआ है। मानसरोवर झील असनावर से उत्तर में उजर नदी के किनारे स्थित है। मेडाना का दुर्ग खींची सरदारों के अधीन था।
दुर्ग में तीन मंदिर, एक छतरी तथा कुछ सतियों के पत्थर स्थित हैं। इनमें से एक पत्थर पर ई.1514 की तथा दूसरे पर ई.1512 की तिथि अंकित है। यह पूरा क्षेत्र ऊजर नदी की घाटी का है, चारों ओर पहाडियां और चट्टानें हैं जिन्हें चीरती हुई नदी वेग से प्रवाहित होती है। आसपास का प्राकृतिक दृश्य देखते ही बनता है। यहाँ घाटीराव के अनेक किस्से कहे जाते है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता