बीकानेर राज्य के सामंत खड़गसिंह ने ई.1608 के आसपास बेनीवाल जाटों से भूकरका छीना तथा भूकरका दुर्ग का निर्माण करवाया। यह पूरा क्षेत्र वैदिक सरस्वती नदी के उपजाऊ क्षेत्र में था तथा बाद में रेगिस्तान में बदल गया था।
भूकरका दुर्ग
भूकरका दुर्ग स्थल श्रेणी का मरुस्थलीय दुर्ग है। यह लघु दुर्ग सामंती काल में स्थानीय शासक का निवास स्थल था।
ठाकुर खड़गसिंह बीकानेर के राठौड़ राजवंश की स्रिंगोत शाखा में उत्पन्न हुआ था। यह शाखा बीकानेर के राव जैतसी के वंशज स्रिंग से चली थी। यह 25 गांवों की जागीर थी। खड़गसिंह के बाद उसका पुत्र कुशलसिंह भूकरका दुर्ग का स्वामी हुआ। वह अपने वचन तथा तलवार का धनी था। वह हर समय भक्तिभाव में लीन रहता था। कहते हैं कि एक साबुत बकरा तथा पांच सेर अनाज खाकर जब वह डकार लेता था तो दो कोस दूर नोहर तक उसकी डकार सुनाई देती थी।
ई.1770 में जब जोधपुर नरेश ने बीकानेर का दुर्ग घेर लिया, तब बीकानेर के राजा ने कुशलसिंह ने बुलावाया। वह अपनी छोटी सी सेना तथा बहुत सी गायों और बैलों को लेकर रात के अंधेरे में बीकानेर नगर के निकट पहुंचा तथा उनके सींगों से मशालें बांध कर जला दीं। इन पशुओं के पीछे उसके आदमी ढोल एवं नगाड़े बजाते हुए मारो-काटो की आवाजें लगाते हुए चले।
उस दिन होली थी तथा जोधपुर की सेना कानासर गांव में होलिका दहन की तैयारी कर रही थी। जब असंख्य मशालों को उन्होंने रात के अंधेरे में अपनी ओर बढ़ते देखा तो उनके होश उड़ गये । जोधपुर की सेना ने होली के कांटे तथा डण्डे को उठाकर ऊंटों पर लादा और वहाँ से भाग छूटे। कानासर से 35 कोस दूर जाकर उन्होंने होली जलाई। इस सम्बन्ध में यह कहावत कही जाती है-
गाडा घाल ऊंटा घाली, होलका कोस पैंतीस चाली।।
कुशलसिंह ने ढोल-नगाड़ों के साथ बीकानेर नगर में प्रवेश किया। किसी बात से नाराज होकर बीकानेर वालों ने कुछ दिन बाद ही कुशलसिंह को जहर देकर मरवा डाला। कुशलसिंह के बाद सवाईसिंह तथा उसके बाद मदनसिंह भूकरका दुर्ग का स्वामी हुआ। उसका खाण्डा 35 सेर से अधिक भारी था। वह जब रणक्षेत्र में घुसता था तो शत्रुदल का सफाया हो जाता था। उसे भी बीकानेर के महाराजा सरदारसिंह ने बीकानेर बुलवाकर धोखे से मरवाया तथा भूकरका का दुर्ग एवं जागीर दबा ली।
कहते हैं कि ठाकुर मदनसिंह मरकर प्रेत हो गया। उसके प्रेत ने बीकानेर वालों को इतना तंग किया कि किसी तांत्रिक की सहायता लेनी पड़ी। मदनसिंह के प्रेत ने भूकरका, अपने नाबालिग पुत्र को देने तथा भूकरका का दुर्ग नया बनाने की शर्त पर बीकानेर छोड़कर गयाजी जाना स्वीकार किया। ठाकुर मदनसिंह के प्रेत की शर्तें मान ली गईं तथा उसकी अस्थियों को गयाजी भिजवाया गया। वर्तमान भूकरका दुर्ग उसी समय का बना हुआ है। ठाकुर मदनसिंह के अस्त्र-शस्त्र आज भी संगरिया के संग्रहालय में सुरक्षित हैं।
नोहरगढ़ दुर्ग
हनुमानगढ़ जिले की नोहर तहसील में, बीकानेर से लगभग 190 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में स्थित नोहर तहसील में नोहरगढ़ दुर्ग के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं। इसका निर्माण बीकानेर राज्य के राठौड़ सामंतों ने करवाया था।
जसाना दुर्ग
हनुमानगढ़ जिले की नोहर तहसील में जसाना गढ़ लगभग डेढ़ सौ साल पुराना बताया जाता है। अब यह खण्डहर अवस्था में है किंतु कुछ दीवारें एवं दरवाजे आज भी खड़े हैं। कुछ आवासीय महल भी सुरक्षित अवस्था में हैं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता