Sunday, October 13, 2024
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भीमगढ़ दुर्ग

सारथल से लगभग तीन किलोमीटर दूर परवन नदी के बायें तट पर एक लुप्त प्रायः भीमगढ़ दुर्ग के प्राचीन खण्डहर बिखरे पड़े हैं। यह परवर्ती मौर्यकालीन दुर्ग माना जाता है।

मौर्य एवं शुंग कालीन दुर्ग

महाभारत काल एवं उसके बाद के काल में बने कुछ दुर्ग, मौर्य काल (ई.पू.322-ई.पू.184) में भी मौजूद थे। इनमें बयाना एवं चित्तौड़ के दुर्ग सर्वप्रमुख हैं।

मध्यमिका (नगरी) का दुर्ग भी मौर्य काल से पहले का बना हुआ था। इस बात के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं कि नगरी का दुर्ग मौर्य काल के आरम्भ होने से कम से कम 118 साल पहले अस्तित्व में था।

आहड़ का दुर्ग भी मौर्य काल में किसी न किसी रूप में मौजूद था। मौर्य काल में अशोक के पुत्र सम्प्रति ने अरावली की पहाड़ियों में एक किला बनाया था जिसके ध्वंसावशेषों पर पंद्रहवीं शताब्दी ईस्वी में महाराणा कुंभा ने कुंभलगढ़ का किला बनवाया।

चित्तौड़गढ़ जिले के गांव मोड़का निम्बाहेड़ा में भी एक मौर्यवंशी किले के अवशेष बताये जाते हैं। यह दुर्ग परवर्ती मौर्य कालीन होना चाहिये। मौर्य तथा शुंग काल में कुछ ऐसी बस्तियों के अस्तित्व में होने के प्रमाण मिलते हैं जिनके प्रमाण मौर्य काल से पहले नहीं मिलते हैं।

इनमें रंगमहल, बड़ोपल आदि के नाम लिये जा सकते हैं। इन बस्तियों की खुदाई से मौर्य एवं शुंग कालीन सामग्री प्राप्त होती है। यद्यपि यहाँ से किसी दुर्ग के अस्तित्व में होने के प्रमाण नहीं मिले हैं तथापि इन बस्तियों से मिली महत्वपूर्ण सामग्री को देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि रंगमहल एवं बड़ोपल में प्राचीन आर्यों के दुर्ग अवश्य रहे होंगे जो हूण आदि आक्रांताओं की क्रूर विनाश लीला की भेंट चढ़ गये।

शुंग काल में गागरोन दुर्ग के अस्तित्व में होने के प्रमाण मिलते हैं।

परवर्ती मौर्यों के दुर्ग

भारत में मगध के मौर्य वंश ने ई.पू.322 से ई.पू.184 तक शासन किया किंतु  उनके वंशज पूरी तरह नष्ट नहीं हुए। वे छोटे-छोटे राजाओं के रूप उत्तर भारत में विभिन्न क्षेत्रों में शासन करते रहे। राजस्थान में उनका अधिकार चित्तौड़ से लेकर कोटा, बारां, झालावाड़ आदि क्षेत्रों पर बना हुआ था। इन्हीं परवर्ती मौर्यों के बनाये हुए कुछ दुर्ग एवं शिलालेख अब भी यत्र-तत्र मिलते हैं। सातवीं शताब्दी इस्वी में पश्चिमी भारत के नाग इनकी अधीनता में शासन करते थे। जब आठवीं शताब्दी ईस्वी में गुहिल ने चित्तौड़ का दुर्ग लिया, उसके बाद से परवर्ती मौर्यों की सत्ता पूरी तरह से समाप्त हो गई।

भीमगढ़ दुर्ग

भीमगढ़ दुर्ग के खण्डहरों पास तीन मंदिर भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पड़े हुए हैं। इनके सामने नदी के दूसरे तट पर एक गणेश मंदिर, एक विष्णु मंदिर तथा एक शिवलिंग स्थापित है।

भीमगढ़ दुर्ग और उसके निकट के तीन देवालय आठवीं शताब्दी से पहले के हैं। दो मंदिरों के एक-एक स्तंभ पर श्री भीमदेव का नाम उत्कीर्ण है। इन अक्षरों की रचना आठवीं शताब्दी के आस-पास की हो सकती है। भीमदेव के नाम पर ही यह दुर्ग भीमगढ़ कहलाता है।

सातवीं शताब्दी इस्वी में इस क्षेत्र पर चित्तौड़ के परवर्ती मौर्य शासकों का शासन होना अनुमानित है। इस शाखा में चित्रांगद मोरी अथवा भीम मोरी नामक बड़ा राजा हुआ जिसने चित्तौड़ के पुराने दुर्ग के स्थान पर चित्रकूट नामक नया दुर्ग बनवाया जो कालांतर में चित्तौड़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। पर्याप्त सम्भव है कि सारथल के निकट स्थित भीमगढ़ दुर्ग का निर्माण अथवा पुनरुद्धार इसी भीम मोरी ने करवाया हो।

इन मंदिरों के गर्भगृह सम चतुर्भुजाकार हैं। गर्भगृह से लगा हुआ मण्डप एवं उपासना गृह आयतकार हैं। बायें किनारे पर गणेश मंदिर में खड़े हुए गणपति की प्रतिमा है जो दसवीं शताब्दी से भी पहले की है। विष्णु मंदिर भी तत्कालीन स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।

एक नष्ट मंदिर के खण्डहरों के मध्य विशाल शिवलिंग दर्शनीय है। यह शिवंलिग चतुष्कोण विशाल योनि पट्ट में स्थित है। योनिपट्ट तीन विशाल पत्थरों का बना हुआ है जो एक दूसरे के उपर स्थित हैं और तीनों की ऊँचाई कुल मिलाकर छः फुट के लगभग है। तीनों पत्थरों के चारों पार्श्वों पर सुन्दर बेल-बुटे खुदे हुए हैं। योनिपट्ट का निम्नभाग गर्भगृह की सतह से लगभग छः फुट नीचा है और उसके चारों और परिक्रमा का स्थान है।

वृहत् शिवलिंग पर छोटे-छोटे सैकड़ों लिंग खुदे हुए हैं जो इसे सहस्रलिंग का स्वरूप प्रदान करते हैं। शिवालय पूरी तरह नष्ट हो चुका है तथा पत्थरों का ढेर चारों और पसरा हुआ है। भीमगढ़ में अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियां पड़ी हुई हैं जो दसवीं शती से पूर्व की अनुमानित होती हैं।

यहीं पर 12वीं शताब्दी का बृषभषेन का लेख भी है, जिससे पता चलता है कि इसकी स्थापना राजा भीमदेव ने की थी। महावीर स्वामी की एक प्रतिमा पर वि.सं.1082 खुदा हुआ है। रियासतकाल में ही यह ऐतिहासिक सम्पदा, खण्डहरों में बदल गई थी। भीमगढ़ दुर्ग के बारे में किसी भी प्राचीन ग्रंथ में कोई उल्लेख नहीं मिलता। केवल जनश्रुतियों में ही इसका नाम भीमगढ़ दुर्ग विख्यात है।

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