तन्नोट दुर्ग अब अस्तित्व में नहीं है। अब इसका केवल इतिहास ही रह गया है। इस दुर्ग को भाटी शासक तन्नूजी ने बनवाया था।
भाटियों के दुर्ग
भाटी, उत्तर भारत के प्राचीन यदुवंशी क्षत्रियों की एक शाखा है जो भटनेर पर शासन किया करती थी। भाटियों ने उत्तर भारत में अपनी नौ राजधानियाँ इस प्रकार से स्थापित कीं-
मथुरा, काशी, प्रागबढ़, गजनी अरु भटनेर।
दिगम, दिराबर, लोद्रवा, नम्मी जैसलमेर।
उपरोक्त नौ राजधानियों में से भटनेर, लोद्रवा तथा जैसलमेर वर्तमान राजस्थान में हैं। मूथा नैणसी ने एक प्राचीन दोहे का उल्लेख इस प्रकार किया है-
पूगल बिक्मपुर नांदणों देरावर केहरोर।
माथेणों मुम्मण बाहण, मारोठ अरु भटनेर।।
अर्थात्- पूंगल, बीकमपुर, बरसल, मुम्मण, बाहण, मारोठ, देरावर, आसनीकोट और केहरोर।
एक डिंगल काव्य से जैसलेर के राजा देवराज भाटी के नौ किलों का उल्लेख इस प्रकार हुआ है-
देवराज थपे दुरगं लुद्रवा आप घर आये।
बाहण हु भय सिंध जुनो पार कर जमाये।
गढ़ जालोर हुं भंजे मारे नृप मंडोर
गढ अजमेर हुं गंजे पूंगलगढ़ लीधो प्रकट।
कतल भटिंडे कीजिये
देवराज भूप चडते दिवस रतनो आज्ञा धर लिने।।
तन्नोट दुर्ग
तन्नोट दुर्ग यदुवंशी भाटियों ने बनवाया। ये लोग भटनेर से चलकर तन्नोट आये। मान्यता है कि राव तन्नूजी भाटी ने आठवीं शताब्दी ईस्वी में तन्नोट दुर्ग बनवाया। मरुस्थल में आने के बाद से भाटियों का लंगों, वराहों, पंवारों तथा झालों से निरन्तर झगड़ा चलता रहा। जय-पराजय दोनों पक्षों में होती रहती थी किन्तु भाटियों को दबाया नहीं जा सका।
राव विजयराज (प्रथम) के समय में सारे शत्रुओं ने मिलकर एक षड़यन्त्र किया और विजयराज के पांच वर्षीय पुत्र देवराज के लिये भटिण्डा के वराह राजा अमराजी की पुत्री हरकंवरी का विवाह प्रस्ताव भिजवाया। विजयराज अपने पुत्र देवराज तथा सात सौ भाटी सरदारों को लेकर भटिण्डा पहुंचा।
जब विवाह सम्पन्न हो गया और बारात निश्चिंत होकर सो गई, तब वराह सेना ने सोती हुई बारात पर हमला बोल दिया। राव विजयराज अपने सरदारों सहित वहीं मारा गया। बालक देवराज को उसकी सास ने किसी तरह छिपाकर एक ऊंट-पालक (राईका) के साथ भगा दिया।
राईका, भाटी राजकुमार देवराज को लेकर तन्नोट आया और एक पुष्करणा ब्राह्मण के घर छोड़ दिया। वराह सेनाओं ने तन्नोट पर भी आक्रमण किया। वृद्ध तन्नूजी भाटी अपने वीर सैनिकों को साथ लेकर किले के बाहर निकला और समंरागण में जूझ मरा। यह तन्नोट का पहला और भाटियों का तीसरा साका था। तन्नोट दुर्ग भाटियों के हाथ से निकल गया और भाटी पुनः राज्य विहीन हो गये।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता