झालावाड़ की बुनकर महिलाएं अपने हथकरघे पर तरह-तरह के कपड़े बुनकर देश-विदेश में निर्यात कर रही हैं।
झालावाड़ जिले के असनावर, रायपुर, झालरापाटन, झिरी, सुनेल, मोलक्या, देवरी तथा निकटवर्ती गांवों में 200 से अधिक बुनकर महिलाएं, महिला सशक्तीकरण की मिसाल बनकर उभरी हैं। वे अपने घरों में बैठकर साड़ी, खेस, सफेद फैब्रिक, तौलिये, बुनती हैं तथा दरी, पट्टी, गलीचे एवं एक किलो वाली रजाइयां भी बनाती हैं।
इस आय के लिये उन्हें नरेगा में काम नहीं मांगना पड़ता, खेतों में चिलचिलाती धूप में फावड़ा-कुदाली नहीं चलानी पड़ती तथा सिर पर टोकरा उठाकर गलियों में सामान बेचने नहीं जाना पड़ता। न ही कमठे पर जाकर सिर पर पत्थर ढोने पड़ते हैं। इतना ही नहीं, इस आमदनी के बल पर ये महिलाएं अपनी गृहस्थी का खर्च उठाने के साथ-साथ अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में भी पढ़ा रही हैं। वे जानती हैं कि पढ़ाई का क्या महत्व है!
कशीदाकारी और ब्लॉक प्रिण्टिंग भी हो रही है गांवों में
गांव की महिलाएं हथकरघे पर खेस तथा चद्दर का मोटा कपड़ा बुनने तक ही सीमित नहीं रही हैं। वे बड़ी सफाई से सफेद रंग का मजबूत और महीन कपड़ा बुनती हैं जिसे देखकर कपड़ा-मिलें भी पानी मांग लें। इस कपड़े का वे मनचाहा अर्ज रखती हैं तथा रजाई के खोल, चद्दर आदि बनाने के लिये उसकी सिलाई, कशीदाकारी, ब्लॉक प्रिण्टिंग आदि भी स्वयं करती हैं।
दिल्ली, भोपाल और जयपुर तक जाती हैं
ये महिलाएं बहुत कम पढ़ी-लिखी हैं किंतु हिम्मत के बल पर उन्होंने अपनी सारी झिझक को पीछे छोड़ दिया है जिसके चलते वे अब केवल अपने घरों तक ही सीमित नहीं रह गई हैं, अपतिु अपने द्वारा तैयार किये गये कपड़े को जिला उद्योग केन्द्र तथा महिला एवं बाल विकास विभाग के सहयोग से दिल्ली, जयपुर, जोधपुर, अजमेर तथा भोपाल में लगने वाले हस्तशिल्प मेलों तथा प्रदर्शनियों में ले जाकर बेचती हैं। दिल्ली में 10 दिन में लगभग 5 से 6 लाख रुपये तक का माल बिक जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय फैशन डिजाइनर बीबी रसैल हैरान हुईं
बांगलादेश की अंतर्राष्ट्रीय फैशन डिजाइनर बीबी रसैल 7 मार्च 2016 को झालावाड़ जिले की यात्रा पर आईं तथा इन महिला बुनकरों के गांव में जाकर उनसे मिलीं। उन्होंने इन महिला बुनकरों, रेडिमेड कपड़े सिलने वाले महिला स्वयं सहायता समूहों तथा कशीदाकारी करने वाले महिला स्वयं सहायता समूहों से बात की एवं असनावर गांव की महिला बुनकरों को हाथकरघे पर काम करते हुए देखा।
उन्होंने झालावाड़ जिले की असनावर, रायपुर तथा निकटवर्ती गांवों में लगभग 200 महिलाओं द्वारा बड़े स्तर पर कपड़ा बुने जाने को महिला सशक्तीकरण का बड़ा उदाहरण बताया तथा कहा कि यहां हर महिला आत्मविश्वास से अपना स्वयं का कार्य घर में बैठकर कर रही है तथा प्रत्येक महिला स्वाभिमान के साथ प्रतिमाह 5 से 6 हजार रुपये कमा रही है।
गांधीजी के सपने के साकार होने जैसा है यह
बीबी रसेल का मानना है कि झालावाड़ जिले की महिलाओं की अभूतपूर्व सफलता, गांधीजी द्वारा देखे गये सपने को पूरा करने जैसी है। गांधीजी कुटीर उद्योगों के माध्यम से परिवारों तथा गांवों को आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे। वे गांवों में सामुदायिक जीवन के पक्षधर थे। झालावाड़ जिले की बुनकर महिलाओं ने इन परिकल्पनाओं को साकार करके दिखाया है। उन्होंने कहा कि बांगलादेश के लोग आज भी गांधीजी को आदर्श मानते हैं। मेरे स्वयं के पिता जीवन भर गांधीजी के आदर्शों पर चले।
वसुंधरा राजे ने उठाया था पहला कदम
आज से लगभग 6 साल पहले मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने बीबी रसेल को सलाह दी थी कि वे झालावाड़ आयें तथा यहां काम कर रहीं निर्धन बुनकर महिलाओं को प्रशिक्षित करें ताकि इनके द्वारा बुना गया कपड़ा बड़े शहरों में भी बिक सके। जब बीबी रसेल यहां आई थीं तब यहां के बुनकरों की कला इतनी विकसित नहीं थीं किंतु उस समय दिये गये प्रशिक्षण के बाद उनकी कला में सुखद सुधार आया है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निकल सकती है अच्छी मांग
बीबी रसैल का मानना है कि झालावाड़ के महिला बुनकर समूहों द्वारा पक्के रंगों का प्रयोग किया जा रहा है, अच्छी डिजाइनें काम में ली जा रही हैं तथा अच्छी गुणवत्ता का धागा प्रयुक्त हो रहा है। इस कारण इनके द्वारा उत्पादित साड़ियों, खेसों, तौलियों, दरियों, गलीचों तथा सफेद खादी की राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अच्छी मांग निकलने की संभावना है।
बीबी रसैल ने असनावर में तैयार किये जा रहे चौड़े पाट के सफेद कपड़े की गुणवत्ता को देखकर सुखद आश्चर्य व्यक्त किया और कहा कि यह बहुत अच्छा और बहुत सस्ता है। गांव में ही इस कपड़े पर ब्लॉक प्रिंटिंग भी की जा रही है। गांव में 1 किलो भार की अच्छी किस्म की रजाइयों को देखकर उन्होंने कहा कि इसकी राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी मांग हो सकती है।
अंतर्राष्ट्रीय फैशन डिजाइनर ने खरीदी असनावर की खादी
बीबी रसैल ने स्वयं भी अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों में प्रदर्शित करने के लिये इन महिलाओं से 7-7 मीटर लम्बे खेसों के दो थान बनवाये हैं। कुछ दरियां, तौलिये एवं चद्दरें भी तैयार करवाई हैं। उन्होंने असनावर गांव में तैयार सफेद खादी स्वयं अपने लिये खरीदी। उन्होंने एक दर्जन तौलिये भी बांगलादेश ले जाने के लिये खरीदे।
गलीचे देखकर हर कोई रह जाता है हैरान
गलीचे और नमदे बनाने का काम परम्परागत रूप से राजस्थान में होता आया है किंतु असनावर की महिलाओं ने सूत के प्रयोग से ऐसे कलात्मक गलीचे बनाये हैं और उन्हें ऐसे मनोहारी रंग प्रदान किये हैं कि देखने वाला दांतों तले अंगुली दबा लेता है।
जिला स्तर पर बनाई जा रही है वैबसाइट
जिला प्रशासन इन महिला बुनकरों के लिये एक वैबसाइट बनवा रहा है ताकि झालावाड़ के उत्पादों की बिक्री राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संभव हो सके। जिला प्रशासन का मानना है कि असंगठित रूप से काम करने के कारण इन महिलाओं को उनके उत्पादों की अभी भी कम कीमत मिल रही है। यदि इन्हें सुसंगठित विपणन व्यवस्था से जोड़ दिया जाये तो इनकी आय में अच्छी वृद्धि हो सकती है।
इस वैबसाइट पर, तैयार उत्पादों के नमूनों के चित्रों के साथ-साथ महिला बुनकरों एवं अन्य आर्टीजन्स के नाम एवं सम्पर्क सूत्र आदि उपलब्ध कराये जायेंगे ताकि क्रेता सीधे ही इन कारीगरों से माल खरीद सकें तथा बिचौलियों की भूमिका को समाप्त किया जा सके। जिला प्रशासन का प्रयास है कि और भी गांवों की महिलाएं इस काम को सीखें और झालावाड़ इस कार्य के लिये कोटाडोरिया की तरह एक ब्राण्ड बन जाये।
यदि जिला प्रशासन तथा राज्य सरकार के अंतर्गत आने वाले विभिन्न विभाग इस कार्य में सहयोग दें तो निश्चित रूप से झालावाड़ की बुनकर महिलाएं इस क्षेत्र के अर्थशास्त्र को नए अर्थ दे सकती हैं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता