कामां दुर्ग अब अस्तित्व में नहीं है। कामां को पौराणिक काल में काम्यक वन कहा जाता था। यह सम्पूर्ण क्षेत्र ब्रज क्षेत्र में स्थित था। भगवान श्रीकृष्ण एवं राधाजी की बहुत सी लीलाएं काम्यक वन की बताई जाती हैं। संभवतः उस काल में यहाँ केवल वन क्षेत्र ही अस्तित्व में था। काम्यक वन में नगर की स्थापना विक्रम संवत की पहली शताब्दी में होनी अनुमानित है।
कामां को दत्तवंश के राजा कामदत्त की राजधानी कहा जाता है। गुप्त काल में कामां प्रसिद्ध स्थान था। आठवीं शताब्दी ईस्वी में कामां में एक दुर्ग का निर्माण करवाया गया। संभवतः इससे पहले भी यहाँ कोई दुर्ग यहाँ रहा हो किंतु अब उसके प्रमाण प्राप्त नहीं होते।
आठवीं शताब्दी के दुर्ग का निर्माण संभवतः कुषाण शासकों द्वारा करवाया गया था। वत्खदामन इस वंश का अंतिम राजा था जो आठवीं शताब्दी ईस्वी में हुआ। बाद में यह दुर्ग प्रतिहारों के अधीन चला गया। ई.1032 में कामां पर लक्ष्मीनिवास नामक स्थानीय शासक राज्य करता था जो प्रतिहार नरेश भोज का सामंत था।
बयाना के यादव वंश के राजाओं ने भी इस दुर्ग पर लम्बे समय तक अधिकार रखा। आगे चलकर इस दुर्ग पर मुसलमानों का अधिकार हो गया। ई.1271 के एक शिलालेख के अनुसार मुहम्मद हाजी यहाँ का गवर्नर था। ई.1353 में दिल्ली के सुल्तान फिरोज तुगलक ने दुर्ग पर अधिकार कर लिया। इस दुर्ग के पुरातात्विक अवशेष काम की पहाड़ी पर मिलते हैं।