कोटा जिले में स्थित आगर की पुरातात्विक सामग्री करई नदी के बाईं ओर के तट पर स्थित एक ऊंचे स्थान पर बिखरी पड़ी है। इस सामग्री में मूर्तियां एवं मंदिरों के अवशेष प्रमुख हैं।
हिन्दू राजाओं के अधीन होने के कारण हाड़ौती क्षेत्र में मूर्तिशिल्प कला एवं मन्दिर-वास्तु कला का सदियों तक विकास हुआ। हाड़ौती क्षेत्र में बहने वाली चम्बल, कालीसिन्ध, पार्वती, चन्द्रभागा तथा परवन आदि नदियों ने मानव बस्तियों को बसने के लिए अनुकूल परिवेश उपलब्ध करवाया।
इन नदियों के किनारे देवालयों के निर्माण की एक बाढ़ सी आ गयी। इस भूमि में अनेक देवालयों का निर्माण हुआ। बाद में जब मुस्लिम आक्रांताओं ने इस क्षेत्र को रौंदना आरम्भ किया तो उन्होंने इन मंदिरों को तोड़कर आग के हवाले कर दिया तथा देव मूर्तियों को तोड़कर कसाइयों को दे दिया जिन्हें वे मांस तोलने के काम में लेते थे।
हाड़ौती क्षेत्र की नदियों के किनारे स्थित पुरावशेष इस क्षेत्र में हुए सांस्कृतिक निर्माण एवं विध्वंस का इतिहास कहते हैं।
आगर की पुरातात्विक सामग्री हाड़ौती क्षेत्र में कोटा जिले की शाहबाद तहसील में स्थित है। है। इसे पुरानी आगर कहते हैं जहाँ पुरातात्विक सामग्री पड़ी हुई है। पुरानी आगर करई नदी के बायें तट पर काफी ऊंचे स्थान पर थी। पुरानी आगर में वर्तमान समय में मानव बस्ती नहीं है किंतु यहाँ के देवालयों के खंडहर अपने अतीत की कहानी करते हैं। नई आगर करई नदी के दक्षिणी तट पर बसी हुई है। जब मुसलमानों ने पुरानी आगर तोड़ दी, तब हिन्दुओं ने नई आगर बसाई।
वास्तुकला एवं मूर्ति शिल्पकला के आधार पर पुरानी आगर की पुरातात्विक सामग्री 12वीं शती ईस्वी की सिद्ध होती है। विध्वंसित देवालयों में योगनारायण तथा भगवान शिव का मन्दिर प्रमुख हैं।
(1) योग नारायण देवालय के खण्डहर-
देवालय के गर्भगृह का आंशिक भाग अवशिष्ट है। मण्डप का अधिकांश भाग गिर चुका है। किंतु इसके स्तम्भों पर कमल का अकन सुन्दर है। देवालय की द्वारशाखायें यथावत हैं। द्वारशाखाओं के सिर दल के ललाट बिम्ब पर योगनारायण की प्रतिमा का अंकन है। देवालय के निर्माण में लाल रंग के बलुए पत्थर का प्रयोग हुआ है। देवालय के ठीक सामने के बाह्य भाग में हनुमानजी की एक खण्डित प्रतिमा पड़ी हुई है।
(2) शिव देवालय के खण्डहर
इस देवालय के निर्माण में भी लाल बलुए पाषाण-खण्डों का प्रयोग हुआ है। देवालय के ध्वस्त वास्तुखण्डों पर कई प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं। मुख्य प्रतिमाओं का विवरण इस प्रकार है-
(1) सूर्य-
सूर्य की स्थानक प्रतिमा एक वास्तुखण्ड पर उत्कीर्ण हैं जो गर्भगृह के बाह्य भाग का अंग है। प्रतिमा मूर्तिकला की दृष्टि से श्रेष्ठ है तथा इसका माप 10×75×20 सेंटीमीटर है।
(2) चतुर्मुख शिवलिङ्ग-
यह शिवलिङ्ग भूरे बलुए पाषण से निर्मित है। इस शिवलिङ्ग के बिलकुल पास ही पाषाण पट्ट पर देवनागरी लिपि में तीन पंक्तियों का लेख उत्कीर्ण है किंतु सुपाठ्य नहीं होने से इसके विषय की जानकारी प्राप्त करना कठिन है। शिवलिङ्ग के इर्द-गिर्द शिववाहन नंदी की छः सुन्दर पाषाण प्रतिमाएं पड़ी हुई हैं। इनमें से कुछ नन्दी प्रतिमायें क्षतिग्रस्त हैं।
शिव देवालय के खण्डहरों के पास में ही एक चबूतरा बना हुआ है। इस चबूतरे पर तीन पाषाण प्रतिमायें पड़ी हुई हैं जो मूर्तिशिल्प की दृष्टि से सुन्दर हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
(1) नृत्य गणेश-
नृत्य गणेश नृत्यमुद्रा में हैं। इनके हाथों की संख्या आठ है जिनमें आयुध परशु, दन्त तथा मोदक पात्र आदि धारण किए हुए हैं।
(2) नवग्रह-
द्वारशाखाओं के सिर दल भाग पर नवग्रह उत्कीर्ण है। वर्तमान में जो सिर दल का भाग देखने को मिलता है उस पर मात्र पांच ग्रहों का अंकन ही बचा है। सिर दल के ललाट बिम्ब पर शिव को अन्धकासुर का वध करते हुए दिखाया गया है।
(3) देवी-
एक वास्तुखण्ड पर चतुर्हस्त देवी का अंकन है जो देवालय के गर्भगृह के बाह्य भाग में स्थित थी। देवी का लांछन स्पष्ट न होने से नामांकन सम्भव नहीं है किंतु शिल्प की दृष्टि से यह भव्य प्रतिमा है।
आगर की पुरातात्विक सामग्री में विषय एवं शिल्प की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण प्रतिमा शीर्ष विहीन पूतना की है। पूतना ने बालकृष्ण के पैर दायें हाथ से मजबूती से पकड़ रखे हैं तथा बायां हाथ गर्दन के पीछे लगाया हुआ है। इस प्रतिमा का माप 40×35×18 सेंटीमीटर है। यह प्रतिमा किसी वास्तुखण्ड का भाग न होकर स्वतंत्र रूप से अलग से बनी हुई है।
आगर की पुरातात्विक सामग्री विषय एवं शिल्प की दृष्टि से तो महत्वपूर्ण है ही, साथ ही इतिहास की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। देव प्रतिमाओं की वेशभूषा तथा आभूषणों से ज्ञात होता है कि आगर की पुरातात्विक सामग्री 12शताब्दी ईस्वी की है तथा मालवा के परमार मन्दिरों से साम्य रखती है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता