Sunday, October 13, 2024
spot_img

राष्ट्रीय राजनीति में महाराणा स्वरूपसिंह की भूमिका

3 जून 1842 को महाराणा सरदारसिंह का निधन हुआ। उसके निःसंतान होने के कारण उसके छोटे भाई सरूपसिंह को मेवाड़ का महाराणा बनाया गया। महाराणा स्वरूपसिंह मेवाड़ का पहला महाराणा था जिसने राज्य के कार्यों में अपने अधिकारों का प्रयोग किया और राज्य की आर्थिक सम्पन्नता को पुनर्स्थापित किया। उसने सामंतों पर अपने सत्ताधिकारों का प्रयोग किया और उनमें से कुछ को दण्डित किया तथा कुछ की जागीर कम कर दी।  अंग्रेज अधिकारी महाराणा के इन कार्यों का समर्थन करते रहे तथा महाराणा ने राज्य के समांतों पर फिर से लगभग वही दबदबा स्थापित कर लिया जो मराठों द्वारा फैलाई गई अराजकता से पहले हुआ करता था।

सरूपसाही की राजनीति

महाराणा सरूपसिंह ने ई.1849 में कर्नल रॉबिन्सन से सहमति प्राप्त कर चांदी का नया रुपया चलाया जो सरूपसाही के नाम से प्रसिद्ध हुआ। महाराणा ने इस रुपये पर अपना नाम नहीं लिखकर, एक तरफ ‘चित्रकूट उदयपुर’ तथा दूसरी तरफ ‘दोस्ति लंधन’शब्द अंकित करवाये। इस सिक्के पर ‘चित्रकूट उदयपुर’ के नीचे चित्तौड़ दुर्ग का प्रतीक चिह्न एवं ‘दोस्ति लंधन’ के नीचे इंग्लैण्ड के चारों तरफ के समुद्र की प्रतीक लहरों का अंकन करवाया गया। यह सिक्का अंग्रेजों के द्वारा बहुत पसंद किया गया। कर्नल रॉबिन्सन ने महाराणा को लिखा- ‘आपने सिक्के पर ‘दोस्ति लंधन’ शब्द लिखवाये हैं जिनसे आपके हृदय का प्रेम प्रकट होता है।’ यह एक ऐतिहासिक सिक्का था। भारत के किसी भी राजा ने इस प्रकार का सिक्का जारी नहीं किया था जिसमें राजा का नाम नहीं लिखकर दोस्ति लंधन जैसे शब्द लिखे गये हों जिनसे मेवाड़ राज्य की गरिमा का पता चलता था। यह सिक्का पूरे देश में प्रसिद्ध हुआ और आज भी हजारों लोगों के निजी संग्रह की शोभा बढ़ाता है।

महाराणा की प्रगति से अंग्रेजों में चिंता

महाराणा की सुदृढ़ होती स्थिति से अंग्रेजों में चिंता उत्पन्न होना स्वाभाविक था। अंग्रेजों को आभास होने लगा था कि स्वरूपसिंह वित्तीय स्वाधीनता प्राप्त करने के पश्चात् अपनी सत्ता का अधिक प्रयोग कर रहा था। साथ ही अंग्रेजों में यह विचार भी प्रभावशाली हो रहा था कि उन्होंने 1818 से महाराणा का कुछ अधिक ही समर्थन किया था। इसलिये सामंतों में असंतोष व्याप्त था।  साथ ही महाराणा सती प्रथा को बंद करने के प्रश्न पर अंग्रेजी सुझाव के अनुसार आदेश प्रसारित नहीं कर रहा था। इसिलये 1854 के कौलनामे में अंग्रेजों ने घोषणा की कि वे महाराणा के सत्ताधिकार का उसी सीमा तक समर्थन करेंगे जहाँ तक उसके कार्य न्यायसंगत होंगे ओर जहाँ तक वह अंग्रेज अधिकारियों की सहमति से कार्य करेगा।

To purchase this book, please click on photo.

सामंतों पर जुर्माना उसी स्थिति में ठीक होगा जबकि उसे लिखित आदेशों द्वारा कारण सहित लागू किया जाएं  यह कौलनामा लागू नहीं हो सका क्योंकि ई.1857 का विप्लव हो गया। ई.1858 में महाराणा ने विक्टोरिया को एक पत्र लिखा जिसमें ब्रिटिश क्राउन  के प्रति विश्वास व्यक्त किया गया था तथा महारानी के प्रति विनम्र शब्दों का प्रयोग किया गया था। संभवतः कुछ अंग्रेज अधिकारी महाराणा के विरुद्ध भीतर ही भीतर अभियान चला रहे थे इस कारण मेवाड़ को निम्बाहेड़ा परगना छोड़ना पड़ा तथा वहाँ से वसूल किया गया राजस्व भी लौटाना पड़ा।

1857 की क्रांति में महाराणा द्वारा अंग्रेजों की प्राणरक्षा

ई.1857 की सशस्त्र सैनिक क्रांति के समय स्वरूपसिंह मेवाड़ का महाराणा तथा कप्तान शावर्स मेवाड़ एजेंसी का पॉलिटिकल एजेंट था। सैनिक विद्रोह के समाचार मिलते ही महाराणा ने उसे जगमंदिर महल मंे ठहराया और उसकी सुरक्षा का पूरा प्रबंध किया। नीमच की छावनी में सैनिक विद्रोह हुआ तथा विद्रोही सैनिकों ने डूंगला गांव में 40 अंग्रेज स्त्रियों एवं बच्चों को घेर लिया। महाराणा ने विद्रोही सैनिकों को डूंगला से निकालकर अंग्रेज स्त्रियों एवं बच्चों को निकालने में शावर्स की सहायता की।

महाराणा के व्यवहार के सम्बन्ध में शावर्स के सहायक कप्तान एंसली ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है- ‘कल प्रातः महाराणा स्वयं हमें धैर्य बंधाने तथा हमारी देखभाल करने के लिये हमारे यहाँ आया और हमारे बच्चों को अपने पास बुलाकर दो-दो मुहरें दीं। फिर सायंकाल को वह उन्हें अपने महल में ले गया जहाँ उनमें से हर-एक को उसने अपनी ओर से दो-दो अशर्फियां दीं और उतनी ही महाराणी की तरफ से भी दिलवाईं। शिष्टता, दयालुता तथा उदारता में महाराणा की कोई समता और कोई नहीं कर सकता।

नीमच में हुए सैनिक विद्रोह का दमन करने एवं तात्या टोपे को मेवाड़ में नहीं टिकने देने में महाराणा की सेना ने महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। नीमच से उदयपुर आये डॉ. मरे ने शावर्स को लिखा- ‘वास्तव में हम लोग महाराणा और आपके अत्यंत अनुगृहीत हैं। मेवाड़ के सरदारों तथा सेना को साथ लेकर जब आप डूंगला पहुंचे तब मुझे जो प्रसन्नता हुई उसे मैं कभी नहीं भूलूंगा। वह बड़ा ही नाजुक वक्त था। यदि महाराणा हमारा विरोधी हो जाता, तो इस संसार में हमें और कोई नहीं बचा सकता था। 

ई.1858 में भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के राज्य का दायित्व, ब्रिटिश क्राउन ने ले लिया। नयी व्यवस्था के तहत गवर्नर जनरल को ब्रिटिश भारत में गवर्नर जनरल कहा गया किंतु देशी राज्यों से सम्बन्ध स्थापित करते समय उसे वायसराय कहा गया। मेवाड़, मारवाड़, जयपुर एवं बीकानेर के शासकों को 17 तोपों की सलामी लेने का अधिकार दिया गया।  विद्रोह शांत हो जाने के बाद, ब्रिटिश सरकार देशी राज्यों के नरेशों के साथ प्रिय बालकों जैसा व्यवहार करने लगी। विद्रोह के समय राजाओं द्वारा दी गई सेवाओं के लिये, उन्हें पुरस्कृत किया गया। जोधपुर नरेश तखतसिंह को ई.1862 में  उत्तराधिकारी गोद लेने की सनद प्राप्त हुई। 

जयपुर नरेश रामसिंह (ई.1835-80) को कोट कासिम का परगना दिया गया तथा ई.1859 में आयोजित आगरा दरबार में उसकी प्रशंसा की गयी।  ई.1861 में उसे इंडियन लेजिस्लेटिव कौंसिल का सदस्य नामित किया गया।  मेवाड़ महाराणा स्वरूपसिंह को 20 हजार रुपये का नगद पुरस्कार दिया गया।  बीकानेर नरेश सरदारसिंह को ए. जी. जी. ने राजपूताना के समस्त शासकों में सबसे बढ़कर बताया।  गवर्नर जनरल ने उसे खिलअतें प्रदान कीं तथा महाराजा को हिसार जिले में 41 गांव प्रदान किये गये।  गदर के समय महाराणा स्वरूपसिंह को टोंक से नींबाहेड़ा का परगना भी वापस मिल गया था जो महाराणा अरिसिंह के सयम में चला गया था किंतु पॉलिटिकल एजेंट की नाइत्तिफाकी से यह परगना महाराणा के कब्जें में नहीं रह सका और पुनः टोंक नवाब को मिल गया। 

इस प्रकार मेवाड़ महाराणा को अंग्रेज सरकार की ओर से सबसे कम पुरस्कार मिला। इसका कारण स्पष्ट है कि जहाँ जयपुर, जोधपुर और कोटा आदि राज्यों के राजाओं ने अंग्रेजों का राज बचाने के लिये अपने ही राज्य के विद्रोही सैनिकों को मारा डाला, वहीं महाराणा ने स्वयं को, अंग्रेज महिलाओं और बच्चों के प्राण बचाने तक सीमित रखा। उसने उस प्रकार बढ़-चढ़ कर अंग्रेजों की सेवा नहीं की जिस प्रकार अन्य राज्य कर रहे थे। अतः स्वाभाविक था कि महाराणा को सबसे कम पुरस्कार मिलता।

महाराणा स्वरूपसिंह का निधन

महाराणा स्वरूपसिंह ने निःसंतान होने के कारण, अपने भाई शेरसिंह के पोते शंभुसिंह को दत्तक लेकर अपना उत्तराधिकारी बनाया। 16 नवम्बर 1861 को महाराणा का निधन हो गया तथा 14 वर्षीय शंभुसिंह, मेवाड़ का महाराणा हुआ।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source