अकबर तथा शाहजहां के काल में आगरा, फतेहपुर सीकरी तथा दिल्ली आदि अनेक नगरों में अनेक भव्य भवनों का निर्माण किया गया। ये भवन मुगलों की शान के प्रतीक बन गये। ई.1722 में राजा की उपाधि मिलने के बाद राजा बदनसिंह तथा उसके पुत्र सूरजमल ने डीग में शानदार भवनों के निर्माण का निर्णय लिया ताकि उनका राज्य भी उसी तरह शानदार दिखाई दे जिस तरह मुगलों और राजपूतों के राज्य दिखाई देते थे।
उस काल में बड़ी संख्या में शिल्पकार एवं उनके सहायक, रोजगार के लिये मारे-मारे फिरते थे क्योंकि उन्हें औरंगजेब के बादशाह बनने के बाद भवन निर्माण का काम मिलना बंद हो गया था। जिन सिद्धहस्त शिल्पियों ने लाल किले, ताजमहल और बुलंद दरवाजे जैसे महान निर्माण किये थे उनके परिवार इस समय भूखे मर रहे थे। इसलिये शिल्पकारों के झुण्ड दूर-दूर से बदनसिंह तथा सूरजमल के दरबार में आकर काम मांगने लगे। शिल्पकारों को उनकी इच्छा के अनुसार भवनों के निर्माण का काम दिया जाता था। शिल्पियों को रोजगार देने के लिये राजा बदनसिंह तथा राजकुमार सूरजमल ने अपने खजाने के मुंह खोल दिये।
ई.1725 के आसपास डीग के किले, भवनों एवं उद्यानों का निर्माण करवाया गया। राजा बदनसिंह के लिये लाल पत्थर का मकान बनाया गया जो वर्तमान में चिकित्सा विभाग के पास है। डीग के किले, उद्यानों, झीलों, महलों, कुण्डों और मंदिरों का काव्यमय वर्णन सूरजमल के राजकवि सोमनाथ द्वारा रचित सुजान-विलास में मिलता है। बांसी पहाड़पुर से संगमरमर और बरेठा से लाल पत्थर, भरतपुर, कुम्हेर और वैर तक पहुचाया जाना एक दुष्कर कार्य था। इसके लिये 1000 बैलगाड़ियां, 200 घोड़ा गाड़ियां, 1500 ऊँट गाड़ियां और 500 खच्चरों को काम पर लगाया गया।
इन चार स्थानों पर विशाल भवनों तथा वृन्दावन, गोवर्धन और बल्लभगढ़ में अनेक मंदिरों का निर्माण करवाने में लगभग 20 हजार स्त्री पुरुष लगभग एक चौथाई शताब्दी तक रात-दिन काम में जुटे रहे। वृंदावन में महाराजा सूरजमल की दो बड़ी रानियों- गंगा और मोहिनी ने एक सुंदर भवन बनवाया। डीग से पंद्रह मील पूर्व की ओर, सहार में बदनसिंह ने एक सुंदर भवन बनवाया, जो बाद में उसका निवास स्थान बन गया।
इन निर्माणों के कारण डीग एक सुंदर उद्यान नगर बन गया जिसका वैभव आगरा, दिल्ली और जयपुर से होड़ करता था। डीग से बीस मील दक्षिण-पश्चिम में स्थित सोघर के जंगल काटकर दलदल पाट दी गई तथा वहाँ विशाल एवं भव्य भरतपुर का किला बनाया गया। डीग का मुख्य भवन गोपाल भवन ई.1745 तक बनकर पूरा हुआ। यह पूरा भवन लाल पत्थर से बना है। गोपाल भवन के सामने एक अत्यंत सुंदर संगमरमर का झूला है, इसे सूरजमल दिल्ली से बैलगाड़ियों में लदवाकर लाया था। इसकी चौकी पर 1630-31 की तिथि अंकित है।
ई.1732 में सूरजमल ने भरतपुर नगर के दक्षिणी हिस्से में लोहागढ़ नामक दुर्ग बनवाना आरम्भ किया। इस दुर्ग का निर्माण आठ साल में पूरा हुआ। इनमें दो खाइयां भी सम्मिलित थीं। पहली खाई, शहर की बाहरवाली चारदीवारी के पास थी और दूसरी कम चौड़ी किंतु अधिक गहरी खाई, दुर्ग को घेरे हुए थी। इस दुर्ग पर ई.1805 में लॉर्ड लेक ने चार माह लम्बा घेरा डाला किंतु 3000 से अधिक अंग्रेज सिपाहियों को खोकर भी लेक सफल नहीं हो सका और उसे भरतपुर के तत्कालीन महाराजा रणजीतसिंह से संधि करनी पड़ी। डीग और भरतपुर के बीच कुम्हेर तथा वैर में अपेक्षाकृत छोटे दुर्ग बनाये गये। वैर में सूरजमल का छोटा भाई प्रतापसिंह रहता था। भरतपुर तथा डीग के बीच स्थित कुम्हेर में राजा सूरजमल ने अपनी रानी हँसिया के लिये भव्य महलों का निर्माण करवाया।