Thursday, July 25, 2024
spot_img

1. प्राक्कथन

प्रारम्भिक काल में ढूंढाढ़, मध्यवर्ती काल में आमेर तथा परवर्ती काल में जयपुर राज्य के नाम से अभिहित जयपुर राज्य में जयसिंह नाम के तीन राजा हुए। जयसिंह (प्रथम) 1621 से 1668 ई. तक आमेर का राजा रहा। उसने तीन मुगल बादशाहों- जहांगीर (1605-1627 ई.), शाहजहां (1627-1658 ई.) तथा औरंगजेब (1658-1707 ई.) की सेवा की। 1636 ई. में शाहजहां ने उसे मिर्जा राजा की उपाधि दी। इसलिये वह भारत के इतिहास में मिर्जा राजा जयसिंह के नाम से विख्यात हुआ।

जयसिंह (द्वितीय) 1700 से 1743 ई. तक आमेर का राजा हुआ। उसने औरंगजेब, बहादुरशाह, फर्रूखसीयर तथा मुहम्मदशाह नामक चार मुगल बादशाहों के समय में उत्तर भारत की राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

जयसिंह (तृतीय) 25 अप्रेल 1819 से 6 फरवरी 1835 तक जयपुर का राजा रहा। उसके जन्म से कुछ माह पहले ही उसके पिता की मृत्यु हो गई। इस संसार में आंखें खोलते ही वह जयपुर का राजा बन गया और मात्र 14 वर्ष की आयु में मृत्यु को प्राप्त हुआ। उसके राजत्व काल में जयपुर राज्य ईस्ट इण्डिया कम्पनी से अधीनस्थ सहयोग की संधि के अंतर्गत शासित था।

To purchase this book, please click on photo.

प्रस्तुत पुस्तक सवाई राजा जयसिंह (द्वितीय) पर केन्द्रित है। सवाई राजा जयसिंह अठारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में उत्तर भारत के राजाओं में सर्वाधिक चर्चित, प्रशंसित, बुद्धिमान, दूरदर्शी और प्रभावशाली राजा हुआ। वह ढूंढाढ़ प्रदेश में स्थित विशाल आम्बेर रियासत के महान राजाओं में सर्वप्रमुख था। अठारहवीं शताब्दी में भारत की राजनीति जिन गंभीर परिस्थितियों में हिचकोले खा रही थी, उनकी मार सहन कर पाना तथा अपनी रियासत को मुगलों, मराठों अथवा जाटों के हाथों में जाने से बचा लेना, जयसिंह जैसे बड़े जीवट वाले राजा का ही काम था।

सवाई जयसिंह ने जब आंखें खोलीं तो आम्बेर राज्य मुगल बादशाहों की कूटनीति का शिकार होकर अपनी विपन्नावस्था के चरम पर था। औरंगजेब के खतरनाक इरादे जोधपुर, जयपुर, बीकानेर, मेवाड़ आदि समस्त हिन्दू रियासतों को समूल नष्ट कर देने के थे। वह पंजाब के सिक्खों, दक्षिण के मराठों और धुर दक्षिण के शिया राज्यों को भी सदैव के लिये निगल जाना चाहता था। हर वह राजा जो सुन्नी नहीं था और हर वह व्यक्ति जो सुन्नी नहीं था, औरंगजेब का शत्रु था। कहने को तो औरंगजेब कुफ्र मिटाने के लिये जीवन भर लड़ता रहा किंतु वह अपनी ही उन संतानों के खून का भी प्यासा बना हुआ था जो उसकी औलाद होने के कारण उसी की तरह सुन्नी थीं। इस कारण औरंगजेब का खूनी खेल पूरे भारत में रक्त की नदियां बहा रहा था।

औरंगजेब ने सवाई जयसिंह को उसके बालपन में ही निबटा देने की अनेक योजनाएं बनाईं। 1696 ई. में जब राजकुमार जयसिंह केवल आठ साल का था, उसे पहली बार औरंगजेब के सामने प्रस्तुत किया गया। औरंगजेब ने जयसिंह के पिता बिशनसिंह को निर्देश दिये कि वह जयसिंह को तुरंत शाही सेवा में प्रस्तुत करे। दस साल की अल्पायु में जयसिंह को दक्षिण के मोर्चे पर उपस्थित होना पड़ा। दो साल बाद ही पिता का साया सिर से उठ जाने के कारण जयसिंह को केवल 12 वर्ष की आयु में आम्बेर की विशाल रियासत का शासन संभालना पड़ा। इस महान राजा को 43 साल की दीर्घ अवधि तक न केवल मुगल दरबार के षड़यंत्रों, मराठा सरदारों के धावों, जाट नेताओं के इरादों और पड़ौसी राजपूत रियासतों के विश्वासघातों का सामना करना पड़ा अपिुत हिन्दू प्रजा, संस्कृति और ज्ञान-विज्ञान को संरक्षण देने के लिये विपुल धन, समय और संसाधन भी जुटाने पड़े।

सवाई राजा जयसिंह (द्वितीय) शस्त्र और शास्त्र का धनी था। प्रजा वत्सल था, शरणागत को अभय देने वाला था। भगवान विष्णु का भक्त था और निम्बार्क सम्प्रदाय में दीक्षित था। परिस्थितियों के हाथों विवश होकर उसे युद्ध लड़ने पड़े किंतु वह युद्धों का नहीं, शांति का दूत था। सम्भवतः औरंगजेब ने उसमें इस बहुमुखी प्रतिभा के दर्शन तब कर लिये थे जब जयसिंह केवल आठ साल का था। इसीलिये औरंगजेब ने उसे आठ साल की आयु में ही युद्ध के मोर्चे पर भिजवाने के निर्देश दिये ताकि कुफ्र को उसके बचपन में ही मिटाया जा सके किंतु जयसिंह जीवित रहा और लम्बे समय तक भारत भूमि की सेवा करता रहा।

यह पुस्तक उसी महान राजा सवाई जयसिंह को एक विनम्र श्रद्धांजलि है जिसके बनाये पदचिह्नों पर आज भी भारतीय समाज चल रहा है और आगे बढ़ रहा है। आशा है पाठकों को यह पुस्तक पसंद आयेगी। शुभम्।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

63, सरदारक्लब योजना

वायुसेना क्षेत्र, जोधपुर

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source