राजा पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद अजमेर, दिल्ली, हांसी, सिरसा, समाना तथा कोहराम के क्षेत्र मुहम्मद गौरी के अधीन हो गये। तराइन के युद्ध में पृथ्वीराज की हार से हिन्दू धर्म की बहुत हानि हुई। इस युद्ध में हजारों हिन्दू योद्धा मारे गये। चौहानों की शक्ति नष्ट हो गई। देश की अपार सम्पत्ति म्लेच्छों के हाथ लगी। उन्हांेने पूरे देश में भय और आतंक का वातावरण बना दिया।
हिन्दू राजाओं का मनोबल टूट गया। हजारों-लाखों ब्राह्मण मौत के घाट उतार दिये गये। लाखों स्त्रियों का सतीत्व भंग किया गया। मन्दिर एवम् पाठशालायें ध्वस्त करके अग्नि को समर्पित कर दी गईं। जैन साधु उत्तरी भारत छोड़कर नेपाल तथा तिब्बत आदि देशों को भाग गये। पूरे देश में हाहाकार मच गया और इतिहास ने भारत भूमि पर गुलामी का पहला अध्याय लिखा। इससे पहले भारत-भूमि के लोग ‘गुलामी’ शब्द से परिचित नहीं थे।
ई.1192 में शहाबुद्दीन गौरी के साथ उसका दरबारी लेखक हसन निजामी भी गजनी से अजमेर आया था। उसने अपनी पुस्तक ताजुल मासिर में अजमेर नगर का वर्णन करते हुए लिखा है- ‘अजमेर के बागीचे सात रंगों से सजे हुए हैं। इसकी पहाड़ियाँ तथा जंगल का चेहरा चीन की प्रसिद्ध चित्रदीर्घा का स्मरण करवाता है। इसके उद्यानों के पुष्प इतनी सुगंध देते हैं मानो उन्हें स्वर्ग से धरती पर भेजा गया हो। प्रातःकाल की सुगंधित वायु, बागीचों में इत्र छिड़क देती है और पूर्व से आने वाली लहरियां ऐसी लगती हैं जैसे ऊद जलाई गई हो। जंगल के कपड़े सनबाल तथा बन्फशा के पुष्पों से सुगंधित रहते हैं। सुबह की श्वांस ऐसी आती है जैसे कपड़ों से गुलाब तथा पोस्त के पुष्पों की खुशबू आ रही हो। अजमेर की मिट्टी में तिब्बत के हिरणों की कस्तूरी की सुगंध है। अजमेर के मीठे पानी के फव्वारे स्वर्ग के फव्वारों से प्रतिस्पर्धा करते हैं। उनका जल इतना स्वच्छ है कि रात में भी फव्वारों के तले में डाला गया कंकर साफ दिखाई देता है। इन फव्वारों का जल सलसबिल के जल की तरह मीठा है और यह जीवन देने वाले जल के रूप में स्थित है। नगर तथा उसके चारों ओर का क्षेत्र बहुत सुंदर है इसके वातावरण में हर ओर चमक तथा प्रकाश है। इसके पुष्पों में सौंदर्य एवं शुचिता है। इसकी वायु एवं धरती में शुचिता है। जल तथा वृक्ष प्रचुर मात्रा में हैं। यह अनवरत आनंद तथा विलास का स्थल है।’’
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अजमेर नगर का यह वर्णन मुहम्मद गौरी के दरबारी लेखक द्वारा किया गया है। इसलिए यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि उन दिनों गजनी कितना निर्धन और गंदा दिखता होगा, इसी कारण गजनी से आए लोगों को अजमेर एक स्वर्ग जैसा दिखाई दिया!
शहाबुद्दीन गौरी ने इस स्वर्ग को तोड़ दिया। उसकी सेनाओं ने अजमेर नगर में विध्वंसकारी ताण्डव किया। नगर में स्थित अनेक प्राचीनमन्दिर नष्ट कर दिये। बहुत से देव मंदिरों के खम्भों एवं मूर्तियों को तोड़ डाला।
अजमेर नगर में पृथ्वीराज चौहान के ताऊ विग्रहराज चतुर्थ अर्थात् वीसलदेव द्वारा निर्मित संस्कृत पाठशाला एवं सरस्वती मंदिर को भी तोड़ डाला गया तथा उसके एक हिस्से को मस्जिद में बदल दिया गया। यह भवन उस समय धरती पर स्थित सुंदरतम भवनों में से एक था किंतु इस विंध्वस के बाद यह भवन विस्मृति के गर्त में चला गया तथा छः सौ साल तक किसी ने इसकी सुधि नहीं ली। उन दिनों इसी शाला भवन के समान जैनियों का भव्य इन्द्रसेन मंदिर हुआ करता था। गौरी की सेनाओं ने उसे भी नष्ट कर दिया। शहाबुद्दीन गौरी ने अजमेर के प्रमुख व्यक्तियों को पकड़कर उनकी हत्या कर दी।
दिल्ली पर तुर्कों का शासन हो गया और दिल्ली सल्तनत का शासन आरंभ हुआ। गौरी ने चौहान साम्राज्य के छोटे-छोटे टुकड़े कर दिये। कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली का गवर्नर बनाया तथा भारत के समस्त मुस्लिम आधिपत्य वाले क्षेत्र उसके अधीन कर दिए। अजमेर तथा नागौर मुस्लिम सत्ता के प्रमुख केन्द्र बनाये गए। गौरी ने अमीर अली को नागौर का मुक्ति अर्थात् जागीरदार तथा हमीदुद्दीन नागौरी को नागौर का काजी अर्थात् न्यायाधीश नियुक्त किया।
भारत भूमि को ईक्ष्वाकु वंश से लेकर मौर्यों, गुप्तों तथा प्रतिहारों जैसे प्रतापी राजवंशों की अनुपम सेवायें प्राप्त हुईं। चौहानों ने भी कई शताब्दियों तक हिन्दू जाति की स्वतन्त्रता को बनाये रखा किन्तु दैववश ई.1192 में पृथ्वीराज चौहान परास्त हो गया। इससे हिन्दू जाति की स्वतन्त्रता नष्ट हो गई तथा भारत में मुस्लिम राज्य स्थापित हो गया।
मुहम्मद गौरी के दरबारी लेखक हसन निजामी ने अपनी पुस्तक ताज-उल-मासिर में लिखा है कि पृथ्वीराज को मारने के बाद शहाबुद्दीन गौरी ने पृथ्वीराज चौहान के अवयस्क पुत्र गोविन्दराज से विपुल कर धन लेकर गोविंदराज को अजमेर की गद्दी पर बैठा दिया। इसके बाद शहाबुद्दीन गौरी कुछ समय तक अजमेर में रहकर दिल्ली चला गया।
डॉ. दशरथ शर्मा तथा एडवर्ड थॉमस ने अजमेर से प्राप्त एक सिक्के का उल्लेख किया है जिसके एक तरफ पृथ्वीराज चौहान तथा दूसरी तरफ मुहम्मद बिन साम अंकित है। शहाबुद्दीन गौरी को ही मुहम्मद-बिन-साम कहते थे। यह सिक्का संभवतः उस समय का है जब शहाबुद्दीन अजमेर में था तथा वह पृथ्वीराज के पुत्र गोविंदराज को अजमेर का राज्य दे चुका था। इस मुद्रा की लिपि हिन्दी भाषा में है। यह सिक्का इस बात का द्योतक है कि मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज के कुछ सिक्कों को जब्त करके उन पर दूसरी ओर अपना नाम अंकित करवाया तथा उन्हें फिर से जारी किया।
शहाबुद्दीन गौरी ने अजमेर से और भी कई सिक्के चलाये। उसके चलाये हुए सोने के सिक्कों पर एक ओर देवी लक्ष्मी की मूर्ति और दूसरी ओर नागरी लिपि में ‘श्रीमहमद-विनि-साम’ लिखा हुआ मिलता है। उसके ताम्बे के सिक्कों पर एक ओर नंदी तथा त्रिशूल के साथ ‘स्रीमहमद-साम’ और दूसरी तरफ चौहानों के सिक्कों के समान ‘स्रीहमीर’ लेख है।
गौरीशंकर ओझा ने स्रीहमीर को श्री अमीर पढ़ने की गलती की है। यह सिक्का मूलतः शहाबुद्दीन गौरी ने चलाया था जिसके एक तरफ ‘स्रीमहमद साम’ अर्थात् श्री मुहम्मद बिन साम अंकित है। इसके दूसरी तरफ जो अंकन था, उसके बारे में अब कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि उस अंकन के ऊपर रणथम्भौर के हम्मीर ने अपना नाम स्रीहमीर अर्थात् श्री हम्मीर उत्कीर्ण करवाया।
ई.1193 में मुहम्मद गौरी ने कन्नौज के राजा जयचंद पर आक्रमण करके उसे भी मार डाला तथा उसका राज्य नष्ट कर दिया। इससे कन्नौज तथा बदायूं आदि के क्षेत्र भी मुसलमानों के अधीन हो गए।
अगली कड़ी में देखिए- अजमेर के राजपूतों से गजनी ने भयानक प्रतिशोध लिया!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता