भारतीय जनमानस में यह धारणा गहराई तक पैठ गई है कि राजा जयचंद गाहड़वाल ने राजा पृथ्वीराज चौहान से अपनी पुरानी शत्रुता का बदला लेने के लिए ई.1192 में गजनी के शासक मुहम्मद गोरी को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था।
इस धारणा का मुख्य आधार मिनाहाजुद्दीन सिराज द्वारा लिखी गई पुस्तक तबकाते नासिरी है। मिनहजाजुद्दीन सिराज दिल्ली का काजी था। वह ई.1246 से 1266 तक दिल्ली के सुल्तान रहे नासिरुद्दीन महमूद का समकालीन था। उसने लिखा है कि गौरी को कन्नौज के राजा जयचंद तथा जम्मू के विजयपाल द्वारा सैन्य सहायता उपलब्ध करवाई गई। तबकात ए नासिरी के इस कथन की पुष्टि पृथ्वीराज रासो आदि किसी भी अन्य ग्रंथ से नहीं होती कि राजा जयचंद ने इस युद्ध में मुहम्मद गौरी की सहायता की थी।
किसी भी समकालीन इतिहास ग्रंथ में तराइन के द्वितीय युद्ध में राजा जयचन्द गाहड़वाल की किसी भी तरह की भूमिका के बारे में कोई उल्लेख नहीं है। तबकात ए नासिरी के कथन को उद्धृत करके अजमेर के इतिहास लेखक हरबिलास शारदा ने इस समस्या को और बढ़ा दिया।
भाटों ने राजा पृथ्वीराज चौहान के द्वारा जयचन्द गाहड़वाल की पुत्री संयोगिता के प्रकरण को इतना बढ़ा-चढ़ा दिया कि यह एक स्थापित इतिहास बन गया कि पृथ्वीराज और जयचंत एक-दूसरे के जन्मजात शत्रु थे। हिन्दू राजाओं में राजकुमारियों के प्रेम-प्रसंग तथा राजाओं एवं राजकुमारों द्वारा उनके हरण के प्रसंग मिलते हैं।
ऐसे मामलों में दोनों पक्षों में प्रायः तात्कालिक युद्ध होता था किंतु जब राजकुमारी का विवाह हरण करने वाले राजा अथवा राजकुमार से हो जाता था, तब शत्रुता समाप्त कर दी जाती थी। कुछ भाटों के ग्रंथों में यह उल्लेख है कि संयोगिता हरण के पश्चात् जयचंद की सेना पृथ्वीराज के प्रमुख सामंतों को मारती हुई पाँचवे दिन पृथ्वीराज तक पहुंच गई। जब जयचन्द ने संयोगिता को पृथ्वीराज के अश्व पर बैठे हुए देखा तो उसने अपनी सेना को पृथ्वीराज का पीछा करने से रोक दिया तथा अपनी सेना के साथ कन्नौज लौट गया।
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जब राजा पृथ्वीराज संयोगिता के साथ दिल्ली पहुंच गया तब जयचंद ने अपने पुरोहित पुरोहित दिल्ली भेजे, जहाँ विधि-विधान से पृथ्वीराज और संयोगिता का विवाह सम्पन्न हुआ। इसी के साथ पृथ्वीराज और जयचंद की शत्रुता समाप्त हो गई और जयचंद ने पृथ्वीराज से तटस्थता का भाव अपना लिया।
तराइन के युद्ध में मुहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच लड़े गए युद्ध में भी जयचन्द तटस्थ रहा। इस युद्ध में अथवा उससे पहले हुए किसी भी युद्ध में राजा पृथ्वीराज ने अपने श्वसुर जयचंद से सहायता नहीं माँगी थी। यदि जयचन्द और गौरी में मित्रता होती तो बाद में गौरी जयचन्द पर आक्रमण क्यों करता? अतः यह आरोप मिथ्या है।
पृथ्वीराज रासो में यह बात कहीं नहीं कही गई है कि जयचन्द ने गौरी को पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था। इसी प्रकार समकालीन फारसी ग्रन्थों में भी इस बात का संकेत तक नहीं है कि जयचन्द ने गौरी को आमन्त्रित किया था।
राजा पृथ्वीराज चौहान के प्रति अटूट निष्ठा रखने वाले लोग भावावेश में इस कथन को दोहराते चले जाते हैं कि जयचंद ने देश से गद्दारी करके मुहम्मद गौरी को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया।
डॉ. आर. सी. मजूमदार ने अपनी पुस्तक एन्शिएंट इण्डिया में लिखा है कि इस कथन में कोई सत्यता नहीं है कि महाराज जयचंद ने पृथ्वीराज पर अक्रमण करने के लिए मोहम्मद गौरी को आमंत्रित किया हो।
जे. सी. पोवल ने अपनी पुस्तक हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में लिखा है कि यह बात आधारहीन है कि महाराज जयचंद ने मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया।
डॉ. रामशंकर त्रिपाठी ने लिखा है कि जयचंद पर यह आरोप गलत है। समकालीन मुसलमान इतिहासकार इस बात पर पूर्णतः मौन है कि जयचंद ने ऐसा कोई निमंत्रण भेजा हो।
महेन्द्र नाथ मिश्र ने लिखा है- यह धारणा कि मुसलमानों को पृथ्वीराज पर चढ़ाई करने के लिए जयचंद ने आमंत्रित किया, निराधार है। उस समय के कतिपय ग्रन्थ प्राप्य हैं किन्तु किसी में भी इस बात का उल्लेख नहीं है। पृथ्वीराज विजय, हमीर महाकाव्य, रंभा मंजरी, प्रबंध कोश व किसी भी मुसलमान यात्री के वर्णन में ऐसा उल्लेख नहीं है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि जयचंद ने चन्दावर में मोहम्मद गौरी से शौर्य पूर्ण युद्ध किया था।
इब्न नसीर नामक लेखक ने अपनी पुस्तक कामिल-उल-तवारिख में लिखा है कि यह बात नितांत असत्य है कि जयचंद ने शाहबुद्दीन को पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया। शहाबुद्दीन अच्छी तरह जानता था कि जब तक उत्तर भारत में महाशक्तिशाली जयचंद को परास्त न किया जाएगा दिल्ली और अजमेर आदि भू-भागों पर किया गया अधिकार स्थायी नहीं होगा क्योंकि जयचंद के पूर्वजों ने और स्वयं जयचंद ने तुर्काे से अनेकों बार मोर्चा लेकर उन्हें हाराया था।
इतिहासकार स्मिथ ने अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया में जयचंद पर लगे इस आरोप का उल्लेख नहीं किया है।
डॉ. राजबली पाण्डेय ने अपनी पुस्तक प्राचीन भारत में लिखा है- यह विश्वास कि गौरी को जयचंद ने पृथ्वीराज के विरुद्ध निमंत्रण दिया था, ठीक नहीं जान पड़ता क्योंकि मुसलमान लेखकों ने कहीं भी इसका उल्लेख नहीं किया है।
अतः हम कह सकते हैं कि केवल तबकाते नासिरी को आधार बनाकर जयचंद को दोषी ठहराना इतिहास की एक बड़ी भूल है। मिनहाजुद्दीन सिराज दिल्ली के गुलाम सुल्तानों द्वारा नियुक्त शहर काजी था, उसने सुल्तानों को खुश करने के लिए यह बात लिखी है। उसकी बात का विश्वास नहीं किया जा सकता क्योंकि इसकी पुष्टि किसी भी अन्य स्रोत से नहीं होती है।
अगली कड़ी में देखिए- मुहम्मद गौरी ने राजा पृथ्वीराज से संधि की आड़ में छल किया!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता