दूनी दुर्ग
दूनी दुर्ग जिला मुख्यालय टोंक से लगभग 38 किलोमीटर दूर स्थित दूनी गांव में बना हुआ है। यह दुर्ग परकोटे एवं चौड़ी खाई से घेरकर सुरक्षित किया गया है। समतल मैदान में बने हुए होने के कारण इसे स्थल दुर्ग की श्रेणी में रखा जाता है। खाई से घिरे हुए होने के कारण इस पारिघ दुर्ग की श्रेणी में भी रखा जाता है।
दूनी दुर्ग का निर्माण आमेर के राजा कुंतन के वंशजों ने करवाया। यहाँ के जागीरदार गोगावत खांप के कहलाते थे। जयपुर नरेश पृथ्वीसिंह कच्छवाहा ने दूनी ठाकुर शिवनाथ को जयपुर राज्य की सेना का बख्शी एवं राज्य का दीवान बनाया था। राजा पृथ्वीसिंह मेवाड़ के महाराणा सांगा का समकालीन था और बाबर से लड़ने के लिए खानवा के मैदान में गया था।
दूनी के शासक, हाथी पर जयपुर नरेश के पीछे बैठते थे तथा राजा पर चंवर ढुलाते थे। एक बार मराठा सरदार दौलतराव सिंधिया ने दुर्ग को घेर लिया। उस समय चांदसिंह यहाँ का जागीरदार था। कई माह की घेरेबंदी के बाद भी दौलतराव सिंधिया इस दुर्ग को नहीं ले पाया था।
भोला ब्राह्मण का भोमगढ़ दुर्ग
सत्रहवीं शताब्दी ईस्वी में भोला ब्राह्मण ने एक दुर्ग बनाया जिसे भोमगढ़ कहते थे। उन्नीसवीं शताब्दी ईस्वी में जब पिण्डारी अमीर खाँ को टोंक का नवाब बनाया गया तब उसने भोमगढ़ का विस्तार एवं जीर्णोद्धार करवाया। यह दुर्ग टोंक जिला मुख्यालय पर स्थित है। दुर्ग के चारों ओर परकोटा बना हुआ है।
उनियारा दुर्ग
टोंक जिले में देवली से कुछ किलोमीटर दूर नगर नामक एक प्राचीन गांव है जिसमें उनियारा दुर्ग स्थित है। इस दुर्ग के महलों में बने भित्तिचित्रों पर कोटा एवं जयपुर शैली का मिश्रण दिखाई देता है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता