Tuesday, December 3, 2024
spot_img

जोधा का दीर्घ कालीन संघर्ष

जोधा का जन्म

राव रणमल के 26 पुत्र थे। उनमें से जोधा दूसरे क्रम पर था। जोधा का जन्म राव रणमल की भटियाणी रानी कोडमदे के गर्भ से हुआ। कोडमदे वीकूंपुर और पूंगल के स्वामी केल्हण भाटी की पुत्री थी। टॉड ने लिखा है कि जोधा का जन्म धनला गांव में हुआ। गौरी शंकर हीराचंद ओझा ने जोधा को रणमल का सबसे बड़ा पुत्र बताया है किंतु विश्वेश्वर नाथ रेउ ने जोधा को रणमल का द्वितीय पुत्र बताया है। ओझा ने जोधा की जन्म तिथि 1 अप्रेल 1416 स्वीकार की है जबकि रेउ के अनुसार जोधा का जन्म 29 मार्च 1415 को हुआ। टॉड ने संवत् 1484 अर्थात् 1427 ई. में जोधा का जन्म होना लिखा है किंतु यह तिथि सही नहीं मानी जा सकती। रेउ द्वारा दी गई तिथि को ही सही माना जाना चाहिये।

पिता के साथ

1427 ई. में जिस समय रणमल ने सत्ता से मण्डोर छीना था, यद्यपि उस समय जोधा केवल 12 वर्ष का था तथापि वह अपने पिता के साथ रणक्षेत्र में गया। 1433 ई. में जब राव रणमल, महाराणा मोकल की हत्या का बदला लेने के लिये मेवाड़ गया, उस समय भी जोधा अपने पिता के साथ गया। 1438 ई. में जब मेवाड़ राजपरिवार में रणमल के विरुद्ध घातक घड़यंत्र रचा गया तब भी जोधा अपने पिता के साथ चित्तौड़ के दुर्ग में था। जब रणमल को मेवाड़ में अपने विरुद्ध चल रहे षड़यंत्रों की भनक मिली तो रणमल ने जोधा को सावधान कर दिया तथा उसे दुर्ग से बाहर चले जाने को कहा। जोधा अपने घोड़ों को चराने के बहाने, अपने साथियों सहित चित्तौड़गढ़ दुर्ग की तलहटी में चला गया।

जोधा का चित्तौड़ से पलायन

जब राव रणमल की हत्या हुई तो एक डोम ने किले की दीवार पर चढ़कर उच्च स्वर से यह दोहा गाया-

चूण्डा अजमल आविया, मांडू हूं धक आग।

जोधा रणमल मारिया, भाग सके तो भाग।।

कुछ ख्यातों के अनुसार इस दोहे को शहनाई के सुर में बजाया गया। डोम के शब्द सुनते ही तलहटी में उपस्थित जोधा तथा उसके साथियों ने जान लिया कि राव रणमल मारा गया और अब उन पर भी प्राणों का संकट आने वाला है। इसलिये जोधा अपने 700 साथियों सहित मारवाड़ की तरफ चल पड़ा। जोधा का चाचा भीम चूंडावत उस समय मद्य के नशे में बेहोश पड़ा था इसलिये वह वहीं छूट गया।

चूण्डा का प्रतिशोध

कुम्भा का ताऊ चूण्डा सिसोदिया, महाराणा लाखा का बड़ा पुत्र था तथा महाराणा लाखा के पश्चात् राज्य का अधिकारी था। उसे चूण्डा लाखानी भी कहते हैं। मारवाड़ की राजकुमारी हंसाबाई के सम्बन्ध हेतु नारियल चूण्डा के लिये ही आया था किंतु महाराणा लाखा ने परिहास किया कि अब हम वृद्धों के लिये नारियल कौन भेजेगा! चूण्डा ने ये शब्द सुन लिये और अपने पिता से कहा कि मैं हंसाबाई से विवाह नहीं करूंगा। इस पर मारवाड़ वालों ने इस शर्त पर हंसाबाई का सम्बन्ध वयोवृद्ध महाराणा लाखा से कर दिया कि यदि हंसाबाई की कोख से पुत्र जन्मेगा तो वही मेवाड़ का उत्तराधिकारी होगा। चूण्डा ने यह शर्त स्वीकार कर ली और इस प्रकार वह राज्याधिकार से वंचित हो गया। जब लाखा मर गया और हंसाबाई की कोख से जन्मा मोकल, महाराणा हुआ तो हंसाबाई ने चूण्डा को मेवाड़ छोड़कर चले जाने के लिये विवश कर दिया तथा अपने भाई रणमल को अपनी सहायता के लिये बुला लिया। चूण्डा के लिये यह निःसंदेह बहुत अपमान जनक था। फिर भी पिता को दिये वचन का अनुसरण करके चूण्डा अपने भाइयों एवं साथियों सहित माण्डू के सुल्तान के यहाँ चला गया। चूण्डा के मेवाड़ से चले जाने के बाद रणमल ने न केवल अनेक सिसोदियों को मेवाड़ राज्य से निकाल दिया अपितु कई बड़े सरदारों को मौत के घाट उतार दिया। इतना ही नहीं, चूण्डा के भाई राघवदेव को जिसे चूण्डा, राज्य की रक्षा के लिये चित्तौड़ में छोड़ गया था, उसे भी रणमल ने भरे दरबार में बुलाकर महाराणा कुम्भा की आंखों के सामने मार डाला। इस प्रकार मारवाड़ के राठौड़ों के कारण चूण्डा ने जीवन भर कष्ट और अपमान भोगा था। अतः चूण्डा के हृदय में प्रतिशोध की आग जल रही थी जो कि रणमल के रक्त की धार से भी नहीं बुझी। ऐसे प्रबल शत्रुओं का समूल नाश किये बिना चूण्डा चैन से कैसे बैठ सकता था! इसलिये चूण्डा अपनी सेना लेकर जोधा के पीछे हो लिया।

राठौड़ों और सिसोदियों में संघर्ष

जोधा अपने सात सौ सैनिकों के साथ मरुस्थल की तरफ भागा जा रहा था। चूण्डा विकराल रूप धारण करके उसके पीछे लग गया। मेवाड़ की सेना के समक्ष जोधा की शक्ति कुछ भी न थी। जोधा के पास, धैर्य पूर्वक मण्डोर की तरफ भागते रहने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं था। चीतरोड़ी गांव के पास पहुंचते-पहुंचते चूण्डा की सेना ने राठौड़ों के दल को आ घेरा। शत्रु के अचानक आ धमकने से दोनों पक्षों में घमासान आरम्भ हो गया। सूर्य का प्रकाश रहने तक दोनों दलों के बीच तलवारें चलती रहीं। जब रात का अंधेरा हो गया तो राठौड़ों ने फिर से मारवाड़ की राह पकड़ी। चूण्डा भी उनके पीछे लग गया। कपासन के निकट चूण्डा ने एक बार पुनः जोधा को आ घेरा। इस स्थान पर दोनों पक्षों में घमासान हुआ जिसमें दोनों तरफ के बहुत से आदमी काम आये। इस लड़ाई में जोधा का भाई पाता रणखेत रहा तथा जोधा का चचेरा भाई वरजांग जो कि भीम चूण्डावत का पुत्र था, घायल हो जाने के कारण मेवाड़ वालों के हाथ लग गया। जोधा यहाँ से भी निकल भागने में सफल रहा। इसके बाद और भी कई स्थानों पर लड़ाईयाँ हुईं पर जोधा, चूण्डा के हाथ नहीं लगा। जिस समय राठौड़ों का दल सोमेश्वर की नाल के निकट पहुंचा, तब तक 600 राठौड़ सैनिक काम आ चुके थे। मेवाड़ की सेना अब भी उनके पीछे लगी हुई थी। राठौड़ों ने तंग घाटी में मोर्चा जमाया तथा जोधा को सात सैनिकों के साथ मण्डोर की तरफ रवाना कर दिया। सोमेश्वर की नाल में हुए घमासान में मेवाड़ के योद्धा बड़ी संख्या में मारे गये तथा राठौड़ों का पूरा दल नष्ट हो गया। जब जोधा देसूरी से 6 मील दूर माण्डल में था तब जोधा का भाई कांधल भी उससे आ मिला। विभिन्न ख्यातों में दिये गये विवरण से ज्ञात होता है कि अन्त में जोधा केवल सात घुड़सवारों के साथ मारवाड़ पहुंचने में सफल रहा।

मण्डोर राज्य पर कुम्भा का अधिकार

चूण्डा ने मारवाड़ में प्रवेश करके मण्डोर पर अधिकार कर लिया। राठौड़ों की पूरी सेना नष्ट हो चुकी थी और चूण्डा को रोकने वाला कोई नहीं था। मण्डोर हाथ से निकल गया देखकर जोधा जांगल प्रदेश में घुस गया तथा काहूनी (कावनी) गांव में जाकर ठहरा। चूण्डा इस घनघोर मरुस्थल में नहीं गया। उसने अपने पुत्रों कुन्तल, मांजा, सूवा तथा झाला विक्रमादित्य एवं हिंगूलु आहाड़ा आदि सरदारों को मण्डोर का प्रबंध सौंप कर स्वयं चित्तौड़़ लौट गया। चूण्डा ने मण्डोर के चारों ओर मेवाड़ के थाने स्थापित कर दिये ताकि जोधा मण्डोर में प्रवेश न कर सके।

रणमल का श्राद्ध कर्म

चूण्डा जब जांगलू प्रदेश में पहुंच गया तो उसने कोडमेदेसर तालाब के निकट अपने पिता का श्राद्धकर्म किया। इस तालाब की स्थापना जोधा की माता रानी कोडमदे ने की थी। रानी कोडमदे इसी तालाब के निकट रहती थी। इस अवसर पर रानी कोडमदे सती हो गई।

राघवदेव की सोजत में नियुक्ति

जब मण्डोर पर रावत चूण्डा सिसोदिया का अधिकार हो गया तब उसने महाराणा कुम्भा को संदेश भिजवाया कि वे मेवाड़ से और सेना भेजकर सोजत को सदा के लिये मेवाड़ राज्य में मिला लें। इस पर महाराणा ने मारवाड़ के स्वर्गीय राव चूण्डा राठौड़ के पौत्र राघवदेव  को सोजत जागीर में देकर, सोजत पर अधिकार करने भेजा। राघवदेव स्वर्गीय चूण्डा राठोड़ के पुत्र सहसमल का पुत्र था। उसे यह भी लालच दिया गया कि यदि वह सोजत का अच्छी तरह प्रबंध करेगा तो मण्डोर भी उसी के अधिकार में दे दिया जायेगा। राघवदेव ने न केवल सोजत पर अधिकार कर लिया अपितु बगड़ी, कापरड़ा, चौकड़ी और कोसाना भी अपने अधिकार में ले लिये और वहाँ अपनी चौकियाँ स्थापित कर दीं।

नरबद का जोधा पर आक्रमण

रणमल ने अपने भाई सत्ता से मण्डोर छीना था, तब सत्ता का पुत्र नरबद, रणमल से लड़ने आया था किंतु परास्त होकर भाग गया था। नरबद अभी भी जीवित था तथा महाराणा कुम्भा की सेवा में रहता था। मण्डोर पर अधिकार हो जाने के बाद महाराणा ने उसे कायलाना की जागीर दी। नरबद ने मेवाड़वालों की सहायता प्राप्त की तथा काहूनी में रह रहे जोधा के विरुद्ध अभियान किया। जब जोधा को ज्ञात हुआ कि नरबद मेवाड़ की सेना लेकर आ रहा है तो जोधा और भी विषम मरुस्थल में जा घुसा। नरबद निराश होकर लौट आया। जोधा भी गहन मरुस्थल से निकलकर काहूनी आ गया।

राज्य प्राप्ति हेतु संघर्ष का आरम्भ

मेवाड़ के शासकों में महाराणा कुम्भा सर्वाधिक शक्तिशाली एवं प्रतापी शासक हुआ। उसने मेवाड़ राज्य को न केवल सुरक्षित बनाया अपितु अपने राज्य की उत्तर और पूर्व दिशाओं में उसकी सीमाओं का विस्तार भी किया। कुम्भा ने अपने समय के शक्तिशाली मालवा और गुजरात के सुल्तानों को परास्त किया। उसने नागौर के मुसलमानों को दण्डित किया। उससे टक्कर लेना कोई हँसी-खेल नहीं था किंतु जोधा के भाग्य में कुम्भा जैसा प्रबल शत्रु ही लिखा था। जोधा ने काहूनी गांव में राठौड़़ों की सेना एकत्रित करनी आरम्भ की तथा फिर से मण्डोर प्राप्ति का प्रयास करने लगा।

वरजांग की वापसी

कपासण की लड़ाई में जोधा के चाचा भीम का पुत्र वरजांग घायल होकर मेवाड़ी सेना द्वारा बंदी बनाया गया था। कुछ समय बाद वह मेवाड़ी सेना के चंगुल से छूटने में सफल रहा तथा गागरौण के खींची चौहान चाचिगदेव के पास चला गया। चाचिगदेव ने अपनी पुत्री की विवाह वरजांग से कर दिया तथा वरजांग को विपुल धन दिया। वरजांग यह धन लेकर जोधा के पास आ गया। इस धन से जोधा को सेना तैयार करने में बहुत सहायता मिली।

मण्डोर अभियानों की असफलता

जोधा ने मण्डोर पर कई बार आक्रमण किये परन्तु उसे सफलता नहीं मिली। कुम्भा से संघर्ष करते हुए साल पर साल बीतने लगे। जोधा के पास संसाधनों का अभाव था। इसलिये उसके घोड़े मरने लगे और वह नये घोड़े खरीदने की स्थिति में नहीं था। जोधा के सैनिक भी दिन-प्रति दिन घटने लगे। ऐसी स्थिति में कोई भी राजकुमार निराश होकर राज्य की आस छोड़ बैठता किंतु जोधा हार मानने वालों में से न था। वह बार-बार शक्ति संग्रहण करके मण्डोर पर आक्रमण करता और पराजित होकर भाग आता। जोधा की पराजयों के समाचार मारवाड़ में दूर-दूर तक फैल गये। 

गर्म घाट की कथा

ख्यातों में वर्णन आया है कि एक दिन जोधा मण्डोर के मोर्चे से पराजित होकर भागता हुआ एक गांव में एक जाट के घर ठहरा। जाट की स्त्री ने थाली में गरम घाट (मोठ और बाजरे की खिचड़ी) भरकर जोधा को खाने के लिये दी। जोधा उस समय भूख से व्याकुल था। उसने तुरंत थाली के बीच में हाथ डाल दिया, जिससे हाथ जल गया। यह देखकर उस स्त्री ने कहा- ‘तू तो जोधा जैसा ही निर्बुद्धि दीख पड़ता है।’ इस पर उसने पूछा- ‘बाई, जोधा निर्बुद्धि कैसे है?’ उस स्त्री ने उत्तर दिया- ‘जोधा किनारे की भूमि पर तो अधिकार जमाता नहीं है और एकदम मण्डोर पर चढ़ बैठता है। इस कारण उसे अपने घोड़े और राजपूत मरवाकर भागना पड़ता है। इसी से मैं उसे निर्बुद्धि कहती हूँ। तू भी वैसा ही है, क्योंकि किनारे से तो खाता नहीं और एकदम बीच की गरम घाट पर हाथ डालता है।’ यह सुनकर जोधा ने मण्डोर लेने का विचार छोड़कर मारवाड़ राज्य के किनारे की भूमि पर अधिकार करने का निश्चय किया। (यह कथानक ख्यातकारों के मस्तिष्क की उपज अधिक जान पड़ता है क्योंकि किसी राज्य पर अधिकार कैसे किया जाता है, यह जोधा जैसा कर्मनिष्ठ एवं उद्यमशील व्यक्ति बहुत अच्छी तरह जानता होगा।)

Related Articles

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source