Wednesday, March 12, 2025
spot_img

झिलाय दुर्ग

झिलाय दुर्ग टोंक जिले की निवाई तहसील में है। यह निवाई से लगभग 8 किलोमीटर दूर तथा तथा जयपुर से लगभग 70 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। झिलाय दुर्ग, आमेर राज्य का जागीरी दुर्ग था। झिलाय को झिलाई भी कहा जाता है।

झिलाय दुर्ग एक पहाड़ी पर विशाल क्षेत्र को घेरकर खड़ा है। दुर्ग के चारों ओर मजबूत प्राकार (परकोटा) बना हुआ है जिसमें कई बुर्ज बनी हुई हैं। इस दुर्ग में प्रवेश करने लिए के चार मुख्य द्वार हैं- कैराद दरवाजा, निवाई दरवाजा, सींदरा दरवाजा और देवती दरवाजा। एक छोटा दरवाजा लहंगा की खिड़की कहलाती है। इन दरवाजों के पास बावड़ियां बनी हुई थीं।

झिलाय दुर्ग के संस्थापक

झिलाय दुर्ग की स्थापना आमेर के कच्छवाहा राजवंश की नरूका शाखा के किसी सामंत ने की थी। संभवतः झिलाय दुर्ग का नामकरण भी उसके संस्थापक झिलाय के नाम पर हुआ। सोलहवीं शताब्दी ईस्वी में झिलाय दुर्ग नरूका सामंतों से लेकर आम्बेर राजवंश के ठाकुर झुझारसिंह को दिया गया।

झिलाय दुर्ग के भवन एवं जलाशय

ठाकुर झुझार सिंह विक्रम संवत 1552 (ईस्वी 1595) के लगभग झिलाय का जागीरदार हुआ। उसके बाद उसका पुत्र संग्रामसिंह झिलाय का जागीरदार हुआ जिसने निवाई में दुर्ग, जलकुंड एवं महल बनवाए। संग्रामसिंह के बाद गजसिंह झिलाय का शासक हुआ। संवत् 1693 (ईस्वी 1636) के आसपास झिलाय के जागीरदार कीरतसिंह ने झिलाय दुर्ग में अनेक निर्माण करवाए। कीरतसिंह के पुत्र जसवंतसिंह ने भी दुर्ग के भीतर अनेक निर्माण करवाए। झिलाय दुर्ग में पेयजल की व्यवस्था कुओं एवं बावड़ियों से की गई थी। बावड़ियां अब खण्डहर-प्रायः हो चुकी हैं। झिलाय के जलकुंड में सर्दी में गर्म तथा गर्मी में ठंडा पानी रहता था।

झिलाय दुर्ग के भीतर राजसी महल, जलाशय, मंदिर, बावड़ी, अस्तबल आदि बने हुए हैं। वर्तमान समय में सभी निर्माण खण्डहर-प्रायः स्थिति में हैं। मुख्य भवनों की तुलना में दुर्ग का प्राकार अपेक्षाकृत अच्छी स्थिति में है।

झिलाय दुर्ग में स्थित मध्यकालीन महलों के नक्काशीदार दरवाजे, झरोखे, पत्थर की जालियाँ आदि लगे हैं जो राजपूत स्थापत्य शैली की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। झिलाय दुर्ग के भीतर जनाना ड्यौढ़ी, मर्दाना ड्यौढ़ी, पानी पीने के कुएं और घोड़ों के तबेले भी बने हुए हैं।

झिलाय ठिकाने का महत्व

रियासती काल में झिलाय आमेर के कच्छवाहा राजवंश की प्रमुख जागीर थी। इसे छोटी आमेर भी कहा जाता था। जब आमेर के राजा के कोई पुत्र उत्पन्न नहीं होता था तो झिलाय ठिकाने से कोई लड़का गोद लेकर राजा बनाया जाता था। इस कारण झिलाय के सामंतों को महाराज कहा जाता था। कछवाहा वंश में राजावतों का सबसे बड़ा ठिकाना झिलाय एक स्वायत्तशासी जागीर की तरह था। इस कारण झिलाय के खुद के स्टाम्प, मोहर एवं सिक्के चलते थे।

झिलाय के जागीरदार

जयपुर नरेश मानसिंह (प्रथम) के बाद उसका पुत्र जगतसिंह आमेर का शासक हुआ। जगत सिंह के दो पुत्र हुए जिनमें से बड़े पुत्र महासिंह से आमेर का राजवंश चला। दूसरा पुत्र झुंझार सिंह हुआ जिसे झिलाय की जागीर दी गई। झुंझार सिंह को राजावत की पदवी दी गई।

झुंझार सिंह के बाद उसका पुत्र संग्रामसिंह झिलाय का जागीरदार हुआ। उसके पांच पुत्र हुए जिनमें सबसे बड़े गजसिंह को झिलाय ठिकाना प्राप्त हुआ। दूसरे पुत्र आनंदसिंह को शिवाड़ की जागीर मिली। तीसरे पुत्र विजय सिंह जी को बगड़ी की जागीर मिली। चौथे पुत्र हिम्मतसिंह को रणोखि की जागीर मिली तथा पांचवें पुत्र रूपसिंह राजावत को मुंडिया की जागीर मिली।

गजसिंह के बाद कुशलसिंह झिलाय का सामंत हुआ। कुशलसिंह के छः पुत्र हुए जिनमें से सबसे बड़ा कीरतसिंह अपने पिता का उत्तराधिकारी हुआ। कीरतसिंह के दूसरे पुत्र रघुनाथ सिंह को बालेर की जागीर मिली। तीसरे पुत्र त्रिलोक सिंह को पीलूखेड़ा की जागीर मिली। चौथे पुत्र चतरसाल सिंह को मसारना की जागीर मिली। पांचवें पुत्र अमरसिंह को देहलाल की तथा छठे पुत्र देवीसिंह को बड़ागाँव की जागीर मिली। ठिकाना बालेर के भाई ठिकाने राजस्थान के बागड़दा एवं मध्यप्रदेश के कोलासर एवं श्योपुर में भी थे।

ठिकाना-मुवालिया नरसिंहगढ़ स्टेट मालवा में था। नरसिंहगढ़ के कुंवर चैनसिंह का विवाह ठिकाना मुवालिया में हुआ था जो जयपुर रियासत के तंरूंज राजावत परिवार में से था। कुंवर चैनसिंह ईस्वी 1827 में अग्रेजों से युद्ध करते हुए सिहोर छावनी में काम आया।

झिलाय के महाराज गोवर्द्धन सिंह की मृत्यु निःसंतान अवस्था में हुई। इसलिए जयपुर महाराज ब्रिगेडियर भवानी सिंह ने अपने छोटे भाई को झिलाय ठिकाने पर गोदनशीन करवाया। हालांकि उस समय तक जयपुर रियासत का राजस्थान में विलय हो चुका था और पुरानी जागीरें समाप्त हो चुकी थीं।

राजावतों की सतीमाता

राजावतों की सतीमाता का स्थान निवाई में है जहाँ उनकी विशाल छतरी बनी हुई है। राजावतों की यह सतीमाता अपने पुत्र के लिए सती हुई थी। निवाई छतरी पर राजवातों के सभी ठिकानों से लोग इस स्थान पर आकर चूड़ी, कंगन एवं मेहंदी भेंट करते हैं।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source