Friday, March 7, 2025
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सिनसिनी

सिनसिनी, डीग जिले में स्थित है तथा जिला मुख्यालय डीग से मात्र 13 किलोमीटर दूर दक्षिण में है। विजयचंद्र गढ़ के यादव शासक महाराजा विजयचंद्र के पुत्र महाराजा तिमनपाल के दो पुत्रों ने सिनसिनी (भरतपुर) तथा कुंवरगढ़ (झिरी भोमपुरा) आबाद किए थे। संभव है कि तिमनपाल के पुत्र ने बारहवीं शताब्दी ईस्वी में सिनसिनी में कोई दुर्ग बनाया हो तथा सत्रहवीं शताब्दी ईस्वी में सिनसिनी के जाटों ने जो दुर्ग बनाया हो, वह पुराने दुर्ग के अवशेषों पर ही बनाया हो।

सिनसिनी के जाट शासक, अपना सम्बन्ध यदुवंशी राजा मदनपाल से बताते हैं। मदनपाल, तजनपाल का तीसरा पुत्र था जो ग्यारहवीं शताब्दी में बयाना का शासक था और बाद में करौली राज्य का संस्थापक था। मदनपाल के वंशज बालचंद की एक स्त्री जाट जाति की थी। इस स्त्री से दो पुत्र हुए जिनमें से एक का नाम विजय तथा दूसरे का नाम सिजय रखा गया। इन दोनों लड़कों को क्षत्रिय न मानकर जाट माना गया। इन दोनों लड़के अपनी जाति सिनसिनवार लिखते थे क्योंकि उनके पैतृक गांव का नाम सिनसिनी था। भरतपुर के जाट शासक अपना सम्बन्ध इन्हीं सिनसिनवारों से मानते हैं।

ई.1688 में जब राजाराम की मृत्यु के बाद चूड़ामन जाटों का नेता बना, उन दिनों सिसिनी दुर्ग जाटों की शक्ति का मुख्य केन्द्र था। सिनसिनी के अधीन केवल तीस गांव थे किंतु यह दुर्ग घने जंगल और दलदल से घिरा हुआ था। चारों ओर पैंघोर, कार्साट, सोगर, अबार, सौंख, रायसीस और सोंखरे-सोंखरी की गढ़ैयाएँ बनी हुई थीं। इन गढ़ैयाओं को जीते बिना सिनसिनी तक पहुंचना सम्भव नहीं था।

राजाराम की मृत्यु के बाद ई.1688 में जयपुर नरेश बिशनसिंह ने सौंख गढ़ी पर घेरा डाला। उसे सौंख जीतने में चार महीने लग गए किंतु इसके बाद सिनसिनी तक पहुंचने का मार्ग खुल गया। बिशनसिंह के पास कच्छवाहों के अलावा मुगल सेना भी थी। उसने चारों तरफ का जंगल कटवा डाला तथा 15 फरवरी 1690 को सिनसिनी पर अधिकार कर लिया। राजाराम का बेटा फतहसिंह और चूड़ामन किसी तरह जान बचाकर भाग गये। इस युद्ध में 900 मुगल सैनिक तथा 1500 जाट सैनिक मारे गये।

इस पराजय के बाद जाटों में परस्पर झगड़ा हुआ और राजाराम के पुत्र फतहसिंह को पराजय का जिम्मेदार ठहराया गया। जाटों ने फतहसिंह के स्थान पर राजाराम के छोटे भाई चूड़ामन को अपना नेता चुन लिया। ई.1704 में चूड़ामन ने सिनसिनी का दुर्ग पुनः जीत लिया किंतु ई.1705 में यह दुर्ग फिर से मुगलों के अधिकार में चला गया।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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