आगरा के लाल किले की डिजाइन एवं उसकी ही तरह लाल पत्थरों से निर्मित जूनागढ़ बीकानेर, 1078 गज की परिधि में विस्तृत है। मेहरानगढ़ की ही तरह जूनागढ़ भी राठौड़ों का प्रमुख किला है।
दुर्ग के निर्माता
जूनागढ़ दुर्ग की नींव बीकानेर के छठे राठौड़ शासक रायसिंह (ई.1571-1611) ने 30 जनवरी 1589 को रखी थी। इस स्थान पर पहले भी एक दुर्ग विद्यमान था। संभवतः पुराने दुर्ग का कोई हिस्सा या निर्माण सामग्री, नये दुर्ग में काम ली गई होगी। जूनागढ़ को बनने में लगभग 5 साल का समय लगा। 17 जनवरी 1594 को दुर्ग का निर्माण कार्य पूरा हुआ।
दुर्ग का नामकरण
इस दुर्ग को जूनागढ़ कहा जाता है। जूना का अर्थ पुराने से होता है। संभवतः महाराजा गंगासिंह द्वारा लालगढ़ पैलेस बनाये जाने के बाद, राव रायसिंह के बनाये इस दुर्ग को जूनागढ़ कहा जाने लगा।
जूनागढ़ दुर्ग की श्रेणी
यह धन्व दुर्ग, स्थल दुर्ग, पारिघ दुर्ग, सैन्य दुर्ग तथा पारिख श्रेणी का दुर्ग है।
दुर्ग की सुरक्षा व्यवस्था
जूनागढ़ दुर्ग चतुर्भुज आकृति में बना है। इसके चारों ओर तिरछी प्राचीर बनाई गई है जो 40 फुट ऊंची तथा 14.5 फुट चौड़ी है। दुर्ग की प्राचीर में स्थान-स्थान पर चालीस फुट ऊंची 37 बुर्ज बनी हुई हैं। जूनागढ़ के चारों ओर गहरी परिखा अथवा खाई बनी हुई है जो लगभग तीस फुट गहरी तथा तीस फुट चौड़ी है।
जूनागढ़ की प्रवेश व्यवस्था
जूनागढ़ में प्रवेश करने के लिये दो दरवाजे- कर्ण पोल तथा चांद पोल बने हुए हैं जिन पर सिंह की मूर्तियां हैं। सूरजपोल में हाथियों पर सवार जयमल मेड़तिया और पत्ता चूण्डावत की मूर्तियां बनी हुई हैं। इसके बाद बड़ा चौक आता है यहाँ मर्दाना और जनाना महल बने हुए हैं। दुर्ग परिसर में पांच आंतरिक द्वार भी हैं जो दौलतपोल, फतेहपोल, रतनपोल, सूरजपोल कहलाते हैं।
सूरजपोल पीले पत्थरों से बना हुआ है। इस पर एक लेख उत्कीर्ण है जिसमें दुर्ग के संस्थापक राव रायसिंह के बारे में जानकारी दी गई है। यहाँ सतियों के हाथों के छापे भी उत्कीर्ण हैं। सूरजपोल के दोनों तरफ चित्तौड़ दुर्ग में वीरगति को प्राप्त हुए जयमल तथा फत्ता की गजारूढ़ मूर्तियां लगी हुई हैं। दौलत पोल में बने मेहराब और गलियारे की बनावट अनूठी है।
जूनागढ़ में स्थित महल
सूरजपोल से प्रवेश करने पर एक मैदान दिखाई देता है जहाँ जनानी ड्यौढ़ी से लेकर त्रिपोलिया तक पांच-मंजिला महलों की श्ृंखला बनी हुई है। किले की पोल में घुसते ही दाहिनी ओर महाराजा गंगासिंह द्वारा निर्मित दलेल निवास महल है। महल में जाने का मार्ग त्रिपोलिया से होकर जाता है।
पहली मंजिल में सिलहखाना, भोजनशाला, हुजूरपोड़ी, बारादरियां, घुड़साल, गुलाब निवास, शिव निवास, फीलखाना तथा घण्टाघर बने हुए हैं। दूसरी मंजिल में हरमंदिर का चौक और विक्रम विलास स्थित हैं। रानियों के लिये जालीदार बारादरी बनी हुई हैं। भैरव चौक, कर्ण महल और मंदिर दर्शनीय हैं। उसके बाद कुंवरपदा है जिसमें बीकानेर नरेशों के चित्र लगे हुए हैं।
जनानी ड्यौढ़ी के पास संगमरमर का तालाब है। फिर कर्णसिंह का दरबार हॉल है। इसमें सुनहरा काम देखते ही बनता है। पास में चंद्रमहल, फूलमहल, रायसिंह का चौबारा, अनूप महल, सरदार निवास, गंगा निवास आदि बने हुए हैं। तीसरी मंजिल में सूर मंदिर का चौबारा, गजमंदिर, सूरत निवास, प्रताप निवास, लाल निवास, गुलाब मंदिर, डूंगर निवास और भैरव चौक स्थित हैं।
चौथी मंजिल में रतन निवास, मोती महल, रंग महल, सुजान महल और गणपत विलास बने हुए हैं। पांचवी मंजिल में छत्र महल, पुराने महल एवं बरादरियां बने हुए हैं। कुछ महलों में चांदी के दरवाजे लगे हुए हैं। बीकाजी का पलंग एवं सिंहासन भी चांदी के हैं।
हरमंदिर में लगे हुए लकड़ी के दरवाजे अकबरी दरवाजे से मिलते-जुलते हैं। राजा सूरसिंह (ई.1613-31) के समय बने भवनों यथा सूरसागर एवं सूरमंदिर की स्थापत्य शैली पर मुगल स्थापत्य कला की छाप है। महाराजा अनूपसिंह (ई.1669-98) के समय में निर्मित भवनों में संगमरमर पत्थर का उपयोग किया गया है जो शाहजहाँ कालीन स्थापत्य से मिलता-जुलता है।
अनूप महल सहित कई महलों में सोने की नक्काशी और चित्रकला का अच्छा काम है जिस पर कई पुस्तकें लिखी जा सकती हैं। दुर्ग में सजावट का अधिकांश कार्य महाराजा अनूपसिंह के समय हुआ। दुर्ग के महलों में अनूप महल सर्वाधिक मनमोहक है। महल के पांचों द्वार एक चौक में खुलते हैं। महल के नक्काशीदार स्तम्भ, मेहराब आदि की बनावट अनुपम है। कर्ण महल का उपयोग दिया-बत्ती का दरबार लगाने के लिये किया जाता था। इसी के पास महाराज कर्णसिंह का दरबार हॉल है जिसमें चांदी का एक सिंहासन रखा हुआ है।
फूल महल में कांच की पच्चीकारी का अद्भुत काम हुआ है। बादल महल में आते ही ऐसा लगता है मानो आकाश बादलों से घिरा हुआ है। रंग महल किसी ख्वाबगाह की तरह दिखाई देता है। चंद्रमहल में सुंदर पेंटिंग बनी हुई हैं। छतर महल की छत पर रासलीला के दृश्य अंकित हैं।
कुछ महलों की बाहरी दीवारों पर लाल पत्थर में संगमरमर की जड़ाई की गई है। गजमंदिर में एक सुनहरा झूला लगा हुआ जो महाराजा रतनसिंह के समय का है। इस झूले पर भगवान श्रीकृष्ण विराजमान हैं। सोने-चांदी की मीनाकारी से खिले तिरछी फूलों की झालरें, चिड़िया, तोते, हंस, परियां, पताकाएं, कलश तथा खूबसूरत घुंधरुओं के गुच्छे सौंदर्य का समुद्र समेटे हुए हैं।
दुर्ग में स्थित अन्य भवन
जूनागढ़ परिसर में स्थित चीनी बुर्ज तथा महाराजा गंगासिंह का दफ्तर भी प्रमुख इमारतें हैं। गजमंदिर और शीश महल में हाथी दांत से सजा पलंग, सुंदर झूला तथा चांदी की कुर्सियां रखी हैं। गंगानिवास दरबार हॉल में दीवारों और छत पर नक्काशी का अच्छा काम हुआ है। दुर्ग में शस्त्रागार, बड़ा कारखाना, चौबारा, हुजूर दरवाजा और पीले पत्थर से बने रानीनिवास भी दर्शनीय हैं। शस्त्रागार में भाले, बंदूकें, तोपें, तलवारें, गुप्तियां, कवच, टोप तथा अन्य हथियार रखे हुए हैं।
दुर्ग में स्थित मंदिर
जूनागढ़ दुर्ग में तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का मंदिर बना हुआ है।
रायसिंह की बीकानेर प्रशस्ति
ई.1594 का यह शिलालेख बीकानेर दुर्ग के मुख्य द्वार पर संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण है। इसमें राव जोधा के वंशज तथा बीकानेर राज्य के संस्थापक राव बीका से लेकर महाराजा रायसिंह तक के बीकानेर शासकों की उपलब्धियों, रायसिंह के कार्यों एवं भवन निर्माण आदि की जानकारी प्राप्त होती है।
जूनागढ़ के भित्ति चित्र
जूनागढ़ के भित्ति चित्रों में दो प्रकार का अलंकरण प्रयुक्त हुआ है। प्रथम प्रकार में आलंकारिक रूपों का सृजन किया गया है तथा द्वितीय प्रकार में भित्तियों के अवशिष्ट भाग को विविध प्रकार के अलंकरणों से सुसज्जित किया गया है। चंद्रमहल, फूल महल और बीकम निवास की श्वेत भित्तियों पर अंकित सुनहरी उभार वाली रेखाओं द्वारा भित्तियों को विभाजित किया गया है।
भित्तियों पर आलंकारिक पुष्पपत्रों में पुष्पगुच्छों को चित्रित किया गया है। विविध पौराणिक, सामाजिक, राजसिक एवं जनजीवन सम्बन्धी विषयों से सम्बन्धित चित्रों को संयोजित किया गया है। भित्ति के नीचे के भाग में धरातल से आधा मीटर ऊंचाई तक विविध आलेख अंकित हैं। इन आलेखनों में विविध पुष्पों, पत्तियों एवं डंठलों की सुन्दर लतिकाएं अंकित की गई हैं।
महलों के चित्र संयोजनों की सीमा रेखाएं भी आकर्षक लताओं से संपूरित की गई हैं। महलों के बिम्बों पर आलंकारिक बादलों युक्त नभ चित्रित किया गया है जिसमें सर्पिलाकार लयबद्ध विद्युत रेखाएं और अप्सराएं अंकित हैं। अनूपमहल में उभारयुक्त चित्रण किया गया है। राधा कृष्ण तथा गोपियों के रूप, पुष्पगुच्छों में गुम्फित किए गए हैं। सिंदूरी पृष्ठतल पर सभी चित्रण सुनहरे रंग में उभार कर आच्छादित किए गए हैं।
कहीं-कहीं इन अलंकरणों में दर्पण भी जड़े हुए हैं। सम्पूर्ण महल में आलेखन आच्छादित है। इस प्रविधि को सोनफिन या सोने-री-कलम कहते हैं।
गजमंदिर में विविध आकृतियों में दर्पण के टुकड़ों को सगुम्फित कर आलेखनों का सर्जन किया गया है। इन दर्पणों को प्लास्टर की सुनहरे रंग की उभार युक्त रेखाओं से संयोजित किया गया है। आलेखनों के मध्य में पुष्प गुच्छों का अंकन किया गया है। कुछ स्थानों पर फल पात्र भी चित्रांकित हैं।
बादल महल के सम्पूर्ण भवन में श्वेत एवं श्याम वर्ण में चित्रित मेघ और नभ अद्भुत दृश्य उत्पन्न करते हैं। इस महल के एक आलिंद में ऐरावत पर आरूढ़ इन्द्र का चित्रण देखते ही बनता है। डूंगर निवास के एक कक्ष की छत पर भी बादलों से युक्त आकाश का चित्रण है।
दुर्ग संग्रहालय
जूनागढ़ दुर्ग में एक संग्रहालय बना हुआ है जिसे राज्य के सर्वश्रेष्ठ संग्रहालयों में गिना जाता है। इसमें पूगल, उदरामसर तथा नापासर से लाये गये कला एवं स्थापत्य के नमूने संजोये गये हैं। संग्रहालय में टैस्सीटोरी द्वारा रंगमहल एवं बड़ोप्पल से लाए गये प्राचीन सभ्यताओं के अवशेष भी संग्रहीत किये गये हैं।
जूनागढ़ पर आक्रमण
राव बीका से लेकर महाराजा करणीसिंह तक बीकानेर रियासत पर 27 राठौड़ शासकों ने शासन किया। राव कल्याणमल के समय से ही मुगलों की अधीनता स्वीकार कर लिये जाने के कारण बीकानेर दुर्ग को दिल्ली अथवा मालवा के सुल्तानों, मुगलों, मराठों तथा जाटों के आक्रमण नहीं झेलने पड़े। जोधपुर के राठौड़ शासकों ने इस दुर्ग पर कई बार आक्रमण किये किंतु वे इस दुर्ग पर अधिकार नहीं कर सके।
एल्फिंस्टन द्वारा दुर्ग की चाबियां लेने से इन्कार
ई.1808 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी का अधिकारी एल्फिंस्टन काबुल जाते हुए बीकानेर ठहरा। उस समय महाराजा सूरतसिंह अपने जागीरदारों से कलह में उलझा हुआ था। महाराजा ने एल्फिंस्टन का समुचित सत्कार किया और अंग्रेजों से मित्रता के चिह्न स्वरूप बीकानेर दुर्ग की चाबियां उसे दीं तथा आग्रह किया कि कम्पनी सरकार बीकानेर रियासत को अपने संरक्षण में ले, किंतु एल्फिंस्टन ने न तो दुर्ग की चाबियां स्वीकार कीं और न ही उसने राज्य के संरक्षण का कोई वचन दिया।
राजपरिवार का निवास
ई.1937 तक बीकानेर का राजपरिवार ही दुर्ग में बने महलों में रहता था। बाद में जब महाराजा गंगासिंह ने बीकानेर शहर से बाहर लालगढ़ पैलेस बनावाया, तब राजपरिवार वहाँ रहने चला गया।
महाराजा गंगासिंह का कार्यालय
जूनागढ़ में स्थित महाराजा गंगासिंह का कार्यालय आज भी ज्यों का त्यों रखा गया है। उनकी मेज, कुर्सी, मुहर, वेषभूषा, तस्वीरें, घड़ियां, उनके शिक्षक का फोटो, दिल्ली दरबार में जो कुर्सी उन्हें बैठने के लिये दी गई, महाराजा का टेलिफोन आदि भी इस कार्यालय में रखे हैं।
महाराजा ने गंगनहर चालू होने पर अपने हाथ से एक हल चलाया था। यह हल भी यहाँ रखा हुआ है। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद गंगासिंह को भेंट में मिले हुए उस जमाने के दो लड़ाकू विमान भी क्षतिग्रस्त अवस्था में रखे हुए हैं। अब इस प्रकार के विमान नहीं बनाये जाते।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता