चौदहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मध्य एशिया में स्थित समरकंद से 50 मील दूर मावरा उन्नहर कैच नामक स्थान पर तैमूर नामक चगताई तुर्क ने समरकंद, ख्वारिज्म, फारस, मेसोपोटामिया आदि देशों पर विजय प्राप्त करके विशाल साम्राज्य की स्थापना की। एक पैर से लंगड़ा होने के कारण वह तैमूर लंग कहलाता था। अप्रैल 1398 में तैमूर ने 92,000 घुड़सवारों के साथ भारत की ओर प्रस्थान किया।
उसके पोते ने सिंध के पश्चिमी भाग पर अधिकार कर लिया। तैमूर, सिंध तथा चिनाब नदियों को पार करके लाहौर, तुलम्बा, पाक-पतन, भटनेर, सरस्वती, फतेहाबाद तथा कैथल को लूटता हुआ पानीपत के मार्ग से दिल्ली आ गया। मार्ग में उसने एक लाख हिन्दुओं को बंदी बनाया। दिल्ली के बाहर उसने इन एक लाख हिन्दू बंदियों का कत्ल करवा दिया। उसकी बर्बरता को देखकर दिल्ली का सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद घबरा गया और गुजरात की ओर भाग गया। दिल्ली सल्तनत का प्रधानमन्त्री मल्लू इकबालखाँ भी घबराकर ‘बरान’ की ओर भाग गया।
7 सितम्बर 1398 को तैमूर ने दिल्ली में प्रवेश किया तथा अपनी सेना को, दिल्ली में कत्लेआम करने का आदेश दिया। तीन दिन तक दिल्ली में चले कत्लेआम में असंख्य लोग मार डाले गये। बड़ी संख्या में स्त्रियों, बच्चों तथा पुरुषों को पकड़कर गुलाम बना लिया गया। कई हजार शिल्पकार और यंत्रकार शहर से बाहर लाये गये और तैमूर के अमीरों एवं सरदारों में बांटे गये।
जफरनामा में लिखा है- ‘दिल्ली की शहरपनाह तथा सीरी के महल नष्ट कर दिये गये। हिन्दुओं के सिर काटकर उनके ऊँचे ढेर लगा दिये गये और उनके धड़ हिंसक पशु-पक्षियों के लिये छोड़ दिये गये।’ लेनपूल ने लिखा है- ‘इस लूट के पश्चात् तैमूर का प्रत्येक सिपाही धनवान हो गया तथा उन्हें बीस से दो सौ तक गुलाम अपने देश ले जाने को मिले।’ तैमूर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है- ‘काबू के बाहर हो मेरी सेना पूरे शहर में बिखर गई और उसने लूटमार तथा कैद के अतिरिक्त और कुछ परवाह न की। यह सब अल्लाह की मर्जी से हुआ है। मैं नहीं चाहता था कि नगरवासियों को किसी भी प्रकार की तकलीफ हो, पर यह अल्लाह का आदेश था कि नगर नष्ट कर दिया जाएं’
दिल्ली को नष्ट करके तैमूर मेरठ और हरिद्वार की ओर बढ़ा। स्थान-स्थान पर हिन्दुओं तथा मुसलमानों में भीषण संग्राम हुआ जिनमें लाखों हिन्दू मारे गये। हजारों स्त्रियों तथा बच्चों को गुलाम बनाया गया। हरिद्वार में उसने प्रत्येक घाट पर गायों का वध करवाया। लेनपूल लिखता है कि कत्लेआम के यथार्थ उत्सव के उपरांत धर्म के सैनिक तैमूर ने अल्लाह को धन्यवाद दिया और समझा कि उसका भारत आने का उद्देश्य पूरा हुआ।
तैमूर ने शिवालिक की पहाड़ियों पर विजय प्राप्त कर ली और वहाँ से लूट का माल लेकर जम्मू की ओर बढ़ा। तैमूर ने जम्मू के राजा को पराजित कर उसे मुसलमान बनने के लिये बाध्य किया। तैमूर ने पंजाब को अपने राज्य में मिला लिया तथा खिज्रखां को अपना गवर्नर नियुक्त करके 19 मार्च 1399 को फिर से सिंधु नदी पार करके समरकन्द लौट गया।
तैमूर के भयानक आक्रमण ने भारत की आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था नष्ट-भ्रष्ट कर दी। तैमूर के मार्ग में जितने नगर तथा गांव पड़े, सब नष्ट हो गये। आक्रमणकारी जिधर से निकलते, गांवों को लूटते, उजाड़ते, जलाते तथा लोगों की हत्या करते जाते थे। लाखों लोगों के शव खुले में पड़े हुए सड़ते रहे जिससे उत्तर भारत में भांति-भांति के रोग फैल गये। जनता की पीड़ा का कहीं अन्त न था।
कृषि तथा व्यापार नष्ट-भ्रष्ट हो गया और अकाल पड़ गया। इससे बहुत बड़ी संख्या में मानवों एवं पशुओं की मृत्यु हुई। आक्रमणकारी, भारत की अपार सम्पत्ति लूटकर अपने देश को ले गये तथा जनसाधारण में ऐसा भय और आंतक फैल गया कि लम्बे समय तक उत्तर भारत में हा-हाकार मचा रहा। भारतीय समाज का ताना-बाना हिल गया। लोगों का मनोबल टूट गया। वे स्वयं को परास्त और निस्तेज अनुभव करने लगे।
उन्होंने अपनी आँखों से बहिन-बेटियों की लाज लुटते देखी। अपने पुत्रों और भाइयों के कटे हुए सिरों के ढेर देखे। अपनी गायों को शत्रुओं द्वारा खाये जाते हुए देखा। उन्होंने अपने खेतों और घरों को जलते हुए देखा। वे एक दूसरे से आँख मिलाने योग्य नहीं रहे। चारों तरफ ऐसी भयानक बर्बादी मची कि लोग फिर कभी उबर ही नहीं सके। वे सदैव के लिये निर्धन और पराजित हो गये। वे भविष्य में न कोई युद्ध लड़ सके न किसी आक्रांता का सामना कर सके।
ई.1399 में तैमूर के लौट जाने के बाद दिल्ली सल्तनत की चूलें हिल गईं तथा अनेक सूबेदारों ने स्वतंत्र राज्य बना लिये। इस कारण भारत में बड़ी संख्या में स्वतंत्र प्रांतीय मुस्लिम राज्यों का उदय हुआ। ख्वाजाजहाँ ने जौनपुर में, दिलावरखाँ ने मालावा में तथा मुजफ्फरशाह ने गुजरात में स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया। बंगाल, बिहार, उड़ीसा, तिरहुत, जौनपुर तथा बहमनी राज्य भी स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में आये। पंजाब, सिंध, काश्मीर, खानदेश आदि मुस्लिम राज्य तो पहले से ही अस्तित्व में थे।
गुजरात तथा मालवा में स्वतंत्र मुस्लिम राज्यों की स्थापना हो जाने से मेवाड़ राज्य, तीन ओर से मुस्लिम राज्यों से घिर गया। उत्तर में दिल्ली सल्तनत, पश्चिम में गुजरात तथा दक्षिण में मालवा। ये तीनों मुस्लिम शक्तियां, मेवाड़ के जगमगाते हुए हिन्दू राज्य पर झपटने के लिये आगे बढ़ीं।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता
तैमूरलंग के आक्रमण के समय भारतीय शासक एवं भारत के लोग इतने कमजोर थे , कि विदेश से आकर आक्रमण कारी अपने देश को कत्लेआम कर गए।