सिरोही रियासत राजपूताने और गुर्जरात्रा की सीमाओं पर स्थित थी। इस पर सांभर के चौहानों में से निकली देवड़ा चौहानों की एक पुरानी शाखा शासन करती थी। सिरोही के देवड़ा चौहान जालौर के सोनगरा चौहानों में से निकले थे, जालौर के सोनगरा चौहान नाडौल के चौहानों में से निकले थे और नाडौल के चौहान सांभर के चौहानों में से निकले थे। अजमेर के शासक पृथ्वीराज चौहान के पूर्वज भी सांभर के चौहानों में से निकले थे।
सिरोही का अर्थ होता है- शीश काटने वाली अर्थात् तलवार। सिरोही राज्य का क्षेत्रफल 1,994 वर्ग मील था। सिरोही का राजवंश देवड़ा चौहानों के नाम से प्रसिद्ध था।
ई.1760 में महाराव वैरीशाल (द्वितीय) सिरोही का राजा हुआ। उस समय सिरोही राज्य बर्बादी के मुँह में था। रियासत के वनक्षेत्रों में बड़ी संख्या में निवास करने वाले भील और मीणा कबीले प्रजा को जी भर कर लूटते थे। राज्य के सामंत और सरदार महाराव का कहना नहीं मानते थे तथा राज्य की सीमा पर स्थित पालनपुर एवं जोधपुर राज्यों से सीमा सम्बन्धी झगड़े चलते रहते थे।
पालनपुर राज्य ने सिरोही राज्य के लगभग 250 गाँव दबा लिए थे। इस कारण सिरोही राज्य में उस समय केवल 40-50 गाँव ही रह गए थे जिनसे इतनी आय नहीं होती थी कि सिरोही का राजा एक मजबूत सेना का निर्माण करके पालनपुर से अपने गाँवों को वापस छीन सके।
सिरोही का महाराव वैरीशाल समझता था कि उसके राजपूत सरदार उसका साथ नहीं देंगे इसलिए उसने बाहर से मकरानी तथा सिंधी मुसलमानों और नागाओं को फौज में भरती करना आरम्भ किया।
छः साल में महाराव ने मुसलमानों की बड़ी फौज तैयार करके पालनपुर राज्य पर आक्रमण किया किंतु जो राजपूत सामंत, महाराव के साथ सिरोही से सेना लेकर चले वे पालनपुर की सीमा पर पहुँच कर पालनपुर के नवाब की ओर हो गए।
इस पर महाराव, पालनपुर से लड़ने का विचार त्यागकर राजधानी को लौट आया। बल से काम बनता न देखकर महाराव ने छल से काम लेना आरम्भ किया। उसने अपने राज्य के विद्रोही सरदारों के मुखिया अमरसिंह डूंगरावत को, सिंधी मुसलमानों के मुखिया देसर सिंधी के हाथों मरवा दिया। अमरसिंह के मरने पर सिरोही राज्य के सरदारों के मनोबल में काफी गिरावट आयी।
ई.1792 में जब जोधपुर के राज्य पर महाराजा विजयसिंह के पौत्र भीमसिंह ने अधिकार कर लिया और राज्य के अन्य दावेदारों को मारना आरम्भ किया तब भीमसिंह के चचेरे भाई मानसिंह ने सिरोही राज्य में शरण लेने के लिए अपने पुत्र छत्रसिंह को महाराजा वैरिशाल के पास भेजा। इससे पहले औरंगजेब के समय में सिरोही राज्य ने महाराजा अजीतसिंह को शरण दी थी किंतु महाराज वैरीशाल ने, जोधपुर के नए राजा भीमसिंह से मित्रता होने के कारण राजकुमार मानसिंह तथा उसके पुत्र छत्रसिंह को शरण देने से मना कर दिया।
जब ई.1803 में जोधपुर नरेश भीमसिंह मर गया तो मानसिंह जोधपुर का राजा बन गया। मानसिंह ने अपने दुर्दिनों में साथ देने से मना करने वाले सिरोही के महाराज वैरीशाल को दण्डित करने के लिए जोधपुर राज्य की सेना को सिरोही पर आक्रमण करने भेजा। इस सेना ने सिरोही राज्य को जमकर लूटा किंतु इस पर भी जोधपुर नरेश मानसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ। वह आजीवन सिरोही राज्य को लूटता रहा।
महाराजा मानसिंह सिरोही राज्य को मारवाड़ में सम्मिलित करना चाहता था किंतु इस उद्योग में सफल नहीं हो सका। ई.1812 में मानसिंह की सेना ने एक बार फिर से सिरोही पर बड़ा आक्रमण किया तथा उसे जी भर कर लूटा तथा बर्बाद किया। इस समय तक महाराज वैरीशाल का निधन हो चुका था एवं उदयभाण सिरोही का शासक था।
ई.1813 में सिरोही का महाराव उदयभाण अपने छोटे भाई शिवसिंह के साथ सोरों की यात्रा को गया। मार्ग में वह पाली नगर में ठहरा तथा वहाँ वेश्याओं का नाच-गान देखने में रम गया। पाली के राठौड़ हाकिम ने जोधपुर नरेश मानसिंह को गुप्त सूचना पहुंचाई कि महाराव उदयभाण पाली में ठहरा हुआ है।
इस पर महाराजा मानसिंह ने तत्काल सेना भेजकर महाराव उदयभाण, उसके भाई शिवसिंह तथा सिरोही राज्य के अधिकारियों को पकड़ लिया और उन्हें जोधपुर लाकर जेल में डाल दिया। तीन माह तक सिरोही का महाराव उदयभाण जोधपुर में कैद रहा। इस दौरान महाराजा मानसिंह ने महाराव उदयभाण से कई प्रकार की शर्तें अपने पक्ष में लिखवा लीं। अंत में महाराव उदयभाण सवा लाख रुपये देने का वचन देकर जोधपुर की कैद से छूटा। इसके बाद मानसिंह, उदयभाण से ऐसे मिला जैसे एक राजा, दूसरे राजा से मिला करता है।
महाराजा मानसिंह ने महाराव उदयभाण के साथ अच्छा व्यवहार किया किंतु महाराव उदयभाण अपने वचन का पक्का नहीं निकला। वह तो कैद से छूटने के लिए ही मानसिंह की शर्तें स्वीकार करता चला गया था। जब कई महीनों तक उसने मानसिंह को सवा लाख रुपये नहीं भिजवाए तो जोधपुर राज्य की सेना ने सिरोही राज्य में घुसकर फिर से लूट मचायी।
महाराव उदयभाण को उसके सामंतों ने सलाह दी कि जब जोधपुर की सेना हमारे राज्य में लूट करती है तो हमें भी जोधपुर राज्य में घुसकर लूटमार करनी चाहिये। इस पर महाराव ने अपनी सेना को जोधपुर राज्य में लूट करने के लिए भेज दिया। जब महाराजा मानसिंह ने सिरोही राज्य की इस ढिठाई के बारे में सुना तो उसने अपनी सेना को आदेश दिया कि वह सिराही राज्य को नष्ट कर दे। जोधपुर राज्य की सेना के भय से उदयभाण सिरोही छोड़कर पहाड़ों में भाग गया। जोधपुर राज्य की सेना पूरे दस दिन तक सिरोही नगर और आसपास के गाँवों को लूटती रही तथा ढाई लाख रुपये इकट्ठे करके जोधपुर लौटी।
जोधपुर की सेना ने सिरोही से लौटते समय सिरोही के राजकीय कार्यालयों को आग की भेंट कर दिया। सिरोही राज्य को जलता हुआ देखकर महाराव उदयभाण ने महाराजा मानसिंह को सवा लाख रुपये देने का मन बनाया ताकि दोनों पक्षों में शांति स्थापित हो सके किंतु राजकीय खजाना तो खाली था।
जोधपुर की सेना के चले जाने के बाद महाराव उदयभाण जंगलों से निकल आया। उसने राज्य में व्यापार कर रहे महाजनों से रुपये वसूलने के लिए उन पर अनेक अत्याचार किया। महाराव के इस व्यवहार से क्रुद्ध होकर महाजन लोग, सिरोही राज्य को छोड़कर हमेशा के लिए गुजरात और मालवा की ओर भाग गए तथा वहीं पर बस गए।
इसी बीच भीलों और मीणों ने सिरोही राज्य के गाँवों में घुसकर लूट मचानी शुरू कर दी। वे जानवरों के झुण्डों को पकड़कर ले जाते तथा उन्हें मारकर पकाते-खाते थे। ये लुटेरे राज्य के महाजनों एवं धनी मानी लोगों को बंधक बनाकर पहाड़ों में ले जाते तथा वहाँ उन्हें तरह-तरह की यातनाएं देते थे। उन्होंने कई गाँवों से अपनी चौथ भी बांध ली।
राज्य की यह दुर्दशा देखकर सिरोही राज्य के बहुत से सरदार, नांदिया गाँव के ठाकुर शिवसिंह के पास गए जिसे राजा साहब की पदवी प्राप्त थी। ठाकुर शिवसिंह महाराव उदयभाण का छोटा भाई था। उसने ई.1817 में महाराव उदयभाण को नजरबंद कर लिया तथा स्वयं राज्यकार्य चलाने लगा।
महाराजा मानसिंह ने जोधपुर से सेना भेजकर महाराव उदयभाण को नजरबंदी से मुक्त करवाने का प्रयास किया किंतु सफलता नहीं मिली। महाराव तीस वर्ष तक नजरबंद रहा तथा नजरबंदी की अवस्था में ही ई.1847 में उसकी मृत्यु हुई। उसके बाद उसका छोटा भाई शिवसिंह सिरोही राज्य का स्वामी हुआ। शिवसिंह ने ई.1817 से ही सिरोही राज्य का शासन कार्य अपने हाथ में ले लिया था किंतु बड़े भाई के जीवित रहते उसने स्वयं को महाराव नहीं कहा।
महाराव शिवसिंह ने ई.1823 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी से समझौता करने का प्रयास किया किंतु जोधपुर नरेश मानसिंह ने अंग्रेजों को लिखा कि सिरोही राज्य पहले से ही जोधपुर राज्य के अधीन है, इसलिए सिरोही राज्य से अंग्रेज अलग से समझौता नहीं कर सकते किंतु कर्नल टॉड ने जोधपुर नरेश मानसिंह के इस दावे को ठुकरा दिया और कर्नल टॉड की अनुशंसा पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने सिरोही राज्य के साथ अलग से संधि की। इस संधि के तहत राज्य के बाहरी एवं भीतरी तत्वों से सिरोही राज्य की सुरक्षा करने का भार कम्पनी सरकार ने अपने ऊपर ले लिया।
डॉ. मोहनलाल गुप्ता