Sunday, December 22, 2024
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59. भतीजे को कपड़े

जाबिता खाँ रूहेला महादजी सिंधिया का पक्का शत्रु था। किसी समय महादजी ने उसे युद्ध में परास्त करके उसके हरम की औरतों को पकड़ लिया था और बुरी तरह बेइज्जत करके वापस लौटा दिया था। तब से जाबिता खाँ महादजी के पीछे हाथ धोकर पड़ा रहता था और अचानक हमला करके उसे छोटा-बड़ा नुक्सान पहुँचाता रहता था। महादजी के अपार सैन्य बल के सम्मुख जाबिताखाँ की कोई हैसियत न थी। इसलिये महादजी, जाबिता खाँ को खाट के नीचे से अचानक निकल कर काट लेने वाले मच्छर से अधिक नहीं समझता था। फिर भी यह मच्छर काफी दिनों तक महादजी के कानों पर काटता रहा और लाख चाहने पर भी उसके हाथ नहीं आया। एक दिन महादजी ने जाबिता खाँ को घेर कर मार डाला।

जाबिता खाँ के बाद उसका पुत्र गुलाम कादिर, रूहलों का नेता हुआ। उसमें अपने पिता की सी दृढ़ इच्छा-शक्ति नहीं थी। इसलिये जब भी उसका सामना महादजी की सेना से होता तो वह भाग छूटता। महाराजा विजयसिंह नहीं चाहता था कि गुलाम कादिर महादजी के सामने कमजोर पड़े और रुहेले महादजी से अपना वैर भूल जायें। इसलिये मरुधरानाथ ने जाबिता खाँ की विधवा को पत्र लिखकर उकसाया कि आपको याद होगा कि आपके मरहूम पति जाबिता खाँ हमारे भाई जैसे थे। पहले जब मराठे रूहेलों पर चढ़कर आये थे तब महादजी सिन्धिया ने तुम्हारे पति जाबिता खाँ को परास्त करके भगा दिया था और आप सब औरतों को बंदी बनाकर बड़ी बेइज्जती की थी। आपके पुत्र गुलाम कादिर को उस बेइज्जती का जरा भी विचार नहीं है। वह कायरों की तरह डर कर भागा-भागा फिर रहा है। इस बार भी वह मराठों से डर कर भाग गया। इससे तुम्हारे मरहूम पति का नाम खराब हो रहा है। हमें भी उसे अपना भतीजा कहने में शर्म आयेगी। आप अपने बेटे को लिखें कि वह कायर न बने। यदि उसे रुपयों की कमी हो तो हमसे बात करे।

मरुधरानाथ का पत्र पाकर जाबिता खाँ की विधवा के पुराने घाव हरे हो गये। उसने अपने पुत्र को मरुधरानाथ का पत्र और पन्द्रह लाख रुपये दिल्ली भेजकर कहलवाया कि यदि हमें फिर से सिंधिया के हाथों में सौंपकर हमारी इज्जत खराब करवानी हो तो उसके सामने से भाग जाना। और हमें कभी मुँह मत दिखाना। विधवा माँ का यह पत्र पाकर गुलाम कादिर को जोश आया। इसके बाद उसने पूरी तैयारी के साथ महादजी सिन्धिया का सामना किया और उसे अच्छा खासा नुक्सान पहुँचाया।

यह समाचार पाकर मरुधरपति अत्यंत प्रसन्न हुआ। उसने गुलाम कादिर रूहेला को अपना भतीजा सम्बोधित करते हुए उसे पत्र लिखकर उसकी पीठ ठोकी ओर उसे अपने पुत्र के पहनने योग्य कीमती कपड़े, हीरे-जवाहरात, आभूषण आदि भिजवाये। कुछ ही दिनों में दिल्ली से ऐसा समाचार आया जिसे पाकर मरुधराधीश की बाँछें खिल गईं। मरुधरानाथ के वकील ने लिखा कि आपके द्वारा भेजे गये हीरे-जवाहरात और कपड़ों ने गुलाम कादिर पर जादू किया। उसने दिल्ली के लाल किले में घुसकर बादशाह मोहम्मद शाह को कैद करके उसकी आँखें निकाल लीं और तीन दिन तक उसे रोटी पानी नहीं दिया। चौथे दिन वह बादशाह की छाती पर चढ़ कर बैठ गया और खंजर से उसका पेट चीर दिया। इससे भयभीत होकर चार शहजादे लालकिले के कोट से कूदकर मर गये। कितने ही शहजादे गुलाम कादिर की शरण में रहे। रूहेला ने बादशाह के विश्वस्त सरदार अली गौहर की औरतों की इज्जत लूट कर उन्हें पहने हुए कपड़ों में ही लाल किले से बाहर निकाल दिया।

जब ये समाचार जोधपुर पहुँचे तो मरुधरपति बड़ा प्रसन्न हुआ किंतु उसने अपनी प्रसन्नता को किसी के समक्ष प्रकट नहीं होने दिया। उसने दरबार में कहा कि गुलाम कादिर ने यह काम अच्छा नहीं किया। दिल्ली के बादशाह के मरने पर जोधपुर के महलों में कई दिनों तक नौबत नहीं बजती थी तथा पूरी तरह शोक रखा जाता था किंतु मरुधरानाथ ने शाह मुहम्मद की मृत्यु की सूचना मिलने पर अपने महलों की नौबत बंद नहीं करवाई। उसने वकील को संदेश भिजवाया कि गुलाम कादिर से कहो कि मलका ए जमानी के पौत्र बीदरबख्त को बादशाह बनाये।

मरुधरानाथ की सम्मति से गुलाम कादिर ने बीदरबख्त को लालकिले की गद्दी पर बैठाया किंतु कुछ दिन बाद उसे भी कैद कर लिया तथा मलका ए जमानी के साथ रुपयों के लिये बड़ी बेअदबी की। इसके बाद वह अली गौहर की बहन की छाती पर पलंग के पाये रख कर चढ़ गया जिससे गौहर की बहन का प्राणांत हो गया। कुछ समय बाद यही अली गौहर, शाह आलम द्वितीय के नाम से मुगलों के तख्त पर बैठने वाला था।

मुगल बादशाहों के तख्त पर बैठकर जिस औरंगजेब ने महाराज जसवंतसिंह की विधवा रानियों के साथ जो दुर्व्यवहार किया था, आज उसी औरंगजेब के वंशजों की ऐसी दुर्दशा होती देखकर मरुधरानाथ विजयसिंह की प्रसन्नता का पार नहीं था। ऐसे समाचार देने वालों पर वह मोतियों की मालायें लुटाता था और महल के मंदिर में बालकृष्ण लाल के समक्ष घी के दीपक जलाता था। क्रूर इतिहास की आँखों में रक्त उतर आया था और वह औरंगजेब के बुरे कर्मों का भरपूर बदला उसके वंशजों से ले रहा था।

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