Sunday, November 10, 2024
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60. हाथियों की लड़ाई

मराठों के वकील कृष्णाजी जगन्नाथ ने मरुधरानाथ विजयसिंह द्वारा गुलाम कादिर को दिये जा रहे समर्थन के समाचार तुकोजी राव होलकर को लिख भेजे जिन्हें पढ़कर तुकोजीराव का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। जब जोधपुर का वकील डोला सिंघी, उसके पास मुजरा करने गया तब तुकोजी राव ने वकील का अपमान किया। कई दिन तक तो उससे भेंट ही नहीं की तथा एक दिन उसे बुलाकर अपने सामने उसकी जमा तलाशी करवाई और उसके द्वारा लाये गये उपहारों की जांच करवाई कि कहीं उनमें विष तो नहीं लगा हुआ है!

डोला सिंघी, तुकोजी की ये हरकतें देखकर हैरान हो गया। उसने तुकोजी से ऐसा करने का कारण पूछा तो उसने तुनककर कहा-‘जोधपुर की हवाओं में जहर है। वहाँ से आने वाली हर चीज जहरीली है। इसलिये तो उनके स्पर्श से गुलाम कादिर भी जहरीला हो गया।’

-‘गुलाम कादिर से मराठों की पुरानी दुश्मनी है। महादजी ने उसकी माँ की इज्जत लूटी थी और उसके बाप को जान से मार डाला था। इसमें जोधपुर वालों का क्या कुसूर है?’

-‘अजमेर से भी मराठों की पुरानी दुश्मनी है जो वह अपने आप जोधपुर वालों की झोली में जा गिरा!’ तुकोजी ने व्यंग्य से कहा।

-‘अजमेर तो महाराजा अजीतसिंह के समय से राठौड़ों के पास था। मराठों के उत्तरी भारत में आने से पहले भी राठौड़ अजमेर के शासक थे। यह पहली बार थोड़े ही हुआ है कि अजमेर जोधपुर के अधिकार में गया है।’ वकील ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया।

-‘यह तो हम भी जानते हैं कि महाराजा विजयसिंह सबसे कहते फिर रहे हैं कि पूरा उत्तर भारत राजपूतों का था, है और रहेगा। मराठे उत्तर भारत में मांगते ही क्या हैं। क्यों? यही बात है ना?’ तुकोजी राव का स्वर और भी तेज हो गया।

-‘भारत वर्ष में शासन का आधार तलवार ही रहा है। जिसकी तलवार में जोर होगा, वही उत्तर भारत की भूमियों का स्वामी भी होगा। राठौड़ मराठों को केवल इतिहास सुनाकर तो अजमेर को अपने वश में नहीं रख सकते।’

-‘बिल्कुल ठीक कहा तुमने। हम तुम्हारी जहरीली जिह्वा से यही तो सुनना चाहते थे। तुम राठौड़ों को अजमेर क्या मिला, मराठों को तलवार का जोर दिखाने लगे।’ तुकोजीराव लगभग चीखने लगा था।

-‘मराठा सेनापति के लिये वार्त्तालाप के दौरान क्रोधित होना उचित नहीं है। मैं तो केवल राठौड़ों का वकील हूँ, इससे अधिक कुछ नहीं।’

-‘तो आप अच्छी तरह सुन लीजिये और अपने राठौड़ स्वामियों को लिख भेजिये कि अजमेर का किला पेशवा का था और रहेगा। उसे जोधपुर ने लेकर श्रीमंत पेशवा सरकार से शत्रुता मोल ले ली है। अब राठौड़ हमारे मित्र नहीं रहे, शत्रु हो गये।’

-‘मरुधरानाथ ने श्रीमंत पेशवा सरकार के वकील कृष्णाजी जगन्नाथ को दरबार में बुलाकर सबके समक्ष स्वयं वचन दिया है तथा आपको भी पत्र भिजवाया है कि वे मराठों से मित्रता चाहते हैं और मराठों के साथ पहले से जो संधि हो रखी है, राठौड़ों की तरफ से उसकी पालना की जायेगी।’

-‘तुम्हारे राजा के मुँह में दो जिह्वाएँ हैं, एक वह जो हमारे समक्ष खुलती है और दूसरी वह जो हमारे दुश्मनों के समक्ष खुलती है। मैं तो देख रहा हूँ कि तुम्हारे मुँह में भी दो जिह्वाएँ हैं।’

-‘राठौड़ अपने वचनों से कभी नहीं फिरे।’

-‘यदि राठौड़ अपने वचनों से नहीं फिरे तो मारवाड़ नरेश मेवाड़ के भीतर किले क्यों बना रहे हैं? और…….. जहाँ देवस्थान है, वहाँ किले क्यों बना रहे हैं?’

-‘किसी ने आपको गलत सूचनाएँ दी हैं। मरुधरानाथ मेवाड़ में किले नहीं बनवा रहे। वे तो श्रीजी साहब के अनुरोध पर सैनिक चौकियों की स्थापना कर रहे हैं ताकि चूण्डावत और शक्तावतों के उपद्रवों को रोकने के लिये श्रीजी साहब की सेनायें नियुक्त की जा सकें।’

-‘तुम तो वकील हो, तुम्हारा काम ही वाद-प्रतिवाद करना है। मैं तुम्हारे मुँह नहीं लगता। तुम महाराजा को हमारा संदेश भेजो कि यदि श्रीमंत पेशवा सरकार से भाईचारा रखना है तो अजमेर के किले पर अधिकार छोड़ दो। उसके बदले में चाहो तो हमसे क्षतिपूर्ति की राशि ले लो। मेवाड़ में श्रीजी के यहाँ जो आपकी चौकी है, उसे उठा दो। किलों का निर्माण करना बंद करो। देवस्थानों को देवस्थान ही रहने दो, उन्हें किलों में मत बदलो। अन्यथा जैसी आपकी मर्जी, वैसा करो और परिणाम भुगतने के लिये तैयार रहो।’

डोला सिंघी ने मराठा सूबेदार तुकोजीराव द्वारा किये गये दुर्व्यवहार की सूचना महाराजा विजयसिंह को लिख भेजी। साथ ही पूरा वार्त्तालाप सविस्तार लिख दिया। इस पर महाराजा ने नाना साहब के वकील कृष्णाजी जगन्नाथ को बुलाकर उस पर अपनी अप्रसन्नता व्यक्त की और चेतावनी दी कि हमारे द्वारा बार-बार मित्रता का आश्वासन दिये जाने पर भी मराठा सूबेदार हमारे वकील के साथ दुर्व्यवहार कर रहे हैं। उन्हें सूचित करो कि वे जो व्यवहार हमारे वकील के साथ करेंगे, वही व्यवहार हम उनके वकील के साथ भी करेंगे।’

महाराजा की यह दृढ़ता देखकर कृष्णाजी जगन्नाथ सहम गया। उसे अपने भविष्य की चिंता सताने लगी। उसे लगा कि हाथियों की लड़ाई में हाथियों का तो पता नहीं कुछ बिगड़ेगा या नहीं किंतु वकील जरूर पिस जायेंगे।

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