Wednesday, October 30, 2024
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महाराणा रायमल की मालवा राज्य पर विजय

महाराणा रायमल (1473-1509 ई.), के गद्दी पर बैठते ही माण्डू के सुल्तान गयासशाह ने चित्तौड़ दुर्ग को घेर लिया। दोनों पक्षों के बीच भयंकर युद्ध हुआ जिसका उल्लेख एकलिंगजी के दक्षिण द्वार की प्रशस्ति में इस प्रकार किया गया है- ‘इस भयंकर युद्ध में महाराणा रायमल ने शकेश्वर (सुलतान) ग्यास (गयासशाह) का गर्वभंजन किया।’

  वीरवर गौर (गौड़ राजपूत वीर) ने दुर्ग के एक शृंग पर खड़े रहकर प्रतिदिन बहुत से मुसलमानों को मारा जिसके कारण महाराणा ने उस शृंग का नाम गौरशृंग रखा और वह गौर भी मुसलमानों के रुधिर स्पर्श का दोष निवारण करने के लिये स्वर्ग गंगा में स्नान करने को परलोक सिधारा। 

गयासशाह इस लड़ाई में हारकर  माण्डू को लौट गया तथा कुछ दिन बाद अपने सेनापति जफरखां को भारी सेना देकर महाराणा पर आक्रमण करने भेजा। महाराणा ने अपने पांच पुत्रों- पृथ्वीराज, जयमल, संग्रामसिंह, पत्ता (प्रतापसिंह) और रामसिंह को एवं कुछ सरदारों को जफरखां से लड़ने के लिये भेजा। इन कुंवरों ने जफरखां को पराजित करके भगा दिया। 

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मेदपाट के अधिपति रायमल ने मण्डल दुर्ग (माण्डलगढ़) के निकट जफर के सैन्य का नाश कर शकपति ग्यास के गर्वोन्नत सिर को नीचा कर दिया।  वहाँ से रायमल मालवा की ओर बढ़ा, खैराबाद की लड़ाई में यवन सेना को तलवार के घाट उतारकर मालवा वालों से दण्ड लिया और अपना यश बढ़ाया।  जब लल्लाखां पठान ने सोलंकियों से टोड़ा (जयपुर जिला) और उसके आसपास का क्षेत्र छीन लिया तो सोलंकी राव सुरताण हरराजोत, महाराणा रायमल के पास चित्तौड़ में उपस्थित हुआ।

महाराणा ने उसे बदनोर का क्षेत्र जागीर में देकर अपना सरदार बनाया।  लांछ के सोलंकियों ने भी मेवाड़ में आकर देसूरी की जागीर प्राप्त की। उन्हें 140 गांवों के साथ देसूरी का पट्टा दिया गया।  काठियावाड़ के हलवद राज्य के स्वामी झाला राजसिंह के पुत्र अज्जा और सज्जा ई.1506 में मेवाड़ चले आये। महाराणा रायमल ने उन्हें भी मेवाड़ में जागीरें प्रदान कीं।

महाराणा रायमल प्रभावशाली राजा था। उसने 36 वर्ष तक मेवाड़ राज्य पर शासन किया। उसकी रानी शृंगारदेवी मारवाड़ के राजा जोधा की पुत्री थी जिसने घोसुण्डी की प्रसिद्ध बावड़ी बनवाई। रायमल के चार पुत्र थे, जिनमें दुर्भाग्य से राजा के जीवित रहते ही, राज्याधिकार को लेकर झगड़ा हुआ। इस झगड़े में दो राजकुमार मारे गये तथा तीसरा राजकुमार संग्रामसिंह, मेवाड़ छोड़कर गुप्तवास में चला गया।

 जब रायमल को ज्ञात हुआ कि संग्रामसिंह जीवित है तथा श्रीनगर के जागीरदार कर्मचंद पंवार के पास है तो महाराणा रायमल ने संग्रामसिंह को अपने पास बुला लिया। रायमल के इस निर्णय से, आगे चलकर मेवाड़ को सबसे प्रतापी और प्रबल राजा मिला जो उत्तर भारत की राजनीति में उस काल में सबसे प्रभावशाली शासक सिद्ध हुआ।

– डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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