पिण्डारियों के विरुद्ध की गई इस महान् कार्यवाही में जेम्स टॉड तथा उसके द्वारा तैयार किए गए नक्शों की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
ई.1805 से लेकर 1817 तक, 12 वर्ष की अवधि में कर्नल टॉड ने लगभग पूरा राजपूताना देख लिया था। उस काल में राजपूताने के भूगोल, इतिहास तथा राजपूताने की राजनीतिक परिस्थितियों की जितनी जानकारी कर्नल टॉड को थी, उतनी ईस्ट इण्डिया कम्पनी में किसी अन्य अधिकारी को नहीं थी।
ई.1807 से 1813 तक लॉर्ड मिण्टो ईस्ट इण्डिया कम्पनी का गवर्नर जनरल था, उसने देशी राज्यों में हस्तक्षेप न करने की नीति अपनाई जिससे मराठों और पिण्डारियों को राजपूताना में लूटमार करने की छूट मिल गई और राजपूताना लुटेरों का घर बन गया।
कर्नल टॉड को महान राजपूताने की दुर्दशा पर बड़ा तरस आया जब उसने देखा कि राजपूत राजाओं में महान गुणों का वास होते हुए भी तनिक भी एकता नहीं है। जैसे ही किसी राजा या राजकुमार में विवाद हुआ, वे सीधे मराठों की शरण में जा पहुँचते थे या फिर पिण्डारियों की सेवाएं प्राप्त करते थे।
इस कारण राजा, प्रजा, राज्य एवं राजवंश जर्जर होते चले जा रहे थे। टॉड ने निश्चय किया कि इस महान प्रदेश को मराठों और पिण्डारियों के उत्पात से बचाया जाना चाहिए तथा राजपूताने को ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेवाएं प्रदान की जानी चाहिये।
कर्नल टॉड ने ई.1814-15 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के उच्च अधिकारियों को एक पत्र लिखकर अनुरोध किया कि इन पिण्डारियों को कुचला जाए अन्यथा राजपूताना नष्ट हो जाएगा। कम्पनी सरकार ने कर्नल जेम्स टॉड से पिण्डारियों के विरुद्ध की जाने वाली लड़ाई की पूरी योजना बनवाई।
टॉड ने पिण्डारियों की सामरिक शक्ति, उनके दबदबे वाले क्षेत्र तथा राजपूताने की स्थिति को ध्यान में रखकर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की और उसे सरकार को भेज दिया। इस योजना को बनाने में कर्नल टॉड द्वारा निर्मित नक्शों ने बड़ी सहायता की। सरकार ने कर्नल जेम्स टॉड का बड़ा आभार व्यक्त किया।
ई.1817 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के गवर्नर जनलर मार्कीस ऑफ हेस्टिंग्स ने पिण्डारियों को नष्ट करने का निर्णय लिया। मेजर जनरल सर ऑक्टरलोनी, जनरल डॉनकिन, जनरल मार्शल, जनरल एडम्स और जनरल ब्राउन को राजपूताना एवं मध्यभारत में पिण्डारियों को घेरकर मारने का काम सौंपा गया।
इन जनरलों ने पूरा राजपूताना और मध्य भारत घेर लिया। जब कर्नल जेम्स टॉड को इस बात की जानकारी हुई तो उसने कम्पनी सरकार को लिखा कि मुझे भी पिण्डारियों को कुचलने के कार्य पर लगाया जाए। गवर्नर जनरल ने टॉड का अनुरोध स्वीकार कर लिया। पहले तो गवर्नर जनरल ने जेम्स टॉड को मेजर जनरल ऑक्टरलोनी के अधीन नियुक्त करने का विचार किया किंतु कर्नल टॉड की महत्ता को देखते हुए उसे स्वतंत्र प्रभार देकर हाड़ौती क्षेत्र में रांवटा नामक स्थान पर नियुक्त किया गया।
कर्नल टॉड का काम था राजपूताना तथा मध्य भारत को घेरकर खड़े जनरलों के बीच समन्वय स्थापित करना, उन्हें आगे की कार्यवाही के बारे में सुझाव देना तथा पिण्डारियों एवं मराठों की गतिविधियों की जानकारी अंग्रेज अधिकारियों तक पहुँचाना। कर्नल टॉड की सम्मति से ही अंग्रेज जनरलों ने अपनी सेनाओं का प्रयाण नियत किया।
कर्नल टॉड ने व्यवस्था की कि प्रतिदिन कम से कम 20 स्थानों से पिण्डारियों की हलचल के सम्बन्ध में उसे सूचनाएं प्राप्त हों। टॉड इन सूचनाओं का सार निकालकर विभिन्न जनरलों को भेज देता था। एक बार टॉड को सूचना मिली कि करीम खाँ पिण्डारी का बेटा 1500 पिण्डारियों के साथ रांवटा से 30 मील दूरी पर कालीसिंध के निकट आ पहुँचा है। उस समय टॉड के पास मात्र 32 सैनिक ही थे।
उन दिनों कोटा राज्य का फौजदार झाला जालिमसिंह रांवटा में मुकाम कर रहा था। टॉड तुरंत ही फौजदार जालिमसिंह की सेवा में उपस्थित हुआ तथा पिण्डारियों के विरुद्ध कोटा राज्य से सहायता मांगी। उस समय जालिमसिंह 70 साल का हो चुका था तथा उसकी दोनों आँखों ने काम करना बंद कर दिया था किंतु उसका विवेक पूरी तरह जाग्रत था। झाला जालिमसिंह ने उसी समय 250 सिपाही कर्नल टॉड के साथ कर दिए।
कर्नल टॉड ने कुल 282 सिपाहियों को अपने साथ लेकर, 1500 पिण्डारियों पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में 150 पिण्डारी मारे गए तथा शेष जान बचाकर भाग खड़े हुए। टॉड ने पिण्डारियों के डेरे लूट लिए तथा उनके बहुत से हाथी, घोड़े और ऊंट छीन लिए। टॉड को यहाँ से काफी धन प्राप्त हुआ जिससे टॉड ने कोटा राज्य में स्थित चंद्रभागा नदी पर एक पुल बनवा दिया तथा उसका नाम हेस्टिंग्स ब्रिज रखा।
जब पिण्डारियों से युद्ध समाप्त हो गया तब कर्नल टॉड ने कम्पनी सरकार को लिखा कि कोटा के झाला जालिमसिंह ने इस युद्ध में अंग्रेजों की बड़ी सहायता की है इसलिए उसे डीग, पंचपहाड़, आहोर और गंगरार की जागीरें दी जाएं। लॉर्ड हेस्टिंग्स ने कोटा महाराव से सिफारिश की कि ये चारों परगने जालिमसिंह को दे दिए जाएं किंतु झाला जालिमसिंह ने ये परगने कोटा के महाराव उम्मेदसिंह को ही सौंप दिए।
पिण्डारियों और मरहठों का उपद्रव मिटने पर कम्पनी सरकार ने राजपूताना के राज्यों से संधि करने का काम आरम्भ किया। जेम्स टॉड को उदयपुर, जोधपुर, कोटा, बूंदी तथा जैसलमेर राज्यों का पोलिटिकल एजेण्ट नियुक्त किया गया तथा उसका मुख्यालय उदयपुर में स्थापित किया गया।
फरवरी 1818 में कर्नल टॉड उदयपुर के लिए रवाना हुआ। टॉड ने लिखा है कि इस बार तो मेवाड़ की दशा ई.1806 की दशा से भी अधिक बुरी थी। भीलवाड़ा में जहाँ पहले 6,000 घरों की बस्ती थी, अब वहाँ एक भी मनुष्य नहीं रहता था। बहुत से लोग मराठों के भय से मेवाड़ छोड़कर मालवा तथा हाड़ौती आदि स्थानों को चले गए थे। राज्य की आय बहुत घट गई थी, सरदारों ने खालसे के बहुत से गाँव दबा लिए थे।
अपने प्रशासनिक कार्यों के साथ-साथ कर्नल टॉड राजपूताना के राज्यों एवं प्राचीन राजवंशों के इतिहास को संकलित करने में संलग्न रहता था। ई.1819 में टॉड उदयपुर से नाथद्वारा, कुंभलगढ़, घाणेराव तथा नाडोल होते हुए जोधपुर आया। नाडोल में उसने लाखणसी के समय के दो शिलालेख वि.सं.1024 तथा 1039 ढूंढ निकाले जिनसे अजमेर एवं नाडोल के चौहान, जालोर के सोनगरा चौहान तथा सिरोही के देवड़ा चौहानों का इतिहास संकलित करने में बड़ी सहायता मिली।
टॉड ने वि.सं.1218 का आल्हणदेव के समय का एक ताम्रपत्र तथा एक अन्य ताम्रपत्र भी खोज निकाले। इस यात्रा में उसने कई सिक्के, प्राचीन हस्तलिखित पुस्तकें तथा शिलालेख संकलित किए। जोधपुर नरेश मानसिंह ने टॉड को विजय विलास, सूर्य विलास तथा मारवाड़ की ख्यात आदि कई पुस्तकें भेंट कीं। जोधपुर प्रवास के दौरान टॉड, नागों, प्रतिहारों एवं राठौड़ों की प्राचीन राजधानी मण्डोर देखने के लिए गया। अजमेर एवं पुष्कर में भी उसने कई सिक्के एकत्रित किए।
कहते हैं कि एक बार कर्नल टॉड ने जहाजपुर में मक्का की रोटी खाई जिसे खाते ही उसका सिर घूमने लगा, जीभ भारी हो गई और कंठ रुंध गया। किसी देशी वैद्य ने टॉड को सलाह दी कि उसकी तिल्ली बढ़ी हुई है, यदि वह तिल्ली पर जोंक लगवा ले तो इस रोग से मुक्ति मिल जाएगी। टॉड ने उसी समय 60 जोंकें मंगवाकर तिल्ली पर लगवा लीं तथा चारपाई पर लेट गया। उसने अपने साथ चल रहे ब्राह्मणों एवं पटेलों से कहा कि वे इतिहास सुनाना जारी रखें।
डॉ. मोहनलाल गुप्ता