Friday, November 22, 2024
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47. सिर पर पाँव

तालपुरों के सरदार मीर फतहअली खाँ के तीन भाई थे- गुलाम अली, करम अली तथा मुराद अली। इन चारों को ‘चार यार’ कहते थे। हैदराबाद (सिंध) में इनका संयुक्त शासन था। महाराजा विजयसिंह द्वारा उमरकोट पर अधिकार करने के चार साल बाद तालपुरों की ओर से मीर बहराम खाँ ने उमरकोट पर चढ़ाई की। उसकी एक सेना ने उमरकोट का गढ़ घेर लिया और वह स्वयं तीन हजार सैनिकों के साथ उमरकोट से भी साठ कोस आगे बढ़कर गिराब तक पहुँच गया।

उमरकोट दुर्ग में उस समय खूबचंद सिंघवी का भांजा शाहमल लोढ़ा नियुक्त था तथा उसके अधीन सिन्ध की सीमा पर स्थित महाराजा विजयसिंह के डेढ़ हजार सैनिक थे। जोधपुर से सैंकड़ों मील दूर होने, चारों ओर भयानक रेगिस्तान होने तथा चारों ओर दूर-दूर तक मुसलमान प्रजा होने के कारण इन राठौड़ सैनिकों की हालत खराब थी।

उमरकोट से सात-आठ कोस दूर तक पानी का कोई प्रबंध नहीं था इसलिये महाराजा की सेना पानी के आसपास ही केन्द्रित रहती थी, वह आगे बढ़कर कोई कार्यवाही नहीं कर पाती थी। जब बहरामखाँ ने उमरकोट को घेर लिया तो शाहमल की हालत खराब हो गई। उस समय दुर्ग में रसद बहुत ही कम थी। इसलिये शाहमल ने महाराजा से सहायता की गुहार लगाई।

खूबचंद सिंघवी ने अपने भांजे को मुसीबत में आया जानकर, मरुधरपति से उमरकोट जाने की अनुमति मांगी। महाराजा किसी भी कीमत पर खूबचंद को अपने से दूर नहीं करना चाहता था। इसलिये उसने किसी दूसरे सरदार को यह बीड़ा उठाने के लिये कहा। इस पर लाडणू का ठाकुर शिवदानसिंह भारतसिंहोत अपने सम्बन्धियों सहित उमरकोट जाने के लिये सामने आया। महाराजा ने उसे उमरकोट जाने की स्वीकृति दे दी तथा उसके साथ चैनमल सिंघवी, लालचंद बागरेचा एवं पातावत सरदारों को भी रवाना किया। जब यह राठौड़ वाहिनी गिराब पहुँची, तब बनेचंद सिंघवी भी अपनी सेना लेकर इनसे आ मिला।

जैसे ही तालपुरों को इस राठौड़ वाहिनी के आने की भनक लगी, वे कई कोस आगे आकर हूतकुतंगों की तरह राठौड़ों पर कूद पड़े। पिछली लड़ाई के अनुभव के कारण वे इस लड़ाई को दिन में ही निबटा लेना चाहते थे। उधर राठौड़ भी सावधान थे। अब तक वे तालपुरों की रणनीति से अच्छी तरह परिचित हो चुके थे। इसलिये उन्होंने चारों तरफ बिखर कर तालपुरों को घेर लिया और उन्हें दौड़ा-दौड़ा कर मारा। तालपुरे, राठौड़ों की बदली हुई रणनीति देखकर हैरान थे। वे तो समझ रहे थे कि पिछली बार की तरह इस बार भी राठौड़ खंदकें खोद कर बैठे होंगे और उन्हें खंदकों में ही मार डाला जायेगा किंतु उनके मंसूबे धरे रह गये।

राठौड़ों के लिये उमरकोट लाभ का सौदा नहीं था किंतु वह राठौड़ों की नाक बन चुका था। इसलिये राठौड़ कोई ऐसा उपाय करना चाहते थे जिससे तालपुरे कई सालों तक सिर नहीं उठा सकें। इस युद्ध के बाद ऐसा लगता था कि राठौड़ इस उद्देश्य में सफल हुए थे। उन्होंने लगभग सारे तालपुरों का वध कर दिया। बहराम खाँ किसी तरह सिर पर पाँव रखकर अपने प्राणों को लेकर उमरकोट से इतनी दूर गहन रेगिस्तान में भाग गया, जितनी दूर वह भाग सकता था। उसके मन में अब केवल एक ही लालसा शेष रह गई थी कि फिर कभी स्वप्न में भी उसे युद्ध के दर्शन न हों।

गणगौर

बहरामखाँ की सेना नष्ट हो जाने के बाद सिंध के साहबजादे मियाँ शाहनवाज खाँ के पाँच सौ आदमी, तीन सिन्धी अमीरों के साथ उमरकोट के हाकिम शाहमल लोढ़ा के पास नौकरी मांगने आये। उन्होंने हाथ जोड़कर राठौड़ों से विनती की कि बहरामखाँ की सेना नष्ट हो जाने के बाद अब हमारे पास खाने के लिये कुछ नहीं बचा है इसलिये हमें दुर्ग में नौकरी पर रख लिया जाये। हम वफादारी के साथ राठौड़ों की सेवा करेंगे।

शाहमल राठौड़ों की राजधानी जोधपुर से सैंकड़ों मील दूर इस विशाल रेगिस्तान में अभावों से घिरा हुआ बैठा था। उसे अब तक भली भाँति अनुभव हो चुका था कि सिन्धी अमीर कितने अविश्वसनीय हैं और उन्हें दुर्ग में प्रवेश देना कितना खतरनाक है। इसलिये उसने अमीरों को दुर्ग में नौकरी देने से मना कर दिया। इस पर उन तीनों अमीरों ने शाहमल से याचना की कि हम दुर्ग से बाहर ही पड़े रहकर आपकी सेवा में बने रहेंगे और सिन्ध राज्य को लूटकर आपको आधा हिस्सा देते रहेंगे। हमें दुर्ग के बाहर पड़े रहने दिया जाये। पहले तो शाहमल इसके लिये भी तैयार नहीं हुआ किंतु जब इन तीनों उमरावों ने शाहमल से काफी विनती की तो शाहमल उनके बहकावे में आ गया।

शाहमल ने विचार किया कि जोधपुर से तो वैसे भी कुछ रसद और सहायता आती नहीं, इसलिये यदि इन सिन्धी अमीरों से ही कुछ प्राप्त होता रहा तो दुर्ग का काम ठीक-ठाक चल जायेगा। अतः काफी चिरौरी-विनती के बाद शाहमल ने उन तीनों अमीरों को अपने पाँच सौ सैनिकों के साथ दुर्ग के बाहर शिविर लगाकर रहने की अनुमति दे दी। तीनों सिन्धी अमीरों ने उमरकोट दुर्ग के बाहर रहकर तीन साल निकाल दिये। इस बीच शाहमल के स्थान पर चैनमल सिंघवी उमरकोट का हाकिम नियुक्त हुआ। उसे उमरकोट की परिस्थितियों का पूरा ज्ञान नहीं था इसलिये इस परिवर्तन का लाभ उठाने के उद्देश्य से तालपुरों ने उमरकोट दुर्ग के बाहर स्थित तीनों सिन्धी अमीरों को एक लाख रुपये की जागीर देकर अपनी ओर फोड़ लिया। सिन्धी अमीर भी खानाबदोशों की तरह तम्बुओं में रहते हुए तंग आ चुके थे, उन्होंने तालपुरों का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

तालपुरों ने सिन्धी अमीरों के सहयोग से दुर्ग पर अधिकार करने की योजना बनाई। उन्होंने अमीरों से कहा कि चैत्र शुक्ला तृतीया को जब गणगौर के मेले में चैनमल सिंघवी बाहर निकले तब सिन्धी अमीरों के पाँच सौ सैनिक उमरकोट दुर्ग पर अधिकार कर लें और उसे तालपुरों के हवाले कर दें। उस समय तालपुरों का सरदार चार हजार सैनिकों के साथ दुर्ग से दो कोस की दूरी पर छिपा रहेगा। सिन्धी अमीरों ने इस योजना के अनुसार सारी तैयारी कर ली। ठीक इसी समय उमरकोट दुर्ग के गुप्तचरों को यह सूचना हाथ लग गई और उन्होंने दोनों पक्षों की चिट्ठियाँ दुर्गपति चैनमल सिंघवी के सामने रख दीं। चैनमल को सिन्धी अमीरों की इस गद्दारी पर बड़ा क्रोध आया। उसने तालपुरों से पहले इन सिन्धी अमीरों से ही निबटने की योजना बनाई।

चैनमल ने सिन्धी अमीरों के पास संदेश भेजा कि दुर्ग के भीतर गणगौर का मेला लगा हुआ है। इसमें कई मनोरंजक कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे। तीनों अमीर भी इन कार्यक्रमों को देखने आयें। सिन्धी अमीरों के लिये यह अच्छा अवसर था। इस बहाने से वे दुर्ग के भीतर की सारी स्थिति का भी अवलोकन कर सकते थे, इसलिये उन्होंने राठौड़ों का निमंत्रण स्वीकार कर लिया।

जैसे ही तीनों सिन्धी अमीर दुर्ग के भीतर पहुँचे, चैनमल ने उन्हें पकड़कर रस्सियों से बांध दिया और उन्हें पीट-पीट कर उनसे सारी योजना उगलवा ली। इसके बाद चैनमल ने उन हरामखोरों के सिर काट दिये। इस कार्यवाही के बाद राठौड़ों की सेना दुर्ग से बाहर निकली और उसने दुर्ग के बाहर स्थित सिन्धियों की सेना के डेरे लूट लिये। जब तालपुरों को यह सूचना मिली कि सिन्धियों के डेरे लूटे जा रहे हैं तो वे उमरकोट से दूर भाग गये।

चैनमल ने सिन्धी अमीरों को मारकर सिन्धियों के डेरे लूटने की कार्यवाही से ही संतोष नहीं किया। उसने पाँच सौ सिन्धी सैनिकों को कैद करके महाराजा विजयसिंह के पास जोधपुर भेज दिया। इसके साथ ही चैनमल ने महाराजा से निवेदन करवाया कि दुर्ग में रसद सामग्री समाप्त हो गई है। हमारे सिपाही और चाकर भूखों मर रहे हैं। लम्बे समय से जोधपुर से किसी तरह की सहायता सामग्री नहीं भेजी जा रही है। भविष्य में भेजी जायेगी या नहीं, इसकी भी जानकारी नहीं है फिर भी हम दरबार के विश्वस्त अनुचर बने रहेंगे। तालपुरों की सेना का मीर बहराम पाँच हजार सैनिकों के साथ अपना दाँव लगा रहा है।

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