Thursday, November 21, 2024
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महाराणा जवानसिंह द्वारा राष्ट्रीय राजनीति में प्रभावी भूमिका

16 मार्च 1828 को महाराणा भीमसिंह का निधन हो गया तथा जवानसिंह, मेवाड़ का महाराणा हुआ। महाराणा भीमसिंह के 50 वर्षों के दीर्घ शासनकाल में मेवाड़ राज्य तथा ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बीच जो नये सम्बन्ध स्थापित हुए थे, उन सम्बन्धों को महाराणा जवानसिंह के समय में गति मिली तथा राष्ट्रीय राजनीति में महाराणा की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई।

महाराणा को अजमेर आने का निमंत्रण

ई.1831 में गवर्नर जनरल लॉड विलियम बैंटिक अजमेर आया। उसने पॉलिटिकल एजेण्ट के माध्यम से महाराणा जवानसिंह को सूचित किया कि मैं अजमेर आता हूँ, आप वहाँ मुझसे मुलाकात करें। महाराणा ने एजेंट लॉकेट से कहा- ‘जब पहले भी मुसलमान बादशाहों के समय में मुलाकात की रस्म अदा करने मेरा कोई पूर्वज मेवाड़ से बाहर नहीं गया तब इस समय मेरा अजमेर जाना कैसे ठीक समझा जा सकता है?’ इस पर उसने उत्तर दिया- ‘मुसलमान बादशाह आपके पूर्वजों के दुश्मन थे। वे दरबार में उपस्थित होने वाले राजाओं को अपना नौकर समझते थे और उनके साथ नौकरों जैसा व्यवहार करते थे। इन्हीं कारणों से आपके पूर्वज उनके दरबार में कभी हाजिर नहीं हुए, परन्तु गवर्नर जनरल आपके दोस्त हैं, उनसे आपकी मुलाकात बतौर दोस्त होगी, इसलिये आपका अजमेर चलकर उनसे मुलाकात करना अनुचित नहीं होगा।’

महाराणा की अजमेर यात्रा

इस पर भी कुछ सरदारों ने महाराणा को अजमेर नहीं जाने की सलाह दी किंतु अंग्रेजी सरकार के उपकारों को देखते हुए तथा उनकी सहायता से ही मराठों से मेवाड़ की रक्षा होने के कारण महाराणा ने बैंटिक से मिलने का निर्णय लिया। महाराणा, गर्वनर जनरल से बात करके शाहपुरा के फूलिया जिले से अंग्रेजी पुलिस को हटाना चाहता था तथा अपने पिता महाराणा भीमसिंह का श्राद्ध करने अपने दल-बल सहित अंग्रेजी राज्य में से होकर ‘गया’ जाना चाहता था। इसलिये उसने अजमेर जाकर गवर्नर जनरल से मिलने का निर्णय लिया। 

गवर्नर जनरल से मिलने के लिये जैसलमेर, बीकानेर और सिरोही के शासकों को अजमेर आने का निमंत्रण नहीं दिया गया और जोधपुर का राजा आ नहीं सका।  महाराणा के अजमेर आगमन को अंग्रेजों ने एक महत्त्वपूर्ण घटना माना। एजेंट लॉकेट तथा सात अंग्रेेज अधिकारियों ने अजमेर तथा मेवाड़ की सीमा पर आकर महाराणा का स्वागत किया। दूसरे दिन महाराणा को यह सूचना मिली कि बूंदी का राव रामसिंह ससैन्य अजमेर आयेगा तथा मेवाड़ की सेना के बीच से होकर गुजरेगा।

रामसिंह के दादा ने महाराणा के दादा की हत्या की थी। इसलिये मेवाड़ की फौज के बीच में से बूंदी की फौज का निकलना, मेवाड़ के लिये अपमानजनक माना गया तथा गवर्नर जनरल को सूचित करके उसका मार्ग बदलवाया गया। गवर्नर जनरल ने महाराणा से कहा कि वह बूंदी के राव से मेल कर ले किंतु महाराणा ने इन्कार कर दिया। गवर्नर जनरल ने महाराणा की बात मानकर फूलिया से अंग्रेजी पुलिस हटा दी तथा महाराणा की गया यात्रा के प्रबंध का दायित्व अपने ऊपर ले लिया।

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राजपूताना एजेंसी की स्थापना

इस समय भारत की राजधानी कलकत्ता में थी तथा राजपूताना रियासतें दिल्ली एजेंसी के कार्यक्षेत्र में थीं। विलियम बैंटिक, राजपूताना रियासतों पर प्रभावी नियंत्रण स्थापित करने के लिये दिल्ली से पृथक, राजपूताना के मध्य में ही एक एजेंसी स्थापित करना चाहता था। अजमेर दरबार के माध्यम से विलियम बैंटिक, ने इस योजना की सफलता की संभावनाओं का पता लगाया जो कि महाराणा के सहयोग पर ही निर्भर करती थी। महाराणा से भेंट के बाद गवर्नर जनरल अपनी योजना की सफलता के बारे में आश्वस्त हो गया तथा उसने अजमेर में राजपूताना एजेंसी की स्थापना कर दी।

राजपूताना एजेंसी के लिये पृथक से ए.जी.जी. (एजेण्ट टू द गवर्नर जनरल) की नियुक्ति की गई। वरिष्ठता एवं प्रोटोकॉल की दृष्टि से एजीजी का पद मेवाड़ के महाराणा तथा जयपुर एवं जोधपुर के महाराजाओं के नीचे रखा गया तथा राजपूताना के शेष राजाओं के समकक्ष रखा गया। जहाँ उदयपुर, जयपुर एवं जोधपुर के शासकों के लिये 17 तोपों की सलामी का प्रावधान रखा गया, वहीं ए.जी.जी. के लिये 13 तोपों की सलामी नियत की गई। आगे चलकर इस व्यवस्था में परिवर्तन भी होते रहे।

ई.1901 में राजपूताना एजेंसी का गठन इस प्रकार था- राजपूताना ए.जी.जी. के अधीन 3 रेजीडेंट तथा 5 पोलिटिकल एजेंट बैठते थे। इस प्रकार राजपूताना एजेंसी के अंतर्गत कुल 3 रेजीडेंसी एवं 5 एजेंसी थीं। प्रत्येक रेजीडंेसी/एजेंसी का औसत क्षेत्रफल 16 हजार वर्गमील था। ई.1901 में प्रत्येक रेजीडेंसी/ एजेंसी की औसत जनसंख्या 12.5 लाख थी। विभिन्न रेजिडेंसियों एवं एजेंसियों में रियासतों एवं ठिकानों (चीफशिप) की स्थिति इस प्रकार थी-

1. मेवाड़ रेजीडेंसी: उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर व प्रतापगढ़ रियासतें।

2. वेस्टर्न स्टेट रेजीडेंसी: जोधपुर, जैसलमेर तथा सिरोही रियासतें।

3. जयपुर रेजीडेंसी: जयपुर एवं किशनगढ़ रियासतें तथा लावा ठिकाना।

4. हाड़ौती टोंक एजेंसी: बूंदी, टोंक एवं शाहपुरा रियासत।

5. ईस्टर्न स्टेट एजेंसी: भरतपुर, धौलपुर तथा करौली रियासतें।

6. कोटा-झालावाड़ एजेंसी: कोटा तथा झालावाड़ रियासतें।

7. बीकानेर एजेंसी: बीकानेर रियासत।

8. अलवर ऐजेंसी: अलवर रियासत।

राजपूताना एजेंसी के मध्य में अजमेर-मेरवाड़ा ब्रिटिश शासित क्षेत्र था। राजपूताना का एजेण्ट टू दी गवर्नर जनरल इसका चीफ कमिश्नर होता था।

महाराणा की तीर्थयात्रा

18 अगस्त 1833 को महाराणा अपने पिता का श्राद्ध करने के लिये 10 हजार सैनिकों के साथ ‘गया’ के लिये रवाना हुआ। वह वृंदावन, मथुरा तथा प्रयाग होता हुआ अयोध्या पहुंचा जहाँ उसका बड़ा सम्मान हुआ। लखनऊ के नवाब नासिरुद्दीन हैदर की ओर से महाराणा की बड़ी खातिर की गई। अयोध्या से कूच करके महाराणा बनारस होता हुआ गया पहुंचा। गया में उसने अपने पिता का विधिपूर्वक श्राद्ध करके अपने तीर्थ गुरु को 10 हजार रुपये तथा सोने-चांदी का बहुत सा सामान दिया। गया से लौटते समय उसने रीवां आकर महाराज जयसिंहदेव के छोटे कुंवर लक्ष्मणसिंह की पुत्री से विवाह किया। वहाँ से चलकर वह भैंसरोड़, बेगूं आदि स्थानों में ठहरता हुआ 18 जून 1834 को उदयपुर लौट आया। इस यात्रा में अंग्रेेज सरकार की ओर से उसकी अच्छी खातिरदारी की गई।  ई.1836 में नीमच में मेवाड़ एजेंसी स्थापित की गई।

नेपाल राज्य से सम्बन्धों की पुनर्स्थापना

महाराणा जवानसिंह के शासन काल में नेपाल के महाराजा राजेन्द्रविक्रमशाह ने अपने पूर्वजों की प्राचीन राजधानी के रीतिरिवाज आदि देखने के लिये अपने यहाँ से कुछ प्रतिष्ठित पुरुषों और स्त्रियों को उदयपुर भेजा। तब से मेवाड़ के साथ नेपाल के सम्बन्ध फिर से आरम्भ हुए। 

महाराणा सरदारसिंह की तीर्थयात्रा

30 अगस्त 1838 को महाराणा जवानसिंह की मृत्यु हो गई। उसके निःसंतान होने के कारण बागोर के सामंत शिवदानसिंह के पुत्र सरदारसिंह को मेवाड़ की गद्दी पर बैठाया गया। उसने 1 फरवरी 1840 को स्वर्गीय महाराणा जवानसिंह का श्राद्ध करने के लिये गया के लिये प्रस्थान किया। वह पुष्कर, राजगढ़, भरतपुर, मथुरा, प्रयाग, काशी होता हुआ गया पहुंचा तथा वहाँ महाराणा जवानसिंह का श्राद्ध करके बीकानेर आया तथा महाराजा रत्नसिंह की पुत्री के साथ विवाह किया। महाराणा सरदारसिंह, बीकानेर से रवाना होकर अजमेर होता हुआ 16 नवम्बर 1840 को उदयपुर लौट आया।

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