Thursday, November 21, 2024
spot_img

रहस्यमय शासक था बप्पा रावल!

निश्चित रूप से बापा एक प्रभावशाली एवं रहस्यमय शासक था क्योंकि जितनी अधिक किंवदन्तियां एवं दन्तकथाएं उसके बारे में मिलती हैं, उतनी किसी अन्य शासक के बारे में नहीं। टॉड ने लिखा है- ‘बापा मृत्यु के समय 100 वर्ष का था। देलवाड़ा के राजा के पास सुरक्षित एक प्राचीन इतिहास ग्रंथ के अनुसार मेरु पर्वत के नीचे बापा ने सन्यास ग्रहण किया था। उसने इस्फहान, काश्मीर, ईराक, ईरान, तूरान, काफिरिस्तान आदि सब देशों को जीत लिया था और इनके परास्त राजाओं की पुत्रियों से विवाह किया था जिनसे उसके 130 पुत्र हुए थे।’

 देलवाड़ा के राजा की प्राचीन इतिहास की पुस्तक के हवाले से कहा गया कर्नल टॉड का उक्त कथन भले ही इतिहास की कसौटी पर खरा न उतरे किंतु इतना संकेत अवश्य करता है कि बापा ने इतनी विशद कीर्ति अवश्य अर्जित की थी जिसके कारण वह भाटों एवं चारणों की विविध कथाओं का नायक बन गया था।

चारणों की कथाओं में मान मोरी को, बापा का नाना कहा गया है। इन कथाओं में, मान मोरी के राज्य में अन्य सामंतों की अपेक्षा बापा को सर्वाधिक सम्मान प्राप्त करने वाला तथा मान मोरी पर चढ़कर आये मुस्लिम आक्रांता पर विजय प्राप्त कर, मान के राज्य की रक्षा करने वाला कहा गया है। कर्नल टॉड ने बापा के सम्बन्ध में अनेक आख्यानों को कलमबद्ध किया है। चारणों की कथाओं में बापा को सौ राजाओं के वंश का संस्थापक भी कहा गया है। उसके बारे में कहा जाता है कि वह एक ही झटके में दो भैंसों के सिर काट देता था।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

उसके पास बारह लाख बहत्तर हजार सेना थी, वह चार बकरे खा जाता था, पैंतीस हाथ की धोती पहनता था, सोलह हाथ का दुपट्टा रखता था, बत्तीस मन की तलवार रखता था, उसने वृद्धावस्था में खुरासान को जीता था।  खुरासान में बापा ने अनेक स्त्रियों से विवाह किया जिनसे उसे अनेक पुत्र हुए। जब बापा की मृत्यु हुई तो उसके हिन्दू पुत्रों एवं मुसलमान पुत्रों में बापा के अंतिम संस्कार को लेकर झगड़ा हुआ। अंत में उसके पुत्रों को उसके शव की जगह कमल पुष्प ही मिले। 

इन समस्त दंतकथाओं से अनुमान लगाया जाना कठिन नहीं है कि बापा निश्चित रूप से उत्तर भारत की एक प्रमुख शक्ति बन गया था। इसी कारण वह दैवीय आख्यानों की तरह दंतकथाओं का नायक बन गया। बापा का देहांत नागदा में हुआ। उसका स्मारक एकलिंगजी से एक मील की दूरी पर स्थित है जिसे बापा रावल कहते हैं।

भारत का चक्रवर्ती सम्राट

वीर विनोद के लेखक श्यामलदास ने बापा का मूल्यांकन करते हुए लिखा है- ‘इसमें संदेह नहीं कि महेन्द्र (बापा) हिन्दुस्तान का बड़ा प्रतापी, पराक्रमी और तेजस्वी महाराजाधिराज हुआ और उसने अपने पूर्वजों के प्रताप, बड़प्पन और पराक्रम को दुबारा प्रकाशित किया, जो थोड़े समय तक नष्ट हो गया था। अगर यह महाराजा सारे हिन्दुस्तान का एक ही छत्रधारी न हुआ हो, तो भी हिन्दुस्तान के दूसरे राजाओं में अग्रगण्य और बड़ा समझा गया था।

इस राजा का बड़ा राज्य होने के बहुत से प्रमाण मिल सकते हैं और यदि मशहूर किस्से-कहानियों को सुनिए तो बापा और उसके पोते आदि को हिन्दुस्तान का चक्रवर्ती कह सकते हैं।  ओझा के अनुसार बापा स्वतंत्र, प्रतापी और एक विशाल राज्य का स्वामी था।  डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने लिखा है- ‘बापा निःसंदेह राजस्थान के महत्तम व्यक्तियों में से है…….. उसने गुहादित्य द्वारा आरम्भ किये गये कार्य को अपनी विजय-नीति से सम्पूर्ण किया।

बापा के प्रतापी वंशज

बापा रावल के बाद मत्तट और मत्तट के बाद भर्तृभट्ट चित्तौड़ के राजा हुए। आहाड़ से प्राप्त एक शिलालेख में भर्तृभट्ट (द्वितीय) को तीनों लोकों का तिलक तथा राष्ट्रकूट वंश की रानी महालक्ष्मी से विवाह करने वाला बताया गया है।  ई.942 के प्रतापगढ़ अभिलेख में उसे महाराजाधिराज की उपाधि से अलंकृत बताया गया है।

भर्तृभट्ट के बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र सिंह, मेवाड़ का तथा कनिष्ठ पुत्र ईशानभट, चाटसू के आसपास के बड़े प्रदेश का स्वामी रहा।  उदयपुर राज्य के जहाजपुर जिले के धवगर्ता (धौड़गांव) से एक शिलालेख मिला है जिसमें कहा गया है कि धौड़ गांव पर गुहिल धनिक का अधिकार था। यह धनिक, ईशानभट्ट का वंशज था।

– डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source