19 दिसम्बर 1788 को महादजी सिन्धिया के सरदारों ने महाराजा विजयसिंह के मुँहबोले भतीजे गुलाम कादिर रूहेला को कैद कर लिया। यह समाचार मिलने पर मरुधरानाथ ने सिन्ध के मियाँ शाहनवाज खाँ के माध्यम से काबुल के बादशाह तैमूरशाह के पास अपना वकील भेजकर कहलवाया कि यदि आप मराठों से लड़ने के लिये उत्तर भारत की ओर आयें तो आपको भी मराठों से वैसी ही अपार सम्पत्ति प्राप्त हो सकती है जैसी कि नादिरशाह तथा अहमदशाह अब्दाली को मिली थी। हम भी इस कार्य में आपकी सहायता करेंगे। मरुधरानाथ के इस प्रस्ताव को सुनकर तैमूरशाह के मुँह में पानी आ गया। उसने मरुधरानाथ के वकील को जवाब दिया कि यदि जयपुर और जोधपुर के राजा मुझे पक्का आश्वासन दें कि वे स्वयं भी अपने सेनाएं लेकर युद्ध के मैदान में लड़ने आयेंगे, तभी मैं मराठों का विनाश करने तथा दिल्ली की व्यवस्था ठीक करने के लिये आऊंगा, अन्यथा नहीं।
इस पर मरुधरपति ने तैमूरशाह को लिखा कि केवल मुसलमान मराठों के दुश्मन हैं, ऐसी बात नहीं है, हमारे भी हैं। इसलिये जयपुर और जोधपुर दोनों आपके साथ रहेंगे। आप जल्दी से जल्दी इस प्रदेश में आ जायें। इस समय मराठे कमजोर हैं तथा हमने भी उन्हें कसकर पीटा है।
महाराजा विजयसिंह का पक्का निमंत्रण पाकर तैमूरशाह काबुल से चलकर पंजाब को पार करता हुआ जोधपुर से दो सौ पचास कोस की दूरी पर दाउद पौत्र बरुलखाँ के प्रदेश में प्रविष्ठ हुआ तथा बहावलपुर से अठारह कोस की दूरी पर दिलावल की सराय में आ ठहरा। यहाँ से उसे भटनेर होते हुए दिल्ली की ओर बढ़ना था किंतु वह सिंध की ओर मुड़ गया और तालपुरों पर आक्रमण करके भारी विनाश मचाने लगा। वह तालपुरों को मारकर मियाँ शाहनवाज खाँ को फिर से सिंध की सत्ता दिलवाना चाहता था। तालपुरों ने तीस हजार सैनिक एकत्रित करके तैमूरशाह का सामना किया। जब मरुधरानाथ ने देखा कि बेवकूफ तैमूरशाह तालपुरों से उलझ गया तो मरुधरानाथ ने अपने चालीस हजार सैनिक तालपुरों को घेरने के लिये सिंध की ओर रवाना किये ताकि तैमेरशाह को वहां से निकालकर दिल्ली की ओर अग्रसर किया जा सके।
जब कृष्णाजी जगन्नाथ को मरुधरानाथ का निश्चय ज्ञात हुआ तो उसने मराठा सूबेदार तुकोजीराव होलकर को सूचित किया कि महाराजा विजयसिंह तैमूरशाह को बुलाकर मराठों का नाश करवाने के लिये कटिबद्ध हो गया है।
इस समय गिलचा के डेरे जयपुर से अठारह कोस की दूरी पर थे। महाराजा ने गिलचा को संदेश भिजवाया कि हमारे निमंत्रण पर तैमूरशाह मराठों पर चढ़ाई करने आ रहा है। जयपुर नरेश और आप एक मत होकर चलें। मरुधरपति ने इस्माईल बेग, नजफकुली खाँ, भरतपुर के जाट महाराजा रणजीतसिंह और गुलाम कादिर से भी सम्पर्क करके उन्हें मराठों के विरुद्ध युद्ध करने के लिये आमंत्रित किया तथा इन सब शक्तियों को एकजुट करके महादजी सिन्धिया को अच्छी तरह पाठ पढ़ाने का निश्चय किया। मरुधरानाथ न केवल मराठों में कसकर मार लगाना चाहता था अपितु वह अजमेर को सदैव के लिये अपने अधिकार में रखकर दिल्ली में कोई पक्की व्यवस्था करना चाहता था। ऐसी व्यवस्था जो राठौड़ों के नियंत्रण में रहे।