Thursday, July 25, 2024
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62. नये मित्र

महादजी सिन्धिया द्वारा मरुधरानाथ के विरुद्ध शिकायत किये जाने पर नाना फड़नवीस ने मराठा सूबेदार तुकोजीराव होलकर तथा अली बहादुर को मेवाड़ भेजकर वहाँ से जोधपुर रियासत की सैनिक चौकियाँ हटवा दीं तथा अजमेर नगर को अपने अधिकार में ले लिया। इस पर मरुधरानाथ ने शिवचंद सिंघवी, बिशनसिंह पुरोहित तथा शिवदास चौहान के माध्यम से तुकोजीराव होलकर तथा बाजीराव पेशवा की मुस्लिम पत्नी से उत्पन्न पुत्र शमशेर बहादुर के बेटे अली बहादुर से मित्रता का प्रस्ताव भिजवाया और उसके माध्यम से अजमेर पुनः हस्तगत करने का प्रयास किया किंतु तुकोजीराव ने यह प्रयास सफल नहीं होने दिया।

तुकोजीराव होलकर का ऐसा कड़ा रुख देखकर मरुधरानाथ ने पुराने मित्रों के स्थान पर नये मित्र बनाने की ओर ध्यान केन्द्रित किया। उसने खीचीवाड़े के राणा बलवंतसिंह के पुत्र जयसिंह को जोधपुर बुलवाया। महादजी सिन्धिया ने बलवंतसिंह की पराजय के बाद उसके परिवार को भेलसा में बंदी बना रखा था। बलवंतसिंह का पुत्र जयसिंह अब तक महादजी के हाथ नहीं आ पाया था। महाराजा विजयसिंह ने जयसिंह को ढुंढवाया और उसे अजमेर के पास रामसर परगने की पच्चीस हजार की आय वाली जागीर और अमजेर में रहने के लिये एक हवेली प्रदान की। उसे खर्च के लिये पाँच हजार रुपये, एक हथिनी और चार घोड़े भी दिये। विजयसिंह के सलाहकार गोवर्धन खीची ने भी उसे विपुल धनराशि, आठ घोड़े, सिरपेंच और सोने के कड़े भेंट किये ताकि जयसिंह मराठों के विरुद्ध अजमेर में ताल ठोकता रहे।

जयसिंह से दोस्ती गांठने के बाद मरुधरानाथ ने मलिक मोहम्मद खाँ को जोधपुर बुलाया और उसे मोतियों की माला, पन्ने-मोती जड़ी कंठी, कुर्ता, जड़ाऊ सरपंेच, पौंचा, जरी की पोशाक, पाँच घोड़े तथा हथिनी उपहार में दी। दस हजार रुपये नगद भी दिये तथा अजमेर के निकट एक लाख की बड़ी जागीर उसके नाम लिख दी। उसे यह आश्वासन भी दिया कि यदि सेना अधिक रखेगा तो नगद राशि और भी अधिक दी जायेगी। इन दो जागीरदारांे को अजमेर परगने में स्थापित करके के बाद मरुधरानाथ की दृष्टि मिर्जा नजफकुली खाँ की ओर गई।

नजफकुली ईरान का रहने वाला था तथा मुगल बादशाह के वकील ए मुत्तलक महादजी सिंधिया के चार मुख्य सैनिक सहायकों में से एक था। उसे अफीम, मदिरा और औरतों का बड़ा शौक था। उसे अपनी तरफ करने के लिये मरुधरानाथ ने अपने मुंशी मोहनसिंह के साथ पाँच सौ रुपये, एक घोड़ा तथा सिरोपाव भिजवाये तथा उससे कहलवाया कि महादजी सिन्धिया आपके और मुहम्मद बेग हमदानी के भतीजे ईस्माइल बेग के बीच वैमनस्य पैदा कर कभी भी आक्रमण कर सकता है। इसलिये सावधान रहें। हमने मराठों को उत्तर भारत की भूमियांे से बाहर निकालने के काम में सहायता देने के लिये काबुल के बादशाह तैमूरशाह को आमंत्रित किया है। आप भी तैमूरशाह के साथ शामिल हो जायें ताकि इन दुष्ट मराठों से निजात मिल सके।

नजफकुली अति महत्वाकांक्षी व्यक्ति था। वह मन ही मन महादजी से वैर पालता था और उसके स्थान पर स्वयं मुगलों का वकील ए मुत्तलक बनने के सपने देखता था। उसने सौभाग्य से हाथ आये इस अवसर में छिपी संभावनाओं को पहचाना और मरुधरानाथ का अनुरोध स्वीकार करके तैमूरशाह से सहयोग करने के लिये तैयार हो गया।

इस पर महाराजा विजयसिंह ने अपने वकील मनरूप भण्डारी को नजफकुली के पास भेजकर कहलवाया कि इन दिनों जयपुर महाराजा प्रतापसिंह भी दिल्ली में हैं, वे भी मराठों को उत्तर भारत से बाहर निकालने के काम में हमारी सहायता कर रहे हैं इसलिये आप उनसे भेंट कर लें। मरुधरानाथ का संदेश पाकर नजफकुली ने महाराजा प्रतापसिंह को अपने डेरे पर मिलने के लिये बुलवाया। अकबर के समय से मुगल दरबार में कच्छवाहा राजाओं की जो हैसियत और रुतबा चला आ रहा था, उसके समक्ष नजफकुली दो कौड़ी का आदमी ठहरता था। इसलिये महाराजा प्रतापसिंह ने स्वयं उसके डेरे पर न जाकर, उसे ही अपनी हवेली पर आने का निमंत्रण भेजा।

नजफकुली यह सोच रहा था कि वह मराठों के विरुद्ध बनने जा रहे मोर्चे में शामिल होकर राजपूतों पर अहसान कर रहा है इसलिये उसे यह स्वीकार न हुआ कि वह महाराजा के डेरे पर जाये। उसने महाराजा से कहलवाया कि वही मुझसे मेरी हवेली पर आकर मिले। इस प्रकार नजफकुली तथा जयपुर नरेश के बीच अवरोध उत्पन्न हो गया। जब नजफकुली महाराजा के आदेश की अवहेलना करके महाराजा से मिलने उसकी हवेली पर नहीं आया तब जयपुर के दीवान दौलतराम हल्दिया ने पाँच हजार सवार लेकर नजफकुली पर चढ़ाई कर दी। महाराजा विजयसिंह का बख्शी भीमराज सिंघवी उन दिनों दिल्ली में ही था, उसने मध्यस्थता करके किसी तरह इस संकट को दूर किया। इसके बाद नजफकुली महाराजा की हवेली पर उपस्थित हो गया।

महादजी सिन्धिया ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी से बहुत बड़ी संख्या में नई किस्म की हलकी तोपें खरीदी थीं जिन्हें अंग्रेजी तोप कहते थे। महादजी ने इनमें से कुछ अंग्रेजी तोपें नजफकुली को प्रदान कीं। नजफकुली इन अंग्रेजी तोपों को लेकर जयपुर वालों के पास आ गया। हल्दिया इन तोपों को लेकर जयपुर के लिये रवाना हो गया। जब अंग्रेजों को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने हल्दिया का मार्ग रोका। हल्दिया के साथ इस समय इतनी सेना नहीं थी जो अंग्रेजों का सामना कर पाता इसलिये वह सरलता से परास्त हो गया। अंग्रेजों ने न कवेल अपनी तोपें वापस छीन लीं अपितु नजफकुली खां को भी अपने साथ ले उड़े।

जब मरुधरानाथ को जोधपुर में ये समाचार ज्ञात हुए तो उसने अपने आदमियों के साथ भारी रकम नजफकुली खाँ के लिये भिजवाई और उसे जोधपुर चले आने का निमंत्रण भेजा। मरुधरानाथ किसी भी कीमत पर नजफकुली को शत्रु के पक्ष में नहीं जाने देना चाहता था। जब नजफकुली जोधपुर आया तो मरुधरानाथ ने उसका विविध प्रकार से सम्मान किया और उस पर भारी भरोसा जताया। कुछ दिनों तक महाराजा का मेहमान रहने के बाद नजफकुली भारी इनाम इकरार और खर्चा पानी लेकर, मरुधरपति द्वारा प्रदत्त एक नई योजना के साथ दिल्ली को लौट गया।

जब तक नजफकुली रेवाड़ी पहुँचा, अली गौहर दिल्ली के तख्त पर बैठ चुका था। मरुधरानाथ की योजनानुसार नजफकुली ने अलीगौहर के कानूड़, रेवाड़ी तथा कोटपूतली खालसा परगनों पर अधिकार कर लिया। इस पर बादशाह ने नजफकुली पर आक्रमण करने के लिये दो बार अपनी सेना भेजी किंतु वह दोनों बार हारकर लौट गई। इस पर बादशाह ने महाराजा विजयसिंह के वकील लालजी मेहता से सम्पर्क किया। महाराजा के आदेश से मेहता ने बादशाह तथा नजफकुली के मध्य समझौता करवा दिया जिसके अनुसार खालसे के परगने नजफकुली के पास ही रहने दिये गये। इस समझौते से नजफकुली खाँ को पूरा विश्वास हो गया कि मरुधरानाथ के कहे अनुसार चलने में भारी भलाई है।

इस प्रकार नजफकुली का विश्वास जीतने के बाद मरुधरपति ने अपने वकील शोभाचंद भण्डारी को पाँच घोड़े, सोना, वस्त्र और बहुत से उपहार देकर मिर्जा इस्माईल बेग के पास भेजा। तुंगा युद्ध में मिर्जा ने मरुधरपति की बड़ी सहायता की थी किंतु उसके बाद महादजी ने उसे अपनी ओर फोड़ लिया था। मरुधरपति ने अपने आदमियों के माध्यम से बेग से कहलवाया कि आपका हमारे साथ पुराना स्नेह है। इसलिये आप मराठों की ओर न जाकर हमारे पक्ष में मिलें। मिर्जा अनुभव कर रहा था कि जिस प्रकार मरुधरानाथ की बात मानकर नजफकुली खां दिल्ली के उत्तर में स्थित बड़ी जागीरों का स्वामी हो गया था, उसी प्रकार बेग की भी किस्मत खुल सकती है। इसलिये उसने शोभाचंद भण्डारी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इस तरह एक बार फिर से महाराजा विजयसिंह तथा इस्माईल बेग के बीच समझौता हो गया और महाराजा ने उत्तरी भारत में कई नये मित्र तैयार कर लिये।

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