Sunday, November 24, 2024
spot_img

103. महाराजा का मौन

मरुधरपति और भी वृद्ध और अशक्त हो गया। उससे राज-काज बिलकुल भी नहीं होता था। कई बार वह सोचता था कि शासन के पूरे अधिकार अपने छोटे पौत्र सूरसिंह को दे दे किंतु कुँवर जालिमसिंह तथा शेरसिंह भी राज्य पर अपना दावा जता रहे थे और भीमसिंह बागी होकर पोकरण में जा बैठा था। पिछले कई सालों में हुई घटनाओं से मरुधरानाथ को अनुभव हो गया था कि राज्यगद्दी के लिये कुँवरों के बीच खूनी संघर्ष होगा। मरुधरानाथ के चार पुत्र उसकी आँखों के सामने मृत्यु को प्राप्त हो गये थे। वह नहीं चाहता था कि उसके शेष पुत्र और पौत्र एक दूसरे का रक्त बहाकर कुल का नाश करें। यही सोचकर वह चुप रह जाता था।

बहुत से लोग असंतुष्ट होकर महाराजा के प्राणों के शत्रु हो गये थे। यहाँ तक कि चचेरे भाई पृथ्वीसिंह ने तो मरुधरानाथ पर तलवार से ताबड़तोड़ नौ वार करके उसकी हत्या करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। गुलाब के जाने के बाद मरुधरानाथ वैसे भी टूट गया था। इसलिये अब वह किसी से बात नहीं करता था। उसे दिन रात भय सताने लगा था कि उसे भी किसी दिन मारा जा सकता है। इस चिंता में घुलने के कारण उसकी देह रुग्ण हो चली। वात का प्रकोप इतना बढ़ गया कि उठना, बैठना, बोलना और चलना भी लगभग बंद हो चला। चार आदमी सहारा देकर उठाते तो वह लोगों से अभिवादन स्वीकार करने अपने कक्ष से बाहर निकलता। ढोलिये पर पड़ा-पड़ा ही सुधि बिसरा देता तो कई-कई दिन तक फिर सुधि नहीं लौटती। सबको लगने लगा कि अब वह धरा पर कुछ ही दिनों का अतिथि है।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source