बाबर ने अपनी जीवनी तुजुके बाबरी में लिखा है कि सांगा ने पहले भी मेरे पास दूत भेजकर मुझे भारत में बुलाया और कहलाया था कि आप दिल्ली तक का इलाका ले लें और मैं (सांगा) आगरे तक का ले लूं। इस विवरण से लगता है कि सांगा ने बाबर को इब्राहीम लोदी के विरुद्ध भारत आने का निमंत्रण भेजा था किंतु किसी अन्य प्रमाण से इसकी पुष्टि नहीं होती।
अतः इस बात पर विश्वास करना कठिन है कि सांगा ने बाबर को आमंत्रित किया। सांगा तो स्वयं ही इब्राहीम लोदी के इलाके छीनता जा रहा था। ऐसी स्थिति में सांगा, बाबर को आमंत्रित करके अपने लिये नया शत्रु क्यों खड़ा करता? बाबर ने अपनी आत्मकथा में इस तरह की कई मिथ्या बातें लिखी हैं।
वास्तविकता तो यह है कि बाबर ने सांगा से सहायता मांगी थी। बादशाह जब काबुल में राज्य करता था, तब उसने विचार किया कि भारतवर्ष पर लोदी बादशाह राज्य करते हैं, उसको नष्ट करके दिल्ली में अपना राज्य स्थापित करना चाहिये किंतु अज्ञात देश में जाने से पूर्व यहां के प्राचीन राज्य से मित्रता करना लाभ दायक होगा, जिसकी सहायता से वह अपने उद्देश्य में सफल हो सकता है।
तदनुसार उसने इब्राहीम लोदी एवं राणा सांगा के मध्य वैमनस्य का समाचार सुनने के पश्चात् चित्तौड़ के महाराणा सांगा के पास अपना एक दूत भेजा। दूत ने महाराणा से निवेदन किया कि बादशाह बाबर इब्राहीम लोदी से युद्ध का अभिलाषी है सो आपको संधि पत्र लिख भेजा है। जिसके उत्तर में आपको भी संधि की स्वीकृति प्रेषित कर देनी चाहिये। उस पत्र में बाबर ने यह लिखा था कि इस ओर से तो मैं दिल्ली पर आक्रमण करूंगा तथा उस ओर से आगरा पर आप आक्रमण करें, तदनुसार लोदी बादशाह व्यथित होकर अधीनता स्वीकार कर लेगा अथवा पलायन कर जायेगा। इस युद्ध के पश्चात् दिल्ली तक का राज्य मेरे अधिकार में रहेगा तथा आगरा तक आपका राज्य स्थापित हो जायेगा।
रायसेन के राजा सलहदी की सलाह से राणा ने संधि पत्र पर स्वीकृति प्रदान कर अपनी ओर से एक पत्र उस दूत के हस्ते बाबर को प्रेषित किया। कालान्तर में बाबर ने काबुल से प्रस्थान कर पानीपत में इब्राहीम लोदी से युद्ध किया तथा दिल्ली को विजय कर लिया किंतु राणा सांगा तटस्थ रहा तथा बाबर की सहायता को उद्यत न हुआ। सांगा द्वारा बाबर की सहायता का विचार बदलने का प्रमुख कारण मेवाड़ के सामन्तों द्वारा एक विदेशी आक्रांता की सहायता का विरोध था, उनकी मान्यता थी कि इब्राहीम लोदी की भांति बाबर भी एक विदेशी शत्रु है जिसकी सहायता करना मेवाड़ के हित में नहीं था।
सामंतों द्वारा यह कहकर विरोध किया गया कि सांप को दूध पिलाने से क्या लाभ? सामंतों द्वारा बाबर की सहायता का विरोध तथा सांगा द्वारा विचार बदलने के निर्णय से रायसेन का शासक सिलहदी (सलहदी) अपने उद्देश्य की सफलता से उद्विग्न हो उठा और अपने सैनिकों सहित बाबर से जा मिला।
अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि इब्राहीम लोदी पर आक्रमण करने से पहले, बाबर ने अपने दूत के माध्यम से महाराणा सांगा से सहायता मांगी थी किंतु महाराणा इस युद्ध से तटस्थ रहा।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता