सलूम्बर से कुछ दूर स्थित एक पहाड़ी पर बीसवीं सदी में निर्मित एक छोटा दुर्ग दर्शनीय है। इसे सलूम्बर दुर्ग कहते हैं। इस दुर्ग को अंग्रेज सरकार ने सेना रखने के उद्देश्य से बनाया था ताकि इस क्षेत्र में पनप रहे डाकुओं पर लगाम लगाई जा सके।
अंग्रेजों ने राजपूताना के देशी राज्यों से सहायता एवं सुरक्षा के समझौते किये थे, इन समझौतों को अधीनस्थ सहायक संधियां भी कहा जाता था। उस समय इस क्षेत्र में डाकुओं एवं लुटेरों की गतिविधयों से जनता ही नहीं, जागीरदार और राजा तक आतंकित रहते थे। इसलिए अंग्रेजों ने उस काल में लगभग सभी रियासतों में देशी रियासतों के खर्च पर सेनाओं का निर्माण किया जिनका नियंत्रण अंग्रेज अधिकारियों के पास रहता था। सलूम्बर दुर्ग में भी इसी प्रकार की सेना रखी जाती थी। इसी प्रकार की सेनाओं के बल पर अंग्रेजों ने देशी रियासतों की गतिविधियों पर अंकुश लगाया था।
अंग्रेजों द्वारा निर्मित इस दुर्ग की चार-दीवारी मजबूत एवं पर्याप्त ऊंची है। इसके भीतर साधारण ढंग के आवासीय कमरे एवं एक मंदिर बना हुआ है। इसकी बनावट परम्परागत राजपूती दुर्ग जैसी नहीं है।
यह दुर्ग अपेक्षाकृत काफी अच्छी स्थिति में है। यह दुर्ग चारों ओर खाई से घिरा हुआ था, इसलिए इसे पारिघ दुर्ग की श्रेणी में रखा जाता है। पहाड़ी पर स्थित होने के कारण यह गिरि दुर्ग की श्रेणी में भी रखा जा सकता है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता