Wednesday, June 4, 2025
spot_img

मारवाड़ की उत्तराधिकार राजनीति में पासवान गुलाबराय

अठारहवीं शताब्दी ईस्वी में मारवाड़ की उत्तराधिकार राजनीति में पासवान गुलाबराय की भूमिका कुछ समय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई थी किंतु वह न तो अपने पुत्र तेजकरण को और न अपनी पसंद के किसी भी राजकुमार को मारवाड़ का उत्तराधिकारी नहीं बनवा सकी।

उत्तर मध्यकालीन राजपूताना के हिन्दू राजाओं के रनिवास में मुगल बादशाहों की तरह अनेक  रानियाँ एवं दासियां रहने लगी थीं। इन दासियों में खवास, पड़दायत एवं पासवान आदि भी होती थीं जो राजाओं, राजकुमारों एवं सामंतों की उपपत्नियों की तरह रहती थीं। डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने उस काल के हिन्दू राजाओं की रानियों एवं उपपत्नियों की तरह रहने वाली औरतों की औसत संख्या कम से कम 9 बताई है।[1] 

इन औरतों के अतिरिक्त बड़ी संख्या में गायणियाँ, बडारनें, पातुरियाँ आदि भी रहती थीं। उस काल में होने वाले युद्धों के कारण योद्धाओं के जीवन का कोई ठिकाना नहीं होता था। इस कारण योद्धा अपने भोग विलास के लिए अनेक पत्नियों का होना आवश्यक समझते थे। [2]

Paswan-Gulabrai - www.rajasthanhistory.com
To Purchase this book, Please click the Image.

उस काल में ब्याहता रानियों एवं अन्य स्त्रियों की दशा भी उत्तम नहीं थी, अतः उप-पत्नियां किसी भी हालत में सामाजिक सम्मान का दावा नहीं कर सकती थीं। फिर भी कुछ स्त्रियां अपनी कुशाग्र बुद्धि एवं गुणों के बल पर राजा के निजी सम्पर्क में आकर उसकी विशेष कृपा पात्र बन जाती थीं। वे जनानी-डयौढ़ी के उच्च पदों को प्राप्त करके कई बार महारानी के अधिकारों का प्रयोग करने लगती थीं। अपवाद रूप में ही सही, कुछ ऐसी स्त्रियों के उदाहरण भी आते हैं जिनकी प्रभावशाली स्थिति ने उन्हें असीमित अधिकार दिए जिनके कारण उन स्त्रियों ने तत्कालीन राजनीतिक घटनाओं को प्रभावित किया। [3] मारवाड़ राज्य के महाराजा विजयसिंह (ईस्वी 1753-1793) की पासवान गुलाबराय महत्वाकांक्षिणी स्त्री थी। मारवाड़ की ख्यातों, हकीकत एवं अर्जी बहियों से ज्ञात होता है कि इस स्त्री ने अपनी प्रतिभा के बल पर विजयसिंह का विश्वास जीत लिया। गायण गुलाबराय सम्वत् 1831 में पासवान गुलाबराय बन गयी। [4]

गुलाबराय की योग्यताएं उसे जनानी-ड्यौढ़ी एवं महाराजा विजयसिंह के व्यक्तिगत जीवन तक ही सीमित नहीं रख पायीं। मारवाड़ के शासन एवं राज्य की धार्मिक गतिविधियों में दिन-प्रतिदित उसका प्रभाव बढ़ने लगा। मारवाड़ की मध्यकालीन ख्यातों एवं आधुनिक इतिहासकारों ने मारवाड़ राज्य पर गुलाबराय के प्रभाव को स्वीकार किया है।[5]

गुलाबराय का प्रभाव राज्य में किस प्रकार बढ़ता चला गया, इसके सम्बन्ध में सूचनाएं नहीं मिलतीं। जैसे-जैसे गुलाबराय का प्रभाव बढ़ता चला गया, वैसे-वैसे राज्य के सामंत वर्ग में उसके विरुद्ध विरोध भी बढ़ता चला गया। गुलाबराय के इस पक्ष पर अधिक जोर देने से वह मारवाड के इतिहास की सहानुभूति का पात्र नहीं बन सकती अपितु निन्दा एवं आलोचनाओं की दृष्टि से वह चर्चा का विषय बन सकती है। [6]

कर्नल जेम्स टॉड ने लिखा है कि पासवान गुलाबराय महाराजा विजयसिंह को जूतियों से पीटती थी।[7] हालांकि इस कथन पर किसी भी प्रकार से विश्वास नहीं किया जा सकता।

मारवाड़ के इतिहासकारों ने गुलाब की महत्वाकांक्षाओं को इस तरह से नहीं लिखा कि वे किस तरह से क्रियान्वित की गयीं। फिर भी मारवाड़ की हकीकत बहियां एवं अर्जी बहियां पासवान गुलाबराय की महत्वकांक्षाओं के बारे में जानने के लिए अच्छी सहायक सिद्ध हो सकती है।[8]

गुलाबराय ने न केवल अपने समय की राजनीति का ताना-बाना ही बुना अपितु आने वाले इतिहास की योजनाएं भी बना डालीं। इसी विचार से उसने मारवाड़ की उत्तराधिकार राजनीति में रुचि ली। हालांकि इसे पूरे तौर पर प्रमाणित तो नहीं किया जा सकता किंतु प्राप्त विवरण बताते हैं कि इस प्रश्न पर वह अपने परिवार को लेकर भी रुचि रखती थी।

पासवान गुलाबराय के पुत्र का नाम तेजकरण था। महाराज की कृपापात्र होने के कारण पासवान के पुत्र का विवाह जयपुर के राजा माधोसिंह के खवास की पुत्री के साथ बड़ी धूमधाम से हुआ था। इस विवाह के समय तेजकरण का नाम बदलकर तेजसिंह लिया जाने लगा। [9] 

इसके बाद के विवरणों से ज्ञात होता है कि तेजसिंह के साथ राजकुमारों जैसा बर्ताव किया जा रहा है। महाराजा स्वयं उसका विशेष ध्यान रखते हैं। महाराजा की दैनिक चर्या के विवरणों में तेजसिंह का नाम बार-बार प्रकट होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि समय की गति के साथ महाराजा एवं तेजसिंह के बीच सामीप्य बढ़ता जा रहा है। [10]

इसके पीछे तेजसिंह का चरित्र उत्तरदायी है या नहीं, यह तो नहीं कहा जा सकता परंतु उसकी माँ गुलाबराय का प्रभाव अवश्य रहा होगा। महाराणा की सवारी के समय सदैव तेजसिंह साथ रहते हैं। यहाँ तक कि दरबार में उनके बैठने का स्थान दाहिनी और निश्चित किया गया था। हम राज्य के अभिलेखों में, ऐसा अनुराग एवं सम्मान महाराजा विजयसिंह की रानियों से उत्पन्न पुत्रों को मिलता हुआ नहीं पाते हैं।[11]

सम्वत् 1838 में तेजसिंह का दूसरा विवाह जोधपुर परगने के तफे द्रोनण के गांव डाभली के सोढ़ा राजपूत प्रतापसिंह हरीसिंघोत के घर सम्पन्न हुआ था। इस विवाह की धूम-धाम महाराजकुमार के विवाह से कम नहीं थी।[12] 

इस विवाह का महत्व इस संदर्भ में भी हैं कि एक पासवान के पुत्र का विवाह राजपूत परिवार में हुआ था। यदि हम इस संदर्भ में कर्नल जेम्स टॉड के वर्णन से सोढ़ा राजपूतों की अन्य राजपूतों में प्रचलित सामाजिक स्थिति को सही भी मान लें तो यह तो सत्य ही था कि सोढ़ाओं के घरों की लड़कियों का विवाह अन्य राजपूत परिवारों में होता था, भले ही वे राजपूत अपनी लड़कियां सोढ़ा परिवारों में न देते हों।[13]

तेजसिंह की स्थिति इस घटना के पश्चात और भी महत्वपूर्ण बन जाती है। दरबार में कुंवर तेजसिंह का पूर्ण सम्मान किया जाता था। जब मुगल शासक शाह आलम (द्वितीय) का खास रुक्का लेकर आगरा से उसका दूत जोधपुर नरेश के विशिष्ट दरबार में हाजिर हुआ था तब उसमें कुंवर तेजसिंह भी उपस्थिति था। इस अवसर पर रानियों एवं महारानियों से उत्पन कुंवरों का कोई उल्लेख नहीं आता है। बादशाह के दूत ने कुंवर तेजसिंह को नजर भी भेंट की थी। कुंवर तेजसिंह ने महाराजा के साथ महत्वपूर्ण विचार विमर्श बैठक में भी भाग लिया था।[14] 

सिंध के मियां अब्दुल नबी के दो पुत्र जब मारवाड़ आये तब उन्होंने भी कुंवर तेजसिंह के प्रति पूर्ण सम्मान प्रकट किया था।[15]

अब तेजसिंह अपनी स्थिति अन्य राजकुमारों की दृष्टि में ईष्यालु बना रहा था। राज्य के महत्वपूर्ण प्रशासनिक कार्य उसकी उपस्थिति में सम्पन्न होने लगे। गोपनीय पत्र तेजसिंह के सामने पढ़े जाते थे।[16]

तेजसिंह की शिक्षा-दीक्षा संभवतः गुलाबराय की सतर्क नीतियों के अन्तर्गत एक भावी उद्देश्य के साथ की जा रही थी।[17]

कुंवर तेजसिंह के परिवार का सम्मान भी महाराज कुमार के परिवार से कम नहीं था। बहू सोढ़ीजी के साथ यही बर्ताव होता था जो महाराज कुमार फतेसिंह की रानियों भटियाणीजी एवं चौहाणीजी के साथ किया जाता था। जब सम्वत् 1840 में कुंवर तेजसिंह के पुत्र जन्म हुआ तो उन सभी प्रथाओं का ध्यान रखा गया जो राजकुमारों के लिए पूर्व प्रचलित थी। बहू सोढ़ीजी की पंचमासी एवं अधरणी के उत्सव राजसी ठाठ से मनाये गये थे। दाई को भी उसी भांति सम्मानित किया गया था।[18]

सं.1834 में महाराजकुमार फतेसिंह की मृत्यु हो गई। उसके बाद गुलाबराय के पुत्र तेजसिंह का सम्मान बड़ी तेजी से बढ़ा।[19]

मारवाड़ राज्य में पासवान गुलाबराय के परिवार के सम्मान में कोई कमी नहीं थी। पासवान, कुंवर तेजसिंह, बहू सोढ़ीजी को कहीं आने-जाने पर वही आदर मिलता था जो राज-परिवार के व्यक्तियों को दिया जाता था।[20]

कुंवर तेजसिंह के बारे में स्थिति कुछ और उभर कर सामने आती, इससे पूर्व ही, सम्वत् 1842 में तेजसिंह की मृत्यु हो गयी। उसकी दाह-क्रिया राज्योचित सम्मान के साथ मंडोर के राजकीय शमशान में सम्पन्न की गयी।[21]

कुंवर तेजसिंह से साथ किये गये बर्ताव एवं गुलाबराय की राजनीतिक सूझबूझ से कहा जा सकता है कि पासवान सम्भवतः अपने पुत्र का सम्बन्ध मारवाड़ के इतिहास से जोड़ना चाहती थी। वह उत्तराधिकार के मामले को एक योजनाबद्ध तरीके से पहले से ही तय कर रही थी। हांलाकि इस बात के स्पष्ट प्रमाण नहीं है फिर भी अनौरस पुत्रों का इतिहास हर राजपूत राज्यों में रहा है। चाहे वह अल्प-आयु ही क्यों न हो। मेवाड़ के बणबीर एवं बीकानेर में बनमाली दास के प्रयत्न इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। पासवान गुलाबराय की मारवाड़ के उत्तराधिकार के मामले में रुचि रही थी, इस बात से इन्कार भी नहीं किया जा सकता। तेजसिंह की मृत्यु के बाद गुलाब ने कुंवर शेरसिंह को, मारवाड़ के सामंतों के विरोध के बाद भी युवराज नियत किया था।[22]

कुछ समय बाद मारवाड़ के सामंतों ने पासवान गुलाबराय की हत्या कर दी। उसकी हत्या के पीछे चाहे जितने भी कारण रहे हों, किंतु सबसे बड़ा कारण गुलाब द्वारा उत्तराधिकार के मामले में किया गया हस्तक्षेप था। इस कारण मारवाड़ के राठौड़ सरदार अत्यंत उद्वेलित हुए थे और गुलाब से उनके विरोध का मुख्य कारण यही था। [23]

जब महाराजा विजयसिंह की मृत्यु के बाद विजयसिंह का पौत्र भीमसिंह मारवाड़ राज्य का राजा हुआ, तब उसने पासवान गुलाबराय के प्रिय रहे राजकुमार मानसिंह की हत्या करने का बड़ा उपक्रम किया किंतु मानसिंह जालोर के किले में होने के कारण बच गया। महाराजा विजयसिंह ने किसी समय जालोर का परगना एवं किला पासवान गुलाबराय को जागीर में दिया था। पासवान गुलाबराय ने ही विजयसिंह के पौत्र मानसिंह को जोधपुर की बजाय जालोर दुर्ग में रखा था, ताकि उसे सामंतों एवं अन्य राजकुमारों के षड़यंत्र से बचाया जा सके। अंत में जब भीमसिंह 10 वर्ष तक जोधपुर पर राज्य करके मर गया, तब मानसिंह ही जालोर से आकर जोधपुर का राजा बना। [24]


[1] डॉ. जी. एन. शर्मा, राजस्थान का इतिहास, 1971, पृ. 484.

[2] उपरोक्त।

[3] कु. शशि अरोड़ा, मारवाड़ की उत्तराधिकार-राजनीति में पासवान गुलाबराय की भूमिका, राजस्थान हिस्ट्री कांग्रेस प्रोसीडिंग्स।

[4] जोधपुर पट्टा बही नं. 3, पृ.176, सम्वत् 1822-1840, राजस्थान राज्य अभिलेखागार, बीकानेर, जोधपुर अर्जी बही नं. 1, पृ.3839,40,42 सम्वत् 1824-42 रा. रा. अ., बीकानेर।

[5] जोधपुर राज्य को ख्यात, द्वितीय, पृ. 100-103, ओझा, जोधपुर का इतिहास, भाग 2, पृ.754-56.

[6] इसी पासवान के कारण राज्य में खराबी होती गई। जोधपुर येथील राज कारण, लेखांक 20, पृ. 58, दत्तात्रेय बलवंत संग्रह; ओझा, पृ. 754, भाग 2, जोधपुर राज्य का इतिहास।

[7] डॉ. मोहनलाल गुप्ता, पासवान गुलाबराय, भूमिका।

[8] कु. शशि अरोड़ा, मारवाड़ की उत्तराधिकार-राजनीति में पासवान गुलाबराय की भूमिका, राजस्थान हिस्ट्री कांग्रेस प्रोसीडिंग्स।

[9] जोधपुर हकीकत बही नं 3, पृ.189, संवत् 1835-40, रा. रा. अ. बीकानेर।

[10] जोधपुर हकीकत बही नं. 2, पृ. 213 सं. 1831-35, जोधपुर हकीकत बही नं. 3, पृ.423-24, 550, 552, रा. रा.अ. बीकानेर।

[11]  जोधपुर हकीकत बही नं. 4, पृ.107 सं. 1841-45, रा. रा. अ. बीकानेर।

[12] जोधपुर हकीकत बही नं. 3, पृ. 328, 329, सं. 1835-40, रा. रा.अ. बीकानेर।

[13] टॉड कृत राजस्थान का इतिहास (हिन्दी) केशव ठाकुर, पृ. 619.

[14] जोधपुर हकीकत बहीं नं. 4, पृ.107, सं. 1841-45 रा. रा. अ.बीकानेर।

[15]  जोधपुर हकीकत बही नं. 3, पृ. 565, सं.1835-40, रा. रा. अ. बीकानेर।

[16] जोधपुर हकीकत बही नं. 4, पृ. 107, सं. 1841-45.

[17] कु. शशि अरोड़ा, मारवाड़ की उत्तराधिकार-राजनीति में पासवान गुलाबराय की भूमिका, राजस्थान हिस्ट्री कांग्रेस प्रोसीडिंग्स।

[18] जोधपुर हकीकत बही नं. 3, पृ. 562, 568, 570 सं. 1835-40.

[19] उपरोक्त पृ. 727.

[20] जोधपुर हकीकत बही नं. 3, पृ. 440, सं. 1835-40.

[21] जोधपुर हथ बही, पृ. 163, सं. 1830, रा. रा. अ. बीकानेर।

[22] ओझा, जोधपुर का इतिहास, भाग 2, पृ. 755.

[23] उपरोक्त पृ. 755, 56. 

[24] डॉ. मोहनलाल गुप्ता, जालोर का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास, द्वितीय संस्करण, पृ. 243-44.

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source