प्रतापगढ़ दुर्ग के निर्माता मेवाड़ के गुहिलों की ही एक शाखा से थे जो चित्तौड़ के गुहिलों से पंद्रहवीं शताब्दी ईस्वी में अलग हुई थी। इस शाखा का संस्थापक क्षेमकर्ण, महाराणा मोकल का पुत्र तथा महाराणा कुंभा का छोटा एवं सौतेला भाई था।
क्षेमकर्ण ने बड़ी सादड़ी में अपने राज्य की नींव डाली तथा बाद में ये लोग मेवाड़ तथा मालवा के बीच स्थित कांठल के क्षेत्र में आ गये। ई.1560 में रावत विक्रमसिंह द्वारा देवलिया की स्थापना किये जाने के बाद से यह राज्य ‘देवलिया’ के नाम से जाना गया तथा ई.1699 में महारावत प्रतापसिंह द्वारा प्रतापगढ़ की स्थापना किये जाने के बाद से प्रतापगढ़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
प्रतापगढ़ 889 वर्गमील क्षेत्रफल वाला एक छोटा सा राज्य था जिसे अंग्रेजों ने 15 सैल्यूट वाली स्टेट में शामिल किया था। प्रतापगढ़ राज्य का क्षेत्रफल झालावाड़ तथा किशनगढ़ राज्यों के लगभग बराबर था। भारत की आजादी के समय प्रतापगढ़ राज्य की जनसंख्या केवल 77 हजार थी।
प्रतापगढ़ दुर्ग
ई.1698 में महारावत प्रतापसिंह ने प्रतापगढ़ कस्बा बसाया। ई.1758 में महारावत सालिमसिंह ने इस नगर के चारों ओर कोट बनवाया जिसमें सूरजपोल, भाटपुरा दरवाजा, बारी दरवाजा, देवलिया दरवाजा और धमोतर दरवाजा नामक छः द्वार स्थित थे। नगर की चाहरदीवारी के भीतर पश्चिम में महारावत के महल बनाये गये तथा पश्चिम में ही चाहरदीवारी के बाहर एक दुर्ग बनवाया गया। जिसे प्रतापगढ़ दुर्ग कहते हैं। इस दुर्ग के सामने महारावत उदयसिंह का बनवाया हुआ उदयविलास महल है।
देवलिया दुर्ग
देवलिया दुर्ग प्रतापगढ़ से 13 किलोमीटर दूर स्थित है। देवलिया को संस्कृत ग्रंथों में देवदुर्ग, देवल पत्तन, देवगिरि और देवगढ़ भी कहा गया है। सादड़ी के महारावत सूरजमल ने इस कस्बे की स्थापना की।
सूरजमल के बाद बाघसिंह और उसके बाद रायसिंह हुए जो सादड़ी में रहे। ई.1581 में विक्रमसिंह (बीका) ने सादड़ी की जागीर का परित्याग करके इस क्षेत्र के मीणों का दमन किया तथा देवलिया कस्बे को अपनी राजधानी बनाया।
उसने एक ऊँची पहाड़ी पर एक दुर्ग एवं राजमहलों का निर्माण करवाया। इन भवनों के खण्डहर आज भी देखे जा सकते हैं। रावत रघुनाथसिंह को प्रतापगढ़ की अपेक्षा देवलिया अधिक पसंद था इसलिये उसने देवलिया के पुराने महलों की मरम्मत करवाई और कुछ नये भवन भी बनाये। वह स्वयं भी देवलिया में रहता था।
छोटी मांजी साहिबा का किला
प्रतापगढ़ कस्बे में स्थित वार्ड संख्या एक में लगभग 200 वर्ष पुराना एक दुर्ग हुआ करता था जिसे छोटी मांजी साहिबा का किला कहते थे। अनुमान है कि यह दुर्ग देवलिया के किसी शासक की माता द्वारा बनवाया गया था अथवा वह इसमें रहा करती थी। आजादी के बाद इस दुर्ग को चांदमल कबाड़ी ने खरीद लिया।
इस प्रकार प्रतापगढ़ दुर्ग, देवलिया का दुर्ग तथा छोटी मांजी साहिबा का किला प्रतापगढ़ राज्य के प्रमुख दुर्ग थे।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता